अप्रैल में वर्षा सुन्दरी के प्रथम आगमन की महिमा के बारे में लिखा था लेकिन पूरी मई और जून वर्षासुन्दरी के रुठने से खून के आँसू रोता रहा। मानसून बहुत देर से पहुँचा और वर्षा के इन्तजार में सजाये गये खेत रूपी थाल सूखे ही रह गये। सरकार सूखे की आशंका में सूखकर काँटा होने लगी और देश की अर्थव्यवस्था जलने लगी।
दिल से निकलगी, ना मरकर भी, वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी....।
दिल से निकलगी, ना मरकर भी, वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी....।
No comments:
Post a Comment