Thursday, February 18, 2010

शाहरुख खान...और आई.पी.एल

आज मैंने एक राष्ट्रीय अखबार के संपादकीय में पढ़ा कि शाहरुख खान ने आई पी एल की नीलामी में किसी भी पाकिस्तानी खिलाड़ी को नही खरीदा, वही शाहरुरख खान जिन्होने पाकिस्तानी खिलाड़ियों के किसी आई पी एल फ्रेंचाइजी के न खरीदे जाने द्वारा एक विवादास्पद बयान दिया और बाद में उसी बयान के जरिये अपनी फिल्म का मुफ्त प्रमोशन करवा लिया। फिलहाल मुद्दा प्रमोशन का नही है उसके बारे में तो मैंने पहले ही लिख दिया है, आज मुद्दा है कि जिन शाहरूख खान ने पाकिस्तानी खिलाड़ियों के न खरीदे जाने के लिये अफसोस जाहिर किया था, वही शाहरुख खान एक टीम के मालिक भी हैं, उन्होने भी पाकिस्तानी खिलाड़ियों को नही खरीदा। शाहरुख खान ने किस मुंह द्वारा ये सारा बखेड़ा खड़ा किया कि पाकिस्तानी खिलाड़ियों को आई पी एल में खेलना चाहिये। इससे लाख गुना अच्छा ये होता कि वे किसी पाकिस्तानी खिलाड़ी को खरीद लेते, और अपनी टीम में खिलाते, अपनी भावना के अभिव्यक्ति का इससे तरीका और नही हो सकता था। दुनिया की रीति इससे अलग है, आज कोई काम बिना फायदे के नही होता, या काम के उद्देश्य के पहले फायदे का गुणा भाग हो जाता है। अरिंदम चौधरी ने मैंनेजमेंट के छात्रों या फिर आम लोगों के लिये भी, एक किताब लिखी है, नाम है-काउंट योर चिकन्स बिफोर दे हैच....। मैने किताब तो नही पढ़ी है, पर इसका शार्षक मजेदार, अंदर क्या है, क्या फर्क पड़ता है। आज चारों ओर सभी लोग चिकंस को हैच से पहले ही काउंट करने में लगे हुयें हैं। सारा मामला फायदे का है।

अब आते हैं पाकिस्तानी खिलाड़ियों के ऊपर कि क्यों किसी भी टीम ने उनको नही खरीदा, खैर इस पर चर्चा हम बाद में करेंगे।

थ्री इडियट्स और आमिर खान का दावा...

थ्री इडियट्स बहुत अच्छी फिल्म है, इसमें कोई शक नही। मनोरंजक तरीके से आज की शिक्षा पद्धति पर प्रहार करती यह फिल्म राजकुमार हिरानी की पिछली फिल्मों, मुन्नाभाई एम बी बी एस और लगे रहो मुन्नाभाई की अगली कड़ी है, जिसका उद्देश्य स्वस्थ मनोरंजन के साथ-साथ समाज को एक संदेश देना है। मजेदार बात यह है कि फिल्म के हीरो, निर्माता तथा राजकुमार हिरानी स्वयं, थ्री इडियट्स में प्रस्तुत किये गये संदेश से कितने प्रेरित हैं और उन सिद्धातों को अपने जीवन में कितना उतारते है।

फिल्म का सबसे महत्वपूर्ण संदेश यह है कि, कामयाबी के पीछे नही, काबिलियत के पीछे भागो, कामयाबी झख मारकर तुम्हारे पीछे आयेगी। आमिर खान, राजकुमार हिरानी तथा विधु विनोद चोपड़ा ने इस सिद्धांत को कितनी शिद्दत से अपने उसी फिल्म के प्रमोशन के संदर्भ में उतारा है, सोचने लायक है। आमिर खान इस फिल्म के प्रमोशन के लिये बाकायदा रूप बदलकर बनारस की गलियों में घूमें, बाकायदा एक प्रतियोगिता आयोजित करके कि जो उनको ढ़ूंढ़ लेगा वह उनके साथ समय बितायेगा। आमिर खान एक मामले में जीनियस है, वो अपनी फिल्म के प्रमोशन के लिये उतनी ही मेहनत करते हैं जितनी मेहनत एक डायरेक्टर अपनी फिल्म बनाने में करता है।

अगर आमिर खान काबिलियत पर विश्वास करते हैं तो उन्हे अपने अजीबो गरीब तरह के प्रमोशन कैंपेन्स को अलविदा कर देना चाहिये और अगर कामयाबी पर विश्वास करते हैं तो उन्हे चतुर से हार मान लेनी चाहिये।

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