Thursday, November 4, 2010

हम आजाद हैं...

मैं पिछले कई दिनों से एक छोटी पुस्तक लिखने की कोशिश कर रहा था जिसका शीर्षक था- क्या हम आजाद हैं। लागातार कई बार लिखना प्रारंभ करने के बाद भी मुझे कोई ठोस शुरुआत नहीं मिली जिस रास्ते पर चलते हुए मैं यह पुस्तक पूरी कर पाता, पूरी क्या कर पाता, इसका पहला चैप्टर-आजादी क्या है, को ही पूरा कर पाता। मेरी समझ में यह बिलकुल नही आ रहा था कि मैं इस विषय पर मैं क्यों नही लिख पा रहा हूँ...जबकि मैंने कई छोटे-छोटे विषयों पर लंबे-लंबे लेख बड़ी आसानी से लिखे हैं। यह एकदम से विचित्र बात थी, क्योंकि इसकी भूमिका मैंने पहले ही लिख दी थी लेकिन उससे भी मुझे कोई सहायता नही मिली। अपने लिख पाने की असमर्थता को मैने अपने दोस्तों के सामने भी व्यक्त किया लेकिन कोई निष्कर्ष नही निकला। सबसे बड़ी समस्या यह थी कि मुझे शुरुआत ही नही मिल रही थी। मैने कई बार लिखा, फिर फाड़ा, और फिर लिखा...पर मन को संतुष्टि नही मिली, कहीं से भी कोई लाइन मानकों को नही पूरा कर रही थी।

मैं बार-बार की कोशिशों के बावजूद भी, क्या हम आजाद हैं, विषय पर क्यों नही लिख पाया...इसका उत्तर मुझे कल मिला। कल 2 नवंबर को मुझे बामसेफ (आल इंडिया बैकवर्ड एंड माइनारिटी कम्यूनिटी इंप्लाई फेडरेशन) के भारत मुक्ति मोर्चा के क्षेत्रीय सम्मेलन में जाने का अवसर मिला जिसकी चर्चा का विषय था कि 1947 की आजादी वास्तविक रूप में आजादी नही थी, वह यूरेशियाई ब्राह्मणों द्वारा अपनी आजादी की लड़ाई थी। मुझे बामसेफ के जिला सचिव डा. एस.एस. पटेल ने बुलाया था, जिनसे अक्सर सम-सामयिक विषयों पर चर्चा हो जाया करती है। उन्होनें मुझे वहाँ एक फोटोग्राफर की हैसियत से बुलाया था। जब मैं वहाँ पहुँचा तो कार्यक्रम शुरू हो चुका था। यहाँ एक बात स्पष्ट कर दूँ कि यह बहुत बड़ा सम्मेलन नही था जिसमें हजारों लोग उपस्थित थे। खैर सम्मेलन शुरू हो चुका था जिसकी अध्यक्षता बामसेफ के राष्ट्रीय सचिव, चमनलाल कर रहे थे...और मुझे बिलकुल भी पता नही चला कि वो कौन हैं क्योंकि जिस आदमी को मैं चमनलाल समझ रहा था वे पास के कस्बे के वक्ता निकले। स्षानीय लोग बोल रहे थे और मैं फोटोज ले रहा था।





बामसेफ एक ऐसा संगठन है जिसका एक ही घोषित कार्यक्रम है, देश में व्याप्त सभी प्रकार की समस्याओं का जिम्मेदार एक ही कारण है-ब्राह्मण। उनका एक ही उद्देश्य है, ब्राह्मणों को ऊंचे पदों से हटाकर स्वयं कब्जा जमाना। जाहिर सी बात है कि बामसेफ का सम्मेलन था तो वक्ता भी उसके घोषित कार्यक्रमों और उद्देश्यों के अनुसार ही बोलेंगे। कई वक्ता आये और उन्होनें अपना विचार प्रकट किया। सभी लोग एक सुर में गाँधी की कठोर शब्दों में भर्त्सना कर रहे थे और यथास्थान अनुपयुक्त शब्दों से नवाज भी रहे थे। यहाँ एक बात महत्वपूर्ण है कि बामसेफ के कार्यकर्ताओं में हमारे इतिहास को लेकर एक भ्रम की स्थिति बना दी गई है जिसमें फँसकर वो उसी को सत्य मानते हैं जो उन्हे बताया जाता है। उनके अपने कुछ लेखक हैं अथवा उन लेखकों से वैचारिक सामंजस्य है जो दशकों से हमारी संस्कृति, परंपरा और धर्म के विषय में अनर्गल बातें लिख रहे हैं।

वक्ता बोल रहे थे और मैं फोटो खींचने के साथ सुन भी रहा था। सुनते-सुनते मेरे दिमाग पर छायी संशय की बदली छंटती जा रही थी, ठीक उसी प्रकार, जैसे अपने किसी दुश्मन को अकेले में उसके अन्य दुश्मनों द्वारा घिरे देखकर कोई वीर पुरुष उत्तेजित हो जाता है और उसकी सहायता के लिये उद्यत हो जाता है। मेरे विचारों में अचानक परिवर्तन हुआ और एक झटके में मुझे अहसास हो गया कि हम आजाद हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि हमने आजादी का मतलब नहीं समझा। मैंने संचालकों से कहा कि मुझे भी बोलने का अवसर दिया जाय। कुछ देर बाद मैं मंच पर बोलने के लिये गया और श्रोताओं का ध्यान उस एकमात्र कारण की ओर खींचा जिसकी वजह से आम भारतीय जनमानस कभी भी शोषण से मुक्त ही नही हो सका। वह कारण है अशिक्षा...निचले तबकों को हमेशा शिक्षा से वंचित रखा गया जिसकी वजह से उसको ज्ञान और आत्मसम्मान का अहसास ही नही हुआ...और जिसकी कमी की वजह से उसने मुट्ठी भर लोगों को अपना भाग्यविधाता तथा स्वयं को उनकी दयादृष्टि का आश्रित मान लिया। मैनें उनको शिक्षा और इतिहास की महत्ता के विषय में बताया जिसकी वजह से हमें अपना अतीत नही पता...और अतीत न पता होने के कारण हमें अपना वर्तमान भी नही पता...।


वहाँ से आने के बाद अपनी लघु पुस्तिका के शीर्षक और उसके विषय-वस्तु के बारे में मैंने पुनः विचार किया और पाया कि मैं एक ऐसे विषय पर लिखने की व्यर्थ कोशिश कर रहा था जो वास्तव में है ही नही। हाँलाकि ऐसा भी साहित्य है जो पूर्णतया कल्पना पर आधारित है, लेकिन उस साहित्य को गल्प कहा जाता है। मैं गल्प नहीं लिख रहा था और इसी कारण से मुझे शब्द नही मिल रहे थे। वास्तविकता यह है कि हम आजाद हैं, लेकिन कुछ स्वार्थी लोगों की वजह से हम आजादी का मतलब नही समझ पाये, हममें आजाद होने की भावना का विकास ही नही हो पाया, जिसका फायदा उठाकर कुछ लोगों ने आम जनता को बहलाना शुरु किया कि हम आजाद नही हैं....।

सुरेंद्र पटेल...

मतदान स्थल और एक हेडमास्टर कहानी   जैसा कि आम धारणा है, वस्तुतः जो धारणा बनवायी गयी है।   चुनाव में प्रतिभागिता सुनिश्चित कराने एवं लो...