जीवन का अमूल्य
सिद्धान्त
यदि कोई चाभी किसी
ताले को नहीं खोल पाती तो इसका अर्थ यह नही कि वह चाभी गलत है, बल्कि इसका अर्थ यह
है कि हमने उसे सही ताले में नहीं लगाया। हमारा प्रयास यहीं खत्म नहीं होना
चाहिये, बल्कि निरंतर जारी रहना चाहिये, तब तक, जब तक कि वह सही ताले को खोल ना
ले। याद रखें कि चाभी की सार्थकता तभी तक है, जब तक कि वह अपने अभीष्ट ताले को खोल
ना ले। यदि वह ऐसा नहीं कर पाती तो वह
मात्र एक लोहे का टुकड़ा है जिसका कोई प्रयोजन नहीं।
जरा सोचिये अगर वह
चाभी अपने सही ताले में को खोल सके तो क्या पता, उसके पीछे क्या हो? रुपया, पैसा, दौलत,
ज्ञान, यश और सम्मान और ना जाने क्या-क्या। चूँकि ताला किसी कीमती वस्तु की हिफाजत
के लिये ही लगाया जाता है इसलिये ये निश्चित है कि कुछ ना कुछ कीमती तो मिलेगा ही।
अफसोस कि ज्यादातर चाभियाँ बिना अपने अभीष्ट ताले को खोले ही निष्प्रयोजनीय होकर
नष्ट हो जाती हैं। यह उस चाभी की बर्बादी है।
यह सिद्धान्त मानव जीवन पर शत-प्रतिशत लागू होता है। जीवन में हम कोई
लक्ष्य तय करते हैं और कभी-कभी उसे प्राप्त नहीं कर पाते और निराश होकर बैठ जाते
हैं। यह आपके पुरुषार्थ की बर्बादी है। क्या हुआ अगर आपका प्रयास सफल नहीं हुआ।
असफलता के कई कारण हो सकते हैं लेकिन थक-हारकर बैठ जाने का कोई कारण नहीं। इसलिये
अगर अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त करने में असफलता मिली हो तो हो सकता है कि आप उस लक्ष्य
के लिये नहीं बने हों, और आपका लक्ष्य कहीं और इन्तजार कर रहा हो।