Wednesday, December 27, 2017

N.P.A. (नान परफार्मिंग एसेट)

खबर बहुत चिंतित करने वाली है कि भारतीय बैंको का एन.पी.ए. यानि कि नान परफारमिंग एसेट लगातार बढ़ता ही जा रहा है। कहा तो यह जा रहा है कि बैंको का फँसा हुआ जी.डी.पी.के 2 प्रतिशत से ऊपर हो चला है। कुछ दिन पहले अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार बैंकों का एन.पी.ए. 7.34 लाख पहुँच गया है। जिसमें सरकारी बैंको का एन.पी.ए. दो तिहाई से ज्यादा है।

क्या है एन.पी.ए. (नान परफार्मिंग एसेट)
बैंक विभिन्न मदों में व्यक्तियों अथवा संस्थाओं को कर्ज देते हैं जिनपर अदा किये जाने वाला ब्याज बैंक की कमाई होता है। यह ब्याज इंस्टालमेंट के रूप में होता है। जब किन्ही कारणों से बैंक की इंस्टालमेंट अथवा ब्याज समय से जमा नहीं हो पाता तो इसे बैड लोन कहा जाता है। 90 दिनों की अवधि के बाद इसे एन.पी.ए. यानि कि नान परफार्मिंग एसेट कहा जाता है। यह वह लोन होता है जिसके वापस मिलने की आशा खत्म हो जाती है अथवा बहुत कम हो जाती है।

विश्लेषण-
रिजर्व बैंक आफ इंडिया द्वारा प्रदान किये गये आकड़ों के अनुसार जून माह 2017 तक बैंकों द्वारा कुल 6802129 करोड़

कुल 6802129 करोड़ रूपये लोन दिया गया था जिसमें से 601215 करोड़ रुपये एन.पी.ए. के रूप में फँस गया है। इसमें सरकारी और प्राइवेट कुल मिलाकर 49 बैंक शामिल हैं। यदि आँकड़ों पर नजर डालें तो इंडियन ओवर सीज बैंक की हालत सबसे खराब है जिसने 149217 करोड़ रूपये लोन दिये और उसके 30239 करोड़ रुपये एन.पी.ए. के रूप में फँस गये। प्रतिशत के हिसाब से देखें तो इसका कुल 20.26 प्रतिशत रूपया एन.पी.ए. के रूप में फँसा है। इसके बाद नंबर आता है यूको बैंक का जिसका 115166 करोड़ रूपये में  21495 करोड़ रूपये, बैंक आफ इंडिया, जिसके 274391 करोड़ रूपये में से 43935 करोड़ रूपये , पंजाब नेशनल बैंक जिसके 356958 करोड़ रूपये में से 55003 करोड़ रूपये एन.पी.ए. के रूप में फंसे हैं।
अगर बात करें सबसे ज्यादा फँसे हुये एन.पी.ए. की तो इसमं सबसे पहला नंबर आता है स्टेट बैंक आफ इंडिया का जिसके 1193325 करोड़ रूपये में से 93137 करोड़ रूपये एन.पी.ए. के रूप में फँसा है।
किस क्षेत्र में कितना रूपया फंसा है, अगर इसपर नजर डालें तो पायेंगे कि धातु एवं इस्पात उद्योग की हालत सबसे खराब है। इस क्षेत्र में कुल दिये गये लोन 4.33 लाख करोड़ रुपये में 1.49 लाख करोड़ो रूपये एन.पी.ए. के रूप में फँसा है। इसके बाद नंबर आता है वस्त्र उद्योग एवं पेय पदार्थ उद्योंगों का जिसका एन.पी.ए. रेट 18 प्रतिशत के आसपास है।

सरकार के कदम-
सरकार ने एन.पी.ए. की रिकवरी के लिये SARFAESI (सिक्यूरिटाइजेशन एंड रिकन्शट्रक्शन आफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड इंफोर्समेंट आफ सिक्योरिटी इन्टरेस्ट) एक्ट बनाया है जिसका काम इस तरह के लोन न चुकाने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं के अधिकार वाली परिसंपत्तियों का अधिग्रहण करके कर्ज की वसूली करना है। लेकिन यह प्रक्रिया इतनी मद्धिम गति से आगे बढ़ रही है कि यह कब पूरी होगी, कह पाना मुश्किल है।
एक उदाहरण-
विजय माल्या बैंको का 6000 करोड़ रूपया लेकर लंदन भाग गया है लेकिन उसे भारत लाने और उससे कर्ज वसूली की प्रक्रिया बहुत जटिल और धीमी है। एक विजय माल्या से वसूली करने में इतनी कठिनाइयाँ आ रही हैं तो देश में ऐसे सैकड़ों विजय माल्या बैठे हैं।

देश पर असर-
देश और विदेश स्तर के कई जानकार लोगों और संस्थाओं का कहना है कि इससे देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। चुनाव के समय में राजनीतिक दलों द्वारा किसानों की कर्जमाफी का वादा और बाद में हजारों करोड़ रुपये का कर्ज माफ करना भी इसी के अंतर्गत आता है। कहना न होगा कि बैंकों के एन पी ए में किसान कर्जमाफी का भी बड़ा योगदाना है।
2009 में संप्रग सरकार ने 71000 करोड़ रुपये माफ किये थे। अभी हाल में उत्तर प्रदेश में संपन्न हुये चुनावों के बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने किसानो के 36000 करोड़ से ज्यादा रूपये के कर्ज माफ किये। किसानों का माफ किया जाने वाला कर्ज किसी न किसी रूप में देश की अर्थव्यवस्था को ही नुकसान पहुँचा रहा है। कहाँ सरकार को किसानों और छोटे व्यापारियों की आय बढ़ाने का प्रयास करना चाहिये। मूलभूत व्यवस्था और बुनियादी स्तर पर विकास का प्रयास करना चाहिये किन्तु वह ऐसा नहीं कर पाती। सत्ता प्राप्ति की सबसे आसान सीढ़ी के रूप में वह कर्जमाफी को चुनती है और देश को आगे बढ़ाने के बजाय दो कदम और पीछे ले जाती है।



दस्तक सुरेन्द्र पटेल निदेशक माइलस्टोन हेरिटेज स्कूल लर्निंग विद सेन्स-एजुकेशन विद डिफरेन्स

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