Wednesday, July 25, 2012

काला धन


खून पसीने की मेहनत का पैसा बाहर जाता है।
राजनीति-अफसरशाही में फँसा देश चिल्लाता है।
तकदीर बदल सकता था जो धन अपने भारत देश का,
 बंद तिजोरी में औरों के काला धन कहलाता है।।

भारत में काले धन से तात्पर्य उस अकुत संपत्ति से है जो गलत तरीकों से कमाई गई है और जिसका कोई विवरण कहीं उपलब्ध नही है। विदेशी बैकों में भारतीयों द्वारा जमा की गई कुल संपत्ति का विवरण अभी मौजूद ही नही है। एक अनुमान के अनुसार स्विस बैंक में  भारतीयों द्वारा जमा की गई कुल संपत्ति 1.4 ट्रिलियन यू एस डालर है जिसे अगर रूपये में बदला जाय तो किसी का भी दिमाग चकरा जायेगा। 1.4 ट्रिलियन डालर मतलब- 1,400,000,000,000 यू एस डालर। अगर इसे रुपये में बदला जाये तो यह 78400000000000 रूपये होगा। लेकिन स्विस बैंक के अधिकारियों के अनुसार यह रकम हकीकत से कहीं ज्यादा है। असल में यह संपत्ति मात्र 2 बिलियन डालर ही है। जो रुपयों में बदलने के बाद 9295 करोड रूपये होती है। स्विस बैंक के अधिकारियों द्वारा दिया गया विवरण मीडिया में उछाली गई रकम के मुकाबले कुछ भी नही है। यह उसी प्रकार है जैसे ऊँट के मुँह में जीरा।

फरवरी 2012 में सी बी आई के निदेशक ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसके अनुसार भारतीयों ने विदेशी बैंकों में कुल मिला जुलाकर 500 बिलयन डाल जमा कर रखे हैं। यह विवरण भी चौंकाने वाला हो सकता है। मार्च 2012 में संसद में सरकार ने यह स्वीकार किया गया कि सी बी आई द्वारा यह अनुमान सुप्रीम कोर्ट द्वारा जुलाई 2011 में आकलन के आधार पर किया गया था। मी़डिया में आई कुछ खबरों के द्वारा यह कहा गया कि स्विस बैंक में जमा सबसे ज्यादा काला धन भारतीयों का है, लेकिन स्विस बैंक एसोशियेसन द्वारा कभी भी इस खबर की पुष्टि नही की गई। उनका कहना था कि भारतीय मीडिया में आई इस प्रकार की खबरे जंगल में आग की तरह फैलती हैं जिनमें कोई सच्चाई नही है, यह मीडिया द्वारा फैलाई गई मनगढंत कहानिया हैं।

भारत सरकार के द्वारा किये गये अनुरोध के पश्चात स्विस बैंक ने 782 खाताधारकों के नाम भारत सरकार को दिये लेकिन भारत सरकार ने कभी भी उन खाताधारकों के नाम सार्वजनिक नही किये। हालाँकि उनका कहना है कि उन खाताधारकों में कोई वर्तमान सांसद नही है। मई 2012 में स्विस नेशनल बैंक ने यह अनुमान लगाया कि स्विट्जरलैण्ड में जमा की गई भारतीयों द्वारा कुल संपत्ति लघभग 9295 करोड रुपये है। यह रकम मीडिया में आई खबरों के अनुसार 1.4 ट्रिलियन से 700 गुना कम है।

मई 2012 में पहले ग्लोबल इंटरपोल प्रोग्राम को संबोधित करते हुये सी बी आई के डायरेक्टर ए पी सिंह ने बताया कि स्विस बैंक के साथ ही साथ अन्य विेदेशी बैकों में भारतीयों द्वारा कुल जमा की गई संपत्ति लघभग 500 बिलियन डालर है। भारतीय राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार और काले धन के निर्माताओं पर व्यंग करते हुये श्री सिंह ने एक टिप्पणी की- यथा राजा तथा प्रजा। अर्थात अगर देश का राजा ही भ्रष्ट है तो जनता से किसी भी प्रकार के ईमानदारी की अपेक्षा करना व्यर्थ है। बाद में संसद को दिये गये अपने व्यक्तव्य में श्री सिंह ने कहा कि उनका आकलन सुप्रीम कोर्ट के आधार पर ही था।

बाद में औपचारिक जाँच करते हुये भारतीय अधिकारियों ने यह व्यक्तव्य दिया कि स्विस बैंको में भारतीयों द्वारा जमा किया गया धन, पूरे विश्व के नागरिकों द्वारा जमा किये गये धन का मात्र 0.13 प्रतिशत ही है। जो कि पूर्व में आकलित किये गये 0.29 प्रतिशत से कम है।

जनवरी 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने यह पूछा कि स्विस बैंक द्वारा प्राप्त किये खाताधारकों के नाम को सार्वजनिक क्यों नही किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट में जुलाई 2011 में विदेशी बैंको में जमा किये गये काले धन  तथा वर्तमान में बाहर जा रहे कालेधन की निगरानी के लिये भूतपूर्व सुप्रीम कोर्ट जज बी पी जीवन रेड्डी को न्युक्त किया। यह समिति सीधे सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपने वाली थी। समिति के द्वारा प्रस्तुत किये गये रिपोर्ट में यह कहा गया कि बाहर जाने वाले काले धन में कहीं ना कहीं सरकार का ढुलमुल रवैया और सही तरीके से उसकी रोकथाम न कर पाना भी है। सरकार ने इस रिपोर्ट को चुनौती दी और सुप्रीम कोर्ट की एक दूसरी बेंच ने इस पर अपना एक अलग निर्णय ही दे दिया।

हकीकत चाहे जो कुछ हो लेकिन इतना तो तय ही है कि भारतीय जनता का गाढ़ी कमाई से भारत सरकार के खजाने में जमा किया गया धन सरकार तक पहुँचा ही नही। राजनीति और अफसरशाही के गठजोड़ ने तिकड़मबाजी करके उसका अधिकांश हिस्सा बीच में ही निगल लिया और जनता अपने विकास के सपने को खुली आँखो से देखती ही रह गई। इसके आधार पर कई सारे सवाल खड़े होते हैं जो भारत सरकार की निष्ठा पर अनगिनत प्रहार करते हैं।

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