Wednesday, August 11, 2010

हैवानियत

यूं तो भारत में हर तरह की सम्स्यायें विद्यमान हैं, जो छोटी हैं, बड़ी हैं। पर आज जिस चीज के बारे में बात करना चाहता हूँ, उसका निर्णय पाठक ही करेंगे कि वह कैसी है, छोटी या बड़ी।

भारत के दूर दराज के इलाकों में आज भी सवारी और बोझा ढ़ोने के लिये दूसरे दर्ज को घोड़ों का प्रयोग किया जाता है। ये घोड़े और घोड़ियाँ आकार में छोटे और दिखने में कमजोर होते हैं। काम में लाते वक्त इनकी पीठ पर इनकी क्षमता से दोगुना-तिगुना बोझ लाद दिया जाता है, जिसे ना ले जाने की स्थिति में इनकी पीठ पर लागातार चाबुकों की मार पड़ती रहती है। इनको काम में लाने वाले मुख्यतः भूमिहीन और बेहद ही गरीब तबके के लोग होते हैं जो इनके चारा पानी की व्यवस्था न कर पाने की स्थिति में इनको चरने के लिये सड़क के किनारे या फिर मैदान में चरने के लिये छोड़ देते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि घोड़ा दिन भर कुछ न कुछ कमाता ही रहता है, फिर भी पेट भरने के लिये उसके लिये भोजन की व्यवस्था नही की जाती, जबकि इसके मालिक अक्सर शराब पीकर कहीं न कहीँ लुढ़के रहते हैं। उसपर भी इन घोड़ों को चरने या फिर घूमने के लिये कैसे छोड़ा जाता है, वह नीचे के चित्र से स्पष्ट है-



दिन भर इनकी क्षमता से अधिक काम लेने के बाद इनको पेट भरने के लिये छोड़ दिया जाता है, वो भी इनके आगे के दोनों पैरों को बाँधकर, ताकि घोड़ा ज्यादा दूर या फिर भाग न सके। पैर बँधे होने के कारण घोड़ा बड़ी ही तकलीफ से पहले पिछले पैर को आगे लाता है और फिर उनके सहारे दोनो बँधे पैर एक साथ उठाकर एक कदम आगे बढ़ाता है और यह प्रक्रिया लागातार चलती रहती है । घोड़ा एक-एक कदम चलने की इस कष्टकारक प्रक्रिया अक्सर घोड़े के पैरों मे घाव हो जाता है जो बिना किसी इलाज के बढ़ता ही जाता है और घोड़ा लागातार असहनीय दर्द से बिलबिलाता रहता है। यही नही उस पर लागातार मक्खियाँ भिनभिनाती रहती हैं जो उसके दर्द को और बढ़ाती रहती हैं।

हमारी सरकार जो खुद भ्रष्टाचार में बुरी तरह लिप्त है, उससे यह उम्मीद करना बेमानी है कि वह इनक लिये कुछ करेगी, क्योंकि उसे तो इंसानों की ही फिक्र नही है, पर इनकी भलाई के लिये क्या हम कुछ नही कर सकते......

मतदान स्थल और एक हेडमास्टर कहानी   जैसा कि आम धारणा है, वस्तुतः जो धारणा बनवायी गयी है।   चुनाव में प्रतिभागिता सुनिश्चित कराने एवं लो...