Thursday, December 22, 2011

कुछ देर पहले ही मैं कक्षा 8 की अंक तालिका ( मार्कशीट) बनाकर खाली हुआ हूँ और मौका मिलते ही मैने ब्लाग लिखना ज्यादा अच्छा समझा। हालाँकि इस समय रात के 12.20 हो रहे हैं लेकिन फिर भी अंकतालिका बनाते समय जो भाव मन में नदी के अनियंत्रित लहरों की भाँति ऊपर नीचे हो रहे थे उनका शब्दों के रूप में अभिवयक्तिकरण होना नितान्त आवश्यक है। क्वार्टर्ली इग्जामिनेशन में मैं कक्षा 8 का कक्षाध्यापक नहीं था किन्तु फिर भी मैने एक बार क्लास में जाकर श्रेणी लाने वाले छात्रों के बारे में जाना था। मजेदार बात है और यकीनन खुशी की भी कि, पिछले बार के कुछ ही छात्र अपना स्थान बचा पाने में सफल हुये हैं। यह नवीन प्रवृत्ति दिखाती है कि आजकल कक्षाओं में कितनी प्रतिस्पर्धा चल रही है। ज्ञान के मामले में यह स्वस्थ प्रतिस्पर्धा यकीनन उत्साहजनक है जो छात्रों में प्रतियोगिता का वातावरण उत्पन्न करती है। हालाँकि परीक्षाफल 24 दिसंबर को दिखाया जायेगा लेकिन कुछ छात्रों और छात्रों के प्रदर्शन से मैं बहुत खुश हूँ, जिसमें विकेश पाल का नाम विशेष उल्लेखनीय है। स्मरणीय है कि विकेश क्लास के सबसे कमजोर छात्रों में गिना जाता है, लेकिन अर्धवार्षिक परीक्षा के अंको ने मुझे आश्चर्यचकित औऱ प्रसन्नचित्त, दोनो किया है। अंकों के विषय में तो आने वाला 24 दिसंबर ही बतायेगा लेकिन मेरी ओर से कक्षा 8, अ और स, दोनों वर्गों के छात्र और छात्राओं को ढ़ेर सारी शुभकामनायें। मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि भविष्य में भी इसी तरह मेहनत करके वे तय किये गये सारे लक्ष्यों को प्राप्त करके देश के विकास में अपना योगदान दे सकते हैं।
कक्षाध्यापक
कक्षा 8
सेन्ट जोसेफ्स स्कूल
चौक रोड, महराजगंज 
दिल से निकलगी, ना मरकर भी, वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी....।

Saturday, December 17, 2011

जहरीली शराब और लोगों की जान....जान बूझकर अंजान बनती सरकार


पश्चिम बंगाल में जहरीली शराब पीने की वजह से 111 लोगों की जान गई।
 घटना 14 दिसंबर 2011 की है जब पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में जहरीली शराब पीने की वजह से सैकड़ों की लोगों की मौत हुई। भारत का इतिहास ऐसी घटनाओं से खाली नही है और ना ही खाली है ऐसे लोगों से जो इन घटनाओं के लिये जिम्मेदार होते हैं।
मृत लोगों की संख्या में और भी बढ़ोत्तरी हो सकती है क्योंकि ळघभग 50 आदमी अभी भी दुआओं और इच्छाशक्ति के कमजोर धागों से बंधे जिंदगी और मौत के झूले में झूल रहे हैं। इन लोगों ने मगराहट नामक स्थान पर नकली शराब पी ली थी। सवाल ये उठता है, हालाँकि हम वर्तमान में ऐसे हजारों सवालों से जूझ रहे हैं और कोई रास्ता न देखकर मुँह ढ़ाँपकर सो जा रहे हैं कि इन मौतो का जिम्मेदार कौन है....क्या वे जिन्होने शराब पी और अपनी मौत बुला ली। पहली नजर में देखने से तो यही लगता है कि अपनी मौतों के जिम्मेदार वे बदनसीब खुद हैं। लेकिन नहीं यह सही नही है कि अपनी मौतों के लिये वे जिम्मेदार हैं, जिम्मेदार है हमारी सरकार जो ऐसे अवैध ठेकों को रोक नही पाती है, सारी शक्तियों और ठिकानों की जानकारी के बावजूद भी हमारी पुलिस क्यों नही ऐसे लोगों पर शिकंजा कस पाती है। आबकारी विभाग वाले क्यों नही उनका कुछ बिगाड़ पाते हैं। ये तो भारत का बच्चा-बच्चा जानता है कि पुलिस और हर वो सरकारी विभाग जिसकी जिम्मेदारी जनता की सुरक्षा करने की बनती है, कुछ पैसों के लालच में वे उसी की जिंदगी का सौदा करने से नही हिचकिचाते। भारत में साँप के गुजर जाने के बाद लकीर पीटने की प्रथा बहुत पुरानी है जिसके चलते भारत विनाश के खाई में दिन-प्रतिदिन और निकट जाता प्रतीत होता है। अभी उसी राज्य में कुछ दिनों पूर्व ही एक अस्पताल में लगी आग की वजह से सैकड़ों लोग मारे गये गये थे। क्या अग्निशमन अधिकारियों द्वारा एक बार अनापत्ति प्रमाणपत्र देने के बाद उसके पुनः जाँच की जिम्मेदारी नही बनती। बनती है, जरूर बनती है जिसके आधार पर ही अस्पताल हर महीने उस तरह के कइयों विभागों में मासिक नजराना महीने के शुरुआत में पहुँचा दिया करता होगा। अब दुर्घटना हो गई तो सिर्फ अस्पताल के प्रबंधकों को दिखावे के लिये पकड़ना इन जैसी मुसीबतों से बचने के उपायों के लिये किये जा रहे प्रयासों के क्रम में एक खानापूर्ति ही है। अगर वाकई गुनाहगारों को सबक सिखाना है तो उन सभी अधिकारियों को कानून के फंदे में लाना ही होगा जो किसी भी तरह से उस अस्पताल की सुरक्षा उपायों से जुड़े थे। अस्पताल में भर्ती मरीज भी कम दोषी नही हैं जो बेसमेंट में लगे हुये सामानों के ढ़ेर को देखकर भी चुप रहे। लेकिन इस तरह की जागृति भारत में अभी दूर की कौड़ी है। दुर्घटना चाहे किसी भी तरह की हो, उसके घटने के लिये सिर्फ स्थानीय लोग ही जिम्मेदार नही होते। इंसान स्वभाव से ही लालची होता है। कुछ पैसे बचाने के लिये वह दूसरे को धोखा देने में बिलकुल ही नही हिचकिचाता, लेकिन हमारे जनता के सेवकों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी सेवा देने के बदले प्राप्त किये जाने वाले मूल्य की कुछ तो हलाली दिखायें।

बच्चों पर एन सी ई आर टी के सर्वे में उत्तर प्रदेश के बच्चे सबसे आगे, दिल्ली, तमिलानाडु को भी पछाड़ा-
यू पी के नौनिहालों का ज्ञान देशा के बाकी बच्चों से बेहतर है।

दिल से निकलगी, ना मरकर भी, वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी....।

Thursday, December 15, 2011

अनोखे कण की झलक

पहले लग रहा कि सफलता की गुंजाइश बहुत कम बची है यूरोपीय परमाणु शोध संस्थान (सर्न) का लार्ज हैड्रोन कोलाइडर (एल एच सी) परियोजना विज्ञान के इतिहास की सबसे विशाल, सबसे मँहगी और सबसे महत्वाकाँक्षी परियोजना है औऱ इसका मुख्य उद्देश्य एक ऐसे सूक्ष्म कण का पता लगाना था, जिसका अस्तित्व वैज्ञानिकों के लिये सिर्फ सैद्धांतिक गणित में था। इस कण का नाम हिग्ज बोसान है और अगर यह नही मिलता तो सूक्ष्म कणों की भौतिकी के सारे नियम उलट पलट हो जाते। लेकिन अभी यह खबह आयी है कि एल एच सी के दो मापक यंत्रों ने उस कण का पता लगा लिया है जो संभवतः हिग्ज बोसान है। अभी और प्रयोंगो से ही इस बात की पुष्टि हो पायेगी लेकिन वैज्ञानिक इस सफलता से काफी उत्साहित हैं क्योकि भौतिकशास्त्र की सबसे बड़ी खोंजों में से यह एक होगी। जाहिर है, हिग्ज बोसान का अस्तित्व सिद्ध नही होता तब भी यह भौतिकी इतिहास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक होती। बोसान कुछ खास किस्म के एटामिक कणों को कहते हैं जिनका नामकरण महान भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्रनाथ बोस के नाम पर किया गया है।1960 के दशक में अंगरेज भौतिकशास्त्री पीटर हिग्ज और उनके सहयोगियों ने हिग्ज बोसान की अवधारणा प्रस्तुत की। इस अवधारणा के मुताबिक विभिन्न सूक्ष्म कणों की संहति या भार इस विशिष्ट कण की वजह से होता है। यानि हिग्ज बोसान की खोज के साथ ही परमाणु भौतिकी का वह माडल पूरा हो गया जिसे स्टैंडर्ड माडल कहते हैं और जिसके आधार पर प्रकृति में पाये जाने वाले तमाम सूक्ष्म कणों और बलों के कार्य-कारण की व्याख्या हो सकती है, सिवाय गुरुत्वाकर्षँण के। सैद्धांतिक रूप से तो यह माडल सही था लेकिन इसको पूरी तरह से सही तब कहा जा सकता था जब इसकी प्रायोगिक स्तर पर तस्दीक हो सके।
आधुनिक भौतिक शास्त्र में सबसे मुश्किल काम प्रयोगों से कुछ सिद्ध करना है। क्योंकि हम या तो बहुत विराट शक्तियों और प्रकाश वर्षों के आमने सामने होते हैं या अत्यंत सूक्ष्म कणों और सेकेंड के हजारों-हजारवें हिस्से से हमारा साबक पड़ता है। इस स्तर की नाप-जोख अक्सर असंभव ही साबित होती है। हिग्ज बोसान कोई आसानी से दिखने वाला कण नही है, उसका अस्तित्व इतने कम समय  के लिये होता है कि उसके सामने एक सेकेंड भी कई युगों के समान लगे। फिर वह आसानी से स्वतंत्र रूप में मिलने वाला भी नही।  इसलिये वेज्ञानिकों ने ये तय किया कि सृष्टि के आरंभ  यानि बिग बैंग जैसी परिस्थितियाँ पैदा की जाय। एल एच सी में फ्रांस और स्विट्जरलैण्ड की सीमा पर धरती से 174 मीटर नीचे और 27 किमी लंबी सुरंग है, जिसमें बहुत तेजी से सूक्ष्म कणों को आपस में टकराया जाता है। सैकड़ों बेहद सूक्ष्म संवेदी मापक हर हलचल को रिकार्ड करते रहते हैं औऱ दुनिया में बैठे वैज्ञानिक अपने-अपने कंप्यूटरों पर इस जानकारी का विश्लेषण करते रहते हैं। इसी प्रयोगों के दौरान उन न्यूट्रिनों का भी पता चला था जिनकी गति संभवतः प्रकाश की गति से भी ज्यादा तेज है। अगर हिग्ज बोसान न भी मिलता तब भी इस प्रयोग से इतनी जानकारी मिल ही रही थी जो वैज्ञानिकों को वर्षों तक व्यस्त रखती। प्रयोग 2008 में शुरू हुआ था और धीरे-धीरे हिग्ज बोसान की खोज का दायरा सिमट गया। वैज्ञानिक यह सोचने लगे थे कि कणों को वजनदार बनाने वाला वह कण नही मिला तो फिर क्या संभवनायें हो सकती है। लेकिन दे डिटेक्टरों से संकेत मिलने पर अब फिर उत्साह लौटा है। जल्द ही यह घोषणा हो सकती है कि पीटर हिग्ज ने जो सोचा था, वह सही निकला।
हिंदुस्तान अखबार, संपादकीय- 15-12-2011 से साभार
दिल से निकलगी, ना मरकर भी, वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी....।

Friday, December 9, 2011

ठंड की शुरूआत

 दिल से निकलगी, ना मरकर भी, वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी....।
जब बादलों ने धरती से अपना पुराना हिसाब चुकाने का अच्छा समय देखकर सूर्य देव से साँठ-गाँठ की और चुपके-चुपके एक समझौता करके धरती की गपशप की साथिन धूप को चौखट पार नही करने दिया तब बेचारी सीधी-सादी धूप बादल और सूर्य के जाल में फँसकर अपनी सहेली से मिल नहीं पायी और गुस्से में सूर्य को गालियाँ देने लगी...लेकिन कुछ हो नही पाया। बादल कुछ ज्यादा ही चालाक निकला और उसने धरती को ताना मारा अब तुम्हारी सारी हेकड़़ी निकल जायेगी जब बच्चों जैसे तुम्हारे पशु-पक्षी-पेड़-पौधे और यहाँ तक कि मनुष्य भी त्राहि-त्राहि करने लगेंगे। तब धरती ने कहा-
धरती-
तुम जैसे पाषाण हृदय दूसरों का दर्द क्या समझेंगे, जिनका अपना कोई घर नही, कोई परिवार नही वे लोग तो दूसरों को तकलीफ देकर अपने लिये खुशी तलाशने की बेवकूफी जीवन पर्यंत करते रहते हैं।
बादल-
मेरा कोई घर नही इसलिये मैं निश्चिंत रहता हूँ...मुझे परिवार का डर नही सताता और न ही मुझे अपने संबंधियों के लिये कोई चिंता करनी पड़ती है...अगर इस स्वतंत्रता और बेफिक्री के आनंद से तुम वंचित हो तो इसमें कोई आश्चर्य नही कि तुम इर्ष्या के दावानल में जलती रहो।
धरती-
जिस घर के न रहने से तुम निश्चिंत रहते हो, जिस परिवार के भरण-पोषण का डर तुम्हे दिन रात सताता रहता है औऱ जिन संबंधियों के न होने से तुम बेफिक्र रहते हो उसके पास होने के सुकून और शांति से तुम कोसों दूर रहे हो ठीक उसी तरह जैसे चंद्रमा से चातक दूर रहता है।
बादल-
चातक अपनी बेवकूफी की वजह से कष्ट भोगता है वरना प्यास तो किसी भी जल से बुझ सकती है।
धरती-
तुम जैसे बेवकूफ जीवन भर यही सोचते रहेंगे कि चातक प्यास बुझाने के लिये स्वाति की बूँद का इंतजार करता है।

मतदान स्थल और एक हेडमास्टर कहानी   जैसा कि आम धारणा है, वस्तुतः जो धारणा बनवायी गयी है।   चुनाव में प्रतिभागिता सुनिश्चित कराने एवं लो...