Friday, May 10, 2013

मनमोहन का नया अवतार...Manmohan the saviour...!


अटल वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल के दौरान कुछ दिनों के लिये प्याज के दाम 70 से 80 किग्रा हो गये थे। उस साल के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने एक गाने के सहारा लिया था। गाने का तर्ज, तुम तो ठहरे परदेशी, साथ क्या निभाओगे, का था और बोल कुछ इस प्रकार के थे-
का हो अटल चाचा, पियाजुआ अनार हो गईल....
कहना ना होगा कि इस गाने ने पूर्वांचल में  ऐसी धूम मचाई कि भाजपा का पत्ता यूपी से कट गया और आजतक भाजपा अपनी जड़े तलाश कर रही है। दूसरी ओर यूपीए सरकार का दसवाँ साल पूरा होने के लघभग करीब है और दो बार के इस कार्यकाल के दौरान कांग्रेस पर न जाने कितने प्रकार के आरोप लगे, मँहगाई बढ़ी, आतंकवादी हमले हुये, लेकिन न मनमोहन बदले और नही सोनिया गाँधी। अन्ना का तूफान भी यूपीए सरकार को हिला नहीं सका। कैग की रिपोर्ट, सुप्रीम कोर्ट का डंडा तक इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाये। सीबीआई भी इनके एजेंट की तरह काम करती है।
लेकिन इन सबके बीच जो सबसे बड़ी हैरानी वाली बात है, वो है मनमोहन सिंह का बर्ताव। जिन मनमोहन सिंह को पूरा देश शालीन, शांत और सोनिया गाँधी की हाँ में हाँ मिलाने वाला कहता था वही मनमोहन आज एक ऐसे आदमी की ढाल बनकर खड़े हैं जिसे  सुप्रीम कोर्ट ने भी जलील कर दिया है। जिस आदमी पर सी बी आई की रिपोर्ट में बदलाव कराने का आरोप है। सोनिया गाँधी की नाराजगी के बावजूद अश्विनी कुमार अगर बचे हुये हैं तो सिर्फ मनमोहन सिंह की वजह से।
ये ताकत कहाँ से आई इस पर मंथन करना चाहिये। लेकिन मंथन करने से भी क्या हासिल होगा, सिर्फ मेहनत ही जाया होगी। असल मे सारा खेल आपसी मिलीभगत से हुआ है जिसमें कांग्रेस के नेतृत्व से लेकर पूरा सरकारी तंत्र शामिल है। मनमोहन सिंह की जिद और कवच रूपी अवतार को उनकी प्रवृत्ति समझने की भूल करना बेमानी होगा। असल में दूसरे के कंधे का सहारा लेकर बंदूक चलाना राजतिज्ञों की पुरानी आदत रही है। अश्विनी कुमार जायेंगे तो, मनमोहन पर उंगली उठेगी, और अगर मनमोहन पर उंगली उठी तो सोनिया उसकी जद में आ ही जायेंगी। तो सारा खेल खाने और बचने-बचाने का है।


दिल से निकलगी, ना मरकर भी, वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी....।

मतदान स्थल और एक हेडमास्टर कहानी   जैसा कि आम धारणा है, वस्तुतः जो धारणा बनवायी गयी है।   चुनाव में प्रतिभागिता सुनिश्चित कराने एवं लो...