माया की जूठन कमल पे आये,
भ्रष्टाचारी मंत्रियों को भाजपा गले लगाये,
गले लगाके भाजपा खूब करे सम्मान,
जैसे द्वार सुदामा के आये हों भगवान।
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर साँप छछुंदर जैसी स्थिति में अपने आपको हमेशा पाने वाली भाजपा ने कुछ दिनों पहले ये साबित कर दिया कि, क्षणिक लाभ के लिये सभी पार्टियाँ देश औऱ जनता, दोनों से विश्वासघात करने में अपने कदमों को पीछे नही हटातीं। जिन मंत्रियों को बसपा ने लात मारकर निकाल दिया था उन्हे भाजपा ने गले लगाकर अपनी फटी तहमद में दो चार पैबंद और जोड़ लिये। उत्तर प्रदेश में पिछले पाँच वर्षों के दौरान भाजपा शीतलहर में उगने का प्रयास कर रहे सूरज की भांति जद्दोजहद करती नजर आयी और 2011 के शुरूआती दौर में अन्ना के आंदोलन से निकली चिंगारियों की सहयता से राजनीति के भँवर में डूबती उतरती अपनी नैया में ईंधन देने का प्रयास करते हुये 2012 के शुरुआत में ऐसे औंधे मुँह गिरी कि उसे बसपा के त़ड़ीपार मंत्रियों का दामन थामने के लिये विवश होना पड़ा। राजनीति के अखाड़े में मायके और ससुराल के बीच में झूलती नई नवेली दुलहिन की भाँति नेताओं का रूठना और मानना आम बात है लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इनका जमीर उन्हे रोकता है या नही। शायद नही रोकता तभी तो नटों की भाँति रस्सी पर चलते हुये इन्हे गिरने का कोई डर नहीं सताता क्यों हाथ में थमी बल्ली इन्हे गिरने में लगी चोट से बचाती है। अगर नेताओं में भय की लहर जगानी है तो इनके हाथ में थमी बल्ली को इनसे छीनना ही होगा।
दिल से निकलगी, ना मरकर भी, वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी....।
भ्रष्टाचारी मंत्रियों को भाजपा गले लगाये,
गले लगाके भाजपा खूब करे सम्मान,
जैसे द्वार सुदामा के आये हों भगवान।
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर साँप छछुंदर जैसी स्थिति में अपने आपको हमेशा पाने वाली भाजपा ने कुछ दिनों पहले ये साबित कर दिया कि, क्षणिक लाभ के लिये सभी पार्टियाँ देश औऱ जनता, दोनों से विश्वासघात करने में अपने कदमों को पीछे नही हटातीं। जिन मंत्रियों को बसपा ने लात मारकर निकाल दिया था उन्हे भाजपा ने गले लगाकर अपनी फटी तहमद में दो चार पैबंद और जोड़ लिये। उत्तर प्रदेश में पिछले पाँच वर्षों के दौरान भाजपा शीतलहर में उगने का प्रयास कर रहे सूरज की भांति जद्दोजहद करती नजर आयी और 2011 के शुरूआती दौर में अन्ना के आंदोलन से निकली चिंगारियों की सहयता से राजनीति के भँवर में डूबती उतरती अपनी नैया में ईंधन देने का प्रयास करते हुये 2012 के शुरुआत में ऐसे औंधे मुँह गिरी कि उसे बसपा के त़ड़ीपार मंत्रियों का दामन थामने के लिये विवश होना पड़ा। राजनीति के अखाड़े में मायके और ससुराल के बीच में झूलती नई नवेली दुलहिन की भाँति नेताओं का रूठना और मानना आम बात है लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इनका जमीर उन्हे रोकता है या नही। शायद नही रोकता तभी तो नटों की भाँति रस्सी पर चलते हुये इन्हे गिरने का कोई डर नहीं सताता क्यों हाथ में थमी बल्ली इन्हे गिरने में लगी चोट से बचाती है। अगर नेताओं में भय की लहर जगानी है तो इनके हाथ में थमी बल्ली को इनसे छीनना ही होगा।
दिल से निकलगी, ना मरकर भी, वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी....।