Sunday, September 16, 2012

राज ठाकरे और मुंबई में क्षेत्रवाद का जहर



(यह लघु लेख मैने दिल्ली में रहते हुये 19 जनवरी 2008 में लिखा था)
भारत में संविधान का माखौल उड़ाने के कई उदाहरण मिल सकते हैं। वर्तमान में उत्तर भारतीयों के प्रति मुंबई में अपनाई गई जातीय एवं क्षेत्रीय हिंसा इसमें अगली कड़ी साबित होती है।
संविधान भारत के प्रत्येक नागरिक को भारत में कहीं भी निवास करने, व्यवसाय करने, संपत्ति खरीदने अथवा धर्म संस्कृति या परंपराओं का निर्वाह करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है, और इन क्रिया कलापों में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न करना, संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन है। कहाँ एक व्यक्ति विशेष के अधिकारों का हनन ही एक गंभीर एवं संवेदनशील मसला है, और यहाँ तो हजारों उत्तरभारतीयों के मौलिक अधिकारों के हनन का प्रश्न है। पिछले दिनों समाचार पत्रों में खबर आयी थी कि आनन-फानन में मुंबई छोड़ने के क्रम में उत्तर भारतीयों ने खोलियाँ बावन हजार एवं साइकिलें 50 रुपयें में बेचीं।
यह प्रथम घटना नही है जब उत्तर भारतीयों के विरुद्ध सुनियोजित तरीके शारीरिक एवं मानसिक आक्रमण हुआ हो, यह भी नही है कि  मुंबई ही इसका अखाड़ा रहा हो। इसके अतिरिक्त पूर्वोत्तर, जम्मू कश्मीर, पंजाब इत्यादि में भी इसकी धमक सुनाई दे जाती है। यदि समग्र रूप में न देखें तो छिटपुट रूप में भारत के प्रत्येक कोने में उत्तर भारतीयों के प्रति दोयम दर्जे का नजरिया रखा जाता है । यह कुछ ऐसा वैसा ही प्रतीत होता है जैसा कि औपनिवेशिक भारत में गोरों व कालों के प्रति होता था। दक्षिण भारत इस मामले में अधिक उर्जावान है जहाँ उत्तर भारतीयों को हेय दृष्टि से देखा जाता है। विनोद का बात यह है कि राजधानी दिल्ली इस मामले में भारत के अन्य क्षेत्रों से प्रतिद्वंदिता करती है, जिसका अस्तित्व ही उत्तर प्रदेश पर टिका है।
यह मुद्दा मात्र मुंबई का नही वरन पूरे भारत का है। क्या उत्तर भारतीय सर्वत्र मात्र इसी वजह से तिरस्कृत किये जाते हैं कि ने हर जगह निम्न तबके से सम्बन्ध रखते हैं। ध्यान रखने योग्य बात यह है कि यदि उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग, मुंबई , पंजाब, हरियाणा, दिल्ली एवं अन्य राज्यों एवं शहरों से वापस आ जायें तो वहाँ की अर्थव्यवस्था चरमरा जायेगी। स्मरणीय है कि यदि उत्तर भारतीयों का कब्जा व्यापार, उद्योग इत्यादि पर रहता तो उनकी स्थिति इतनी ज्यादा खराब नहीं होती।
हम अभी भी औपनिवेशिक भारत में रह रहे हैं।
19-01-2008


दिल से निकलगी, ना मरकर भी, वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी....।

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