Friday, May 29, 2020

ज्ञान का मुण्डन-कोरोना काल में...

हरि ऊँ तत्सत् !
मेरे पुत्र ज्ञानेश्वर पटेल का जन्म 5 सितंबर 2017 हुआ था। उसका मुण्डन तीसरे वर्ष यानि कि 15 जून 2020 को निर्धारित था। हमारे कुल में बच्चों का मुण्डन संस्कार जीवन के तीसरे वर्ष में ही होता है इसलिये ज्ञान का यह संस्कार भी इसी वर्ष में होना था। चूँकि हम लोग विद्यालय में बने अल्पकालिक आवास में ही रहते हैं इसलिये पिछले वर्ष नवंबर में पंडित जी से विमर्श करके दिन तय कर लिया था। दिन तय करने में कई बातें ध्यान में रखनी थी, जैसे विद्यालय की छुट्टियों के दौरान ही मुण्डन कराना था। मई 2020 में गोलू (ज्ञान व गौरी के मामा) की शादी थी तो मुण्डन कार्य उसकी शादी के बाद ही कराना था क्योंकि 15 मई से पहले विद्यालय बन्द होने वाले नहीं थे। जुलाई अगस्त में बरसात का मौसम होता है और सितंबर में उसका चौथा वर्ष शुरू हो जाता। इसलिये जून में 15 तारीख को उसका मुण्डन संस्कार कार्यक्रम तय किया गया।
इंसान अपने हिसाब से अपने कार्यक्रम तय करता है लेकिन नियति की योजनायें कुछ और होती हैं। मार्च में कोरोना महामारी का प्रकोप बढ़ना प्रारंभ हुआ और धीरे-धीरे लोगों के उत्सवादि आगे बढ़ते गये इस आशा में कि महामारी का प्रकोप खत्म हो जायेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बीमारी खत्म होने के बजाय बढती गई। गोलू की शादी मई से बदलकर दिसंबर 2020 में पहुँच गई। 
समस्या हमारे सामने भी खड़ी हो गई। विद्यालय बन्द होने की वजह से हाथ भी तंग था लेकिन मुण्डन कराना अनिवार्य से भी जरूरी था। मई महीने में माताजी ने बताया कि परिवार में मुण्डन कार्य ज्येष्ठ महीने अर्थात जून में नही होता है। कंगाली में आटा गीला वाली स्थिति हो गई। जून में होने वाले मुण्डन को मई में ही कराना था। पंडित जी से फिर से विमर्श किया गया और 27 मई को तय किया गया। आनन-फानन में तैयारी शुरू की गई। 
लाकडाउन की वजह से ज्यादा लोगो को आमंत्रित नहीं किया जा सकता था। इसलिये मुण्डन में सिर्फ अपने कुल के लोगों को बुलाया गया। रिश्तेदारों में मेरी बहन सुमित्रा पटेल और मेरी बुआ जी को आमंत्रित किया गया। वो आमंत्रण भी परिस्थितिवश मात्र मौखिक था। किसी और रिश्तेदार को नहीं बुलाया जा सका। 
रात को भोेजन के समय भी गिने चुने लोगों को आमंत्रित किया गया इस वजह से कि भीड़-भाड़ न हो और प्रशासन को किसी तरह का मौका न मिल सके। भोजन बनाने का कार्यभार मैने स्वयं उठाया और 26 मई को गुलाबजामुन बनाकर कार्य का शुभारंभ किया। ईश्वर की कृपा से मिठाई अच्छी बनी और सभी को पसंद आई। 27 मई को सुबह जल्दी ही हमने सारी तैयारी कर ली किन्तु माता स्थान पर थोड़ी सी चूक ने देरी करा दी। कार्यक्रम शुरू होने में 9 बज गये और थोड़ी ही देर  में वायु देव ने अपना प्रचंद रूप दिखा दिया। हवायें बहुत तेज चलने लगीं और किसी तरह से धूल-अंधड़ के बीच में मुण्डन कार्य 10.30 बजे तक संपन्न हो गया। पंडित जी को विदा करने के बाद सभी लोग विद्यालय वापस आये और भोजनादि से निवृत्त होने के बाद भोजन बनाने के कार्य में 1.00 बजे से लगा गया। 
भोजन में पूरी-पुलाव-पनीर-आलू,परवल की सब्जी-मीठा-पापड़ और सलाद का प्रबंध करना था। मीठा पहले से तैयार था बाकी को तैयार करना था। भोजन बनाने में गुड़िया, सुशील सर, विजय और गोलू इत्यादि सहायता करने के लिये साथ थे। 
खैर बिना किसी व्यवधान और बाधा के मातारानी के कृपा से लघभग 50 लोगों का भोजन 8.00 बजे के पास तैयार हो गया। भोजन बनाने के बाद मैने कपड़े बदले और लोगों को भोजन कराने के कार्य में उद्यत हो गया। भोजन करने वाले सभी लोगों ने भोजन की प्रशंसा की और बताने के बाद ही उन्हे पता चला कि भोजन मैने बनाया है। लोगों को आश्चर्य के साथ प्रसन्नता भी हूई। 
सबसे बड़ी खुशियों में से एक खुशी यह भी है, लोगों को हाथ से बनाकर भोजन खिलाना। 
भोजन हाथ से नहीं, दिल से बनता है। 
मातारानी का आशीर्वाद सदैव साथ रहे। 
हरि ऊँ तत्सत!
दस्तक सुरेन्द्र पटेल

Friday, May 22, 2020

कोरोना महामारी बनाम अन्य खतरनाक बीमारियाँ-1

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दस्तक सुरेन्द्र पटेल 
आज पूरी दुनिया में चारों ओर जानलेवा बीमारी कोविड-19 का खौफ छाया हुआ है। बच्चा-बच्चा आज इस बीमारी के बारे में जानता है। पूरी दुनिया में लाखों लोग इस बीमारी की वजह से जान गँवा चुके हैं। 
दिनांक 22.05.2020 तक कोरोना के उपलब्ध आँकड़ेें निम्नवत हैं-
    
  क्रम.    क्षेत्र     संक्रमित उपचारित    मृत्यु 
 1    

विश्व 

 50.8 लाख19.4 लाख 3.32    लाख     
 2         भारत1.18 लाख 48534  3583 
स्रोत-विकीपीडिया
अर्थव्यवस्था तबाह-
यह बीमारी जिसकी वजह से भारत जैसे वृहद जनसंख्या वाले देश में पिछले दो महीने से लाकडाउन की स्थिति है। उद्योग धंधे बन्द हैं, आवागमन ठप है, व्यापार की कमर टूट चुकी है। आम आदमी के लिये भूखों मरने की नौबत आ चुकी है। सरकार धीरे-धीरे लाकडाउन में ढील दे रही है। लेकिन बीमारी से प्रभावित लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है।

क्या यह मानव इतिहास की सबसे जानलेवा बीमारी है-
ऐसे में यह सवाल सहज ही दिमाग में आता है कि क्या यह बीमारी आज तक की सबसे खतरनाक बीमारी है जिसने इंसान को घुटनों के बल ला दिया है। क्या इससे बचने का कोई तरीका नहीं है। क्या इस बीमारी से मरने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है। क्या इस बीमारी से दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका हार गया है।

जानते हैं कुछ ऐसी बीमारियों के बारे में जो ज्यादा जानलेवा रही हैं और हैं भी-
बच्चे बीमारियों की चपेट में जल्दी आते हैं। क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली अविकसित होती है। उन्हे अपनी सुरक्षा के विषय में ज्यादा कुछ पता भी नहीं होता। बचने के उपायों के बारे में वो ज्यादा जागरूकता नहीं दिखाते। यह उनकी अवस्था का परिचायक होता है।  तो सबसे पहले शुरू करते हैं बच्चों की कुछ बीमारियों से-

निमोनिया-
निमोनिया दुनिया में सबसे पहले कब डाइग्नोस हुआ था, इसके बारे में ठीक-ठीक नहीं पता। किन्तु इतना अवश्य है कि इस बीमारी की वजह से हर साल लाखों बच्चे मौत के मुँह में चले जाते हैं। पाँच साल तक के बच्चों में यह बहुत ही आम बीमारी है। 

अविश्सनीय-
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में भारत में निमोनिया की वजह से एक लाख सत्ताइस हजार बच्चों की मौत हुई है। दूसरी ओर पूरी दुनिया में इस बीमारी की वजह से मरने वाले बच्चों की संख्या आठ लाख से ज्यादा है। यानि कि हर 39 सेकण्ड में एक बच्चे ने निमोनिया की वजह से  अपनी जान गँवाई है। 

ये हैं शीर्ष पांच देश : 
क्र.स.    देश              मौतें
1.         नाईजीरिया     1,62,000 
2.         भारत            1,27,000 
3.         पाकिस्तान     58,000 
4.          कांगो           40,000 
5.          इथोपिया      32,000 

स्रोत-यूनिसेफ

निमोनिया से मरने वाले बच्चों की संख्या के मामले में भारत की स्थिति इतनी खराब है कि उससे ऊपर बस अफ्रीकन देश नाइजीरिया है, जहाँ के हालात बदतर हैं। 


कोरोना से तुलना-

अगर बात करें कोरोना से तुलना की तो देश में कोरोना का पहला केस सामने आने के बाद कुल मामलों की संख्या लघभग 1,18000 है। मरने वालों की संख्या 3583 है। यूनिसेफ द्वारा प्रदान किये गये आंकड़े पर नजर डालें तो 2018 में लघभग 1,27000 बच्चे, सिर्फ बच्चे ही मरें हैं।


सबसे बड़ी समस्या-

स्वास्थ्य क्षेत्र में आने वाली नई चुनौतियों और सामने आने वाली नई बीमारियोे के बीच यह लघभग भूला जा चुका है कि निमोनिया भी एक जानलेवा बीमारी है। 


वजह सिर्फ इतनी है कि -

1-इससे मरने वाले वो बच्चें है जो अपने हक की आवाज नहीं उठा सकते हैं।

2-इससे मरने वालों बच्चों की संख्या धीरे-धीरे सामने आती है। 

3-इससे मरने वाले बच्चे अविकसित और विकासशील देशों में रहते हैं।

4-इसकी वजह से लाकडाउन लगाने की नौबत कभी नहीं आती।

5-इसकी वजह से अर्थव्यवस्था को समग्र नुकसान नहीं होता।


सवाल-

पर क्या इसी वजह से निमोनिया जैसी घातक बीमारी से मरने वाले बच्चों की संख्या भारत में इसी तरह लाखों में रहेगी। 


Friday, May 15, 2020

राजा, दूध का तालाब और प्रजा की आज के समय में प्रासंगिकता

मैं आप लोगों को एक कहानी सुनाता हूँ जिसे मैं आमतौर पर अपने विद्यार्थियों को सुनाता हूँ....। बात पुरानी है, जब राजा लोग हुआ करते थे। उनकी प्रजा होती थी। प्रजा को उनका हुक्म मानना पड़ता था। राजा को अक्सर यह बात सालती रहती थी कि वह कोई ऐसा कार्य करे जिससे उसका नाम अमर हो जाये। क्या करे, ऐसी मंत्रणा उसने अपने मंत्रियों से की। मंत्रियों ने रास्ता सुझाया। उन्होने कहा कि महाराज को एक ऐसा तालाब बनवाना चाहिये जो दूध से भरा हो। इस प्रकार का तालाब न देखा गया है न सुना गया है। यकीनन राजा का नाम विश्व भर में प्रसिद्ध हो जायेगा। राजा को बात अच्छी लगी। अगले ही दिन पूरे प्रजा में फरमान सुना दिया गया कि राजा एक ऐसे तालाब का निर्माण करवा रहे हैं जो दूध से भरा होगा। निर्माण कार्य पूरा होने के बाद अमुक दिन को सारी प्रजा को एक लोटा दूध लाकर तालाब में डालना है। इस प्रकार से पूरा तालाब दूध से भर जायेगा। मुनादी करवा दी गयी। निर्माण कार्य प्रारंभ हो गया। वह दिन भी पास आ गया जब तालाब में एक लोटा दूध डालना था। निर्धारित दिन के पहले एक अहीर जो राजा के राज्य में रहता था और जिसकी विशाल गोशाला थी। वह दूध के व्यापार से काफी धन कमाता था। उसने सोचा कि सभी लोग तो दूध डालेंगे ही, यदि मैं चुपके से प्रातःकाल ही एक लोटा जल डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा। मेरा एक लोटा दूध नुकसान होने से बज जायेगा। निर्धारित दिन वह प्रातःकाल उठा और सबसे पहले (अपने समझ से) तालाब में एक लोटा जल डाल आया। दिन में जब राजा तालाब का निरीक्षण करने आया तो उसने क्या देखा। पूरा तालाब जल से भरा था...।दूध की एक बूंद भीं कहीं नहीं दिखाई दे रही थी।
कहानी का वर्तमान संदर्भ बहुत प्रासंगिक है। विद्यालय प्रबंध तंत्र, आनलाइन क्लासेज और अभिभावक..बाकी आप खुद समझदार हैं।
दस्तक सुरेन्द्र पटेल 

Friday, May 8, 2020

21 दिनों का नियम...

आदतें हमारे जीवन का आइना होती हैं। महान व्यक्तियों के जीवन चरित्र पढ़ने से हमें पता चलता है कि उनकी आदतें उनके विकास के आधार स्तंभ रही हैं। अच्छी आदतें हमें अपने जीवन में ऊँचा उठाती हैं तो दूसरी ओर बुरी आदतें हमें जीवन में असफलता की ओर ढ़केलती हैं। एक व्यक्ति जिसका जीवन अनुशासित, नियंत्रित, समायोजित होता है, यकीनन वह एक सफल व्यक्ति होता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि आदतें हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
आमतौर पर यह कहा जाता है कि आदतें हमारे जीवन के प्रारंभिक वर्षों में ही तय हो जाती हैं। किसी व्यक्ति की क्या आदतें होंगी वह बचपन में ही सामने आ जाती हैं। इसीलिये बच्चों को शुरू से ही अच्छी आदतों के प्रति जागरूक बनाया जाता है। तो क्या यह कहा जा सकता है कि आदतें बदली नहीं जा सकती हैं। क्या बचपन में जो आदतें व्यक्ति के जीवन का हिस्सा बन चुकी हैं, उन्हें नहीं बदला जा सकता है। जवाब है कि बिल्कुल नहीं...।
जी हाँ...आदतों को बदला जा सकता है। बुरी आदतों को अच्छी आदतों में परिवर्तित किया जा सकता है। अपना जीवन अपनी आदतों को बदल कर बदला जा सकता है। तो फिर सवाल उठता है कैसे...?
1950 में अमेरिका के एक प्लास्टिक सर्जन ने यह सिद्धांत प्रस्तुत किया कि एक व्यक्ति जिसके चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी हुई है उसे अपने नये चेहरे के प्रति खुद को समायोजित करने के लिये कम से कम 21 दिनों की जरूरत है। यानि कि वह व्यक्ति अपने बदले चेहरे को 21 दिनों में स्वीकार कर लेगा। शुरू में उसे अपने बदले चेहरे के प्रति असहजता होगी किन्तु धीरे-धीरे उसका मन उसे स्वीकार करेगा  और अंततः 21 दिनों में पूरी तरह स्वीकार कर लेगा।
कुछ वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत को नकार दिया। लेकिन इस बात से पूरी तरह इनकार नहीं किया जा सकता है। कई सारे रिसर्च इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि कई दिनों की लगातार कोशिशों के जरिये अपनी आदतों को बदला जा सकता है। इसमें कितने दिन लगते हैं इसके बारे में स्पष्ट रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता। यह पूरी तरह से आपके आत्मविश्वास, संयम, लगन और परिश्रम पर निर्भर करता है।
सबसे बड़ा उदाहरण कोरोना महामारी के बीच भारत में केन्द्र सरकार द्वारा लगाया गया शुरुआती 21 दिनों का शूरुआती लाकडाउन है। सरकार की तरफ से यह कहा गया कि 21 दिनों का समय वायरस की कड़ी तोड़ने के  लिये है, किन्तु वास्तव में यह जनता की आदत बदलने का शुरुआती कदम था। 134 करोड़ की जनता को एकाएक हाल्ट पर नहीं रखा जा सकता था। यह नामुमकिन था। लेकिन कोरोना का डर और 21 दिनों का लंबा समय लोगों के जीवन चर्या को बदलने के लिये जरूरी था। आप देख सकते हैं कि जिस लाकडाउन ने शुरुआती दिनों में लोगों को बहुत तकलीफ दी, धीरे-धीरे लोगों ने उसे स्वीकार कर लिया। बाद में लाकडाउन को और बढ़ाया गया और अंततः 17 मई तक बढ़ा दिया गया। ्यानि कि कुल 5 हफ्ते से ज्याादा दिनों का लाकडाउन। यह बहुत ज्यादा समय है। भारत जैसे देश जहाँ की आबादी 134 करोड़ के आसपास है, एक महीने से ज्यादा का समय लोगों ने घर के अंदर रहकर बिता दिया। यह आदत बदलने के नियम का सबसे बड़ा उदाहरण है। 
दस्तक सुरेन्द्र पटेल निदेशक माइलस्टोन हेरिटेज स्कूल लर्निंग विद सेन्स-एजुकेशन विद डिफरेन्स

मतदान स्थल और एक हेडमास्टर कहानी   जैसा कि आम धारणा है, वस्तुतः जो धारणा बनवायी गयी है।   चुनाव में प्रतिभागिता सुनिश्चित कराने एवं लो...