Saturday, November 13, 2010

एन डी टीवी इमैजिन को शर्म आनी चाहिये...।

झाँसी के लक्ष्मण अहरिवार की अस्पताल में मृत्यु हो गई। वह अवसाद से पीड़ित था और उसके परिवार वालों ने कुछ दिनों पूर्व ही उसको वहाँ भर्ती कराया था। यह कोई महत्वपूर्ण बात नही है। रोज सैकड़ों लोग अस्पतालों में मरते हैं, कोई किसी को नहीं जानता। पर यह खबर अमर उजाला अखबार में निकली और तो और आज हिंदुस्तान टाइम्स, यानि कि राष्ट्रीय स्तर के अंग्रेजी अखबार में निकली है तो कोई ना कोई विशेष बात तो जरूर होगी।

विशेष यह है कि लक्ष्मण अपने परिवार के साथ एन डी टी वी इमैजिन पर आने वाले प्रोग्राम- राखी सावंत का इंसाफ, में 23 अक्टूबर को शामिल हुआ था अपने घरेलू झगड़े को सुलझाने की कोशिश में। लक्ष्मण की शादी इसी साल फरवरी में हुई थी और कुछ दिनों के बाद ही उसकी पत्नी से अनबन रहने लगी। कुछ दिनों के बाद उसकी पत्नी अपने मायके में रहने लगी और लक्ष्मण परेशान रहने लगा। पत्नी का कहना था कि ससुराल पक्ष के एक आदमी की उसपर बुरी नियति थी। सच क्या था वह तो कोई नही जानता था। लक्ष्मण को इस प्रोग्राम के बारे में जानकारी हुई और पता नही किस सोर्स या फिर जरिये उसे इस प्रोग्राम में हिस्सा लेने का मौका मिल गया। शायद उसे राखी सावंत के बारे में नही पता होगा। प्रोग्राम में राखी सावंत ने उसे कई बार नामर्द कहा। शूटिंग खत्म हुई और इसका टेलीकास्ट भी हुआ। शूटिंग के बाद से ही लक्ष्मण अवसाद में रहने लगा। कुछ दिनों के बाद उसने खाना-पानी छोड़ दिया, तब उसके परिवार वालों ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया। वहाँ कल उसकी मौत हो गई। यह खबर कल अमर उजाला में निकली थी जिसमें उसके परिवार वालों ने कहा था कि वे राखी सावंत पर केस करेंगे। आज हिंदुस्तान टाइम्स में खबर है कि लक्ष्मण के परिवार वालों ने राखी पर एफ आई आर दर्ज कराया है।


मैं इस घटिया प्रोग्राम के बारे में नही जानता और न मैने कभी इसे देखा है। सबसे ज्यादा हैरत यह जानकर हुई कि यह प्रोग्राम एन डी टीवी इमैजिन पर आता है। यह एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल है और इसकी कुछ तो नैतिकता होनी चाहिये। राखी सावंत के बारे में कुछ कहना अपनी जिह्वा पर कालिख लगाना है, इसलिये मैं उसपर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। मुझे एन डी टी वी इमैजिन के बारे में कहना है। सवाल यह है कि क्या आजकल टी आर पी के लिये न्यूज चैनल किसी भी हद तक जा सकते हैं...जवाब हैं हाँ...। पैसे के खेल में टीवी चैनल आज जानते ही नही कि उनकी क्या जिम्मेदारी है। वे घटिया से घटिया प्रोग्राम बना सकते हैं और हमारी घटिया सरकार और उसकी घटिया नीतियाँ इनको दिखा सकते हैं। अभी कुछ दिनों पूर्व सबसे घटिया चैनल, दूरदर्शन पर सरकार की ओर से एक विज्ञापन आ रहा था कि भ्रमित करने वाले विज्ञापनों पर ध्यान न दें। अरे बेवकूफों जनता तो बेवकूफ है ही....वो भ्रमित करने वाले विज्ञापनों पर ध्यान देती है या नही वह दूसरी बात है पर उन विज्ञापनों और टी वी चैनलों पर दिखाने का अधिकार कौन देता है। जनता को भ्रमित करने वाले विज्ञापनों को उन्हे देखने के लिये कौन मजबूर करता है...तुम। तुम्हारी जिम्मेदारी कहाँ गई।

सारी जिम्मेदारी सरकार और उसके बाद टीवी चैनल्स की है...वे ऐसे ही प्रोग्राम बनाना चाहते हैं जिसे जनता देखे। मीडिया अपनी नैतिक जिम्मेदारी भूलकर सिर्फ पैसा बनाने में लगी है। अगर जनता के आक्रोश का भय नही हो तो ये चैनल्स बलात्कार का भी लाइव टेलीकास्ट दिखा सकते हैं...चाहे वो किसी का भी हो...। जरूरत है सरकार अपनी जिम्मेदारी समझे और टीवी चैनल्स पर दिखाये जाने वाले प्रोग्राम्स और विज्ञापनों के लिये एक आचार संहिता बनाये...जिसे सभी चैनल्स अनुसरण करने के लिये बाध्य हों।

एन डी टीवी इमैजिन को शर्म आनी चाहिये...।

झाँसी के लक्ष्मण अहरिवार की अस्पताल में मृत्यु हो गई। वह अवसाद से पीड़ित था और उसके परिवार वालों ने कुछ दिनों पूर्व ही उसको वहाँ भर्ती कराया था। यह कोई महत्वपूर्ण बात नही है। रोज सैकड़ों लोग अस्पतालों में मरते हैं, कोई किसी को नहीं जानता। पर यह खबर अमर उजाला अखबार में निकली और तो और आज हिंदुस्तान टाइम्स, यानि कि राष्ट्रीय स्तर के अंग्रेजी अखबार में निकली है तो कोई ना कोई विशेष बात तो जरूर होगी।

विशेष यह है कि लक्ष्मण अपने परिवार के साथ एन डी टी वी इमैजिन पर आने वाले प्रोग्राम- राखी सावंत का इंसाफ, में 23 अक्टूबर को शामिल हुआ था अपने घरेलू झगड़े को सुलझाने की कोशिश में। लक्ष्मण की शादी इसी साल फरवरी में हुई थी और कुछ दिनों के बाद ही उसकी पत्नी से अनबन रहने लगी। कुछ दिनों के बाद उसकी पत्नी अपने मायके में रहने लगी और लक्ष्मण परेशान रहने लगा। पत्नी का कहना था कि ससुराल पक्ष के एक आदमी की उसपर बुरी नियति थी। सच क्या था वह तो कोई नही जानता था। लक्ष्मण को इस प्रोग्राम के बारे में जानकारी हुई और पता नही किस सोर्स या फिर जरिये उसे इस प्रोग्राम में हिस्सा लेने का मौका मिल गया। शायद उसे राखी सावंत के बारे में नही पता होगा। प्रोग्राम में राखी सावंत ने उसे कई बार नामर्द कहा। शूटिंग खत्म हुई और इसका टेलीकास्ट भी हुआ। शूटिंग के बाद से ही लक्ष्मण अवसाद में रहने लगा। कुछ दिनों के बाद उसने खाना-पानी छोड़ दिया, तब उसके परिवार वालों ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया। वहाँ कल उसकी मौत हो गई। यह खबर कल अमर उजाला में निकली थी जिसमें उसके परिवार वालों ने कहा था कि वे राखी सावंत पर केस करेंगे। आज हिंदुस्तान टाइम्स में खबर है कि लक्ष्मण के परिवार वालों ने राखी पर एफ आई आर दर्ज कराया है।


मैं इस घटिया प्रोग्राम के बारे में नही जानता और न मैने कभी इसे देखा है। सबसे ज्यादा हैरत यह जानकर हुई कि यह प्रोग्राम एन डी टीवी इमैजिन पर आता है। यह एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल है और इसकी कुछ तो नैतिकता होनी चाहिये। राखी सावंत के बारे में कुछ कहना अपनी जिह्वा पर कालिख लगाना है, इसलिये मैं उसपर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। मुझे एन डी टी वी इमैजिन के बारे में कहना है। सवाल यह है कि क्या आजकल टी आर पी के लिये न्यूज चैनल किसी भी हद तक जा सकते हैं...जवाब हैं हाँ...। पैसे के खेल में टीवी चैनल आज जानते ही नही कि उनकी क्या जिम्मेदारी है। वे घटिया से घटिया प्रोग्राम बना सकते हैं और हमारी घटिया सरकार और उसकी घटिया नीतियाँ इनको दिखा सकते हैं। अभी कुछ दिनों पूर्व सबसे घटिया चैनल, दूरदर्शन पर सरकार की ओर से एक विज्ञापन आ रहा था कि भ्रमित करने वाले विज्ञापनों पर ध्यान न दें। अरे बेवकूफों जनता तो बेवकूफ है ही....वो भ्रमित करने वाले विज्ञापनों पर ध्यान देती है या नही वह दूसरी बात है पर उन विज्ञापनों और टी वी चैनलों पर दिखाने का अधिकार कौन देता है। जनता को भ्रमित करने वाले विज्ञापनों को उन्हे देखने के लिये कौन मजबूर करता है...तुम। तुम्हारी जिम्मेदारी कहाँ गई।

सारी जिम्मेदारी सरकार और उसके बाद टीवी चैनल्स की है...वे ऐसे ही प्रोग्राम बनाना चाहते हैं जिसे जनता देखे। मीडिया अपनी नैतिक जिम्मेदारी भूलकर सिर्फ पैसा बनाने में लगी है। अगर जनता के आक्रोश का भय नही हो तो ये चैनल्स बलात्कार का भी लाइव टेलीकास्ट दिखा सकते हैं...चाहे वो किसी का भी हो...। जरूरत है सरकार अपनी जिम्मेदारी समझे और टीवी चैनल्स पर दिखाये जाने वाले प्रोग्राम्स और विज्ञापनों के लिये एक आचार संहिता बनाये...जिसे सभी चैनल्स अनुसरण करने के लिये बाध्य हों।

Friday, November 5, 2010

काश कि.... दीपावली मंगलमय हो.............




सबसे पहले, सभी दोस्तों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं...।

पूरे विश्व में, अंधकार पर प्रकाश के विजयोत्सव के रूप में मनाया जाने
वाला, एकमात्र उत्सव है...दीपावली। हमारी संस्कृति और परंपराओं ने सदा ही
सृष्टि के कण-कण को उसकी उपयोगिता और प्रासंगिकता के अनुसार महत्व प्रदान
किया तथा उनसे सीखने का प्रयास भी किया है। हमने अच्छाईयों को सीखने की
कोशिश की और हमने उनको व्यवहार में लाने का प्रयास किया, किंतु हर काल
में, समाज व्याप्त प्रति ताकतों ने हमें वैसा करने से रोका, उन आदर्शों
पर चलने एवं उनको प्राप्त करने के पथ में अवरोध उत्पन्न किये। दुख की बात
है कि हमारी अच्छी सोच व दृष्टिकोण सदैव ही उनके प्रतिदृष्टिकोण के सामने
दीन-हीन ही सत्यापित हुए हैं, जिसके फलस्वरूप कुछ लोगों ने दिग्भ्रमित
होकर हमारी अपनी ही परंपरा और संस्कृति के प्रति आक्रामक रुख अपना लिया।

मित्रों भारतीय संस्कृति और इसकी सर्वहितकारी सोच ने कभी भी किसी का बुरा
नही चाहा, यह प्राणि मात्र की भलाई के प्रति अग्रसर करने वाली एक अनादि
सोच व दृष्टिकोण है जो हमारी स्वयं की उपेक्षा की शिकार है। कोई भी देश
और समाज अपनी संस्कृति और परंपराओं को छोड़ कर लंबे समय तक अपना अस्तित्व
बनाकर नही रख सकता। शायद ही आपको पता हो कि औपनिवेशक काल में, जब
इंग्लैंड और अन्य यूरोपीय देशों ने व्यापार के नाम पर पूरे एशिया को अपने
पंजे में कसना प्रारंभ किया था और चीन को अपने कब्जे में ले लिया था, तब
जापान ने क्या किया था। वह उस समय उन औपनिवेशिक ताकतों के खिलाफ एक दम से
खड़ा नही हो सकता था...सोचिये उसने अपना अस्तित्व बचाने के लिये क्या
किया...। 1636 ईस्वी में जापान ने सारे विदेशियों को अपने देश से निकाल
दिया और अपने आपको मोहरबंद कर लिया। उसने अपने सारे वैदेशिक संबंध तोड़
लिये और अपने समुद्र किसी भी प्रकार के व्यापार के लिये बंद कर लिये।
जापान से न कोई बाहर जा सकता था और न ही अंदर आ सकता था, भले ही वह
जापानी ही क्यों ना हो। लघभग दो सौ सालों तक जापान ने अपने आपको शेष
दुनिया से अलग रखा। किसी भी प्रकार की कोई हलचल का जापान पर प्रभाव नही
पड़ा और इस समय का उपयोग उसने अपना विकास अपने दम पर करने में लगाया, अभी
जापान पूरे विश्व में कहाँ खड़ा है, किसी से छुपा नही है। विश्व की सबसे
बड़ी त्रासदी...दो-दो एटम बमों को अपने सीने पर खाकर भी ये देश मानों पूरी
दुनिया को संदेश दे रहा है कि, तुम हमारी सभ्यता, संस्कृति और परंपरा को
नही खत्म कर सकते।


दीपावली के अवसर पर शायद आपको लग रहा हो कि मैं संस्कृति, परंपरा इत्यादि
का रोना क्यों रो रहा हूँ...। पहली बात कि हमें इन्हे बचाकर रखना
है...क्योंकि आगे आने वाली पीढ़ी को हम क्या देने वाले हैं, यह हमें सोचना
है। हमें उन्हे पिज्जा बर्गर देकर यह संदेश देना है कि हम नकलची बंदरों
ने उन स्वाद का मतलब न समझने वाले गधों के बनाये फास्ट फूड्स चटखारे
ले-लेकर खाये और अपना सत्यानाश कर लिया..या फिर विकास का सही मतलब समझते
और अपनाते हुये अपनी धरोहर को सँजोते हुये भविष्य का संदेश।

भारत के सामने हमेशा से चुनौतियाँ रही हैं और रहेंगी, बस उनमें परिवर्तन
इतना ही हो सकता है कि उनका स्वरूप बदल जाये...। वर्तमान में चुनौतियों
का स्वरूप भ्रष्टाचार, गरीबी, असमानता और अशिक्षा के रूप में हैं, हम
इन्हे दूर कर सकते हैं या फिर पिज्जा बर्गर खाते और कोक पीते हुये फुटपाथ
पर चीथ़ड़ों में लिपटी बूढ़ी औरत पर हँस सकते हैं...। अँधेरे चारों ओर
व्याप्त हैं, एक अमावस्या पर छाये घने अंधेरे को अपने घर में दिये जलाकर
दूर करने का प्रयास काफी नही है, जबतक कि एक अरब लोगों के आस पास छाया
अंधेरा दूर नही होगा....।


सुरेंद्र...

दीपावली

05 नवंबर 2010

Thursday, November 4, 2010

हम आजाद हैं...

मैं पिछले कई दिनों से एक छोटी पुस्तक लिखने की कोशिश कर रहा था जिसका शीर्षक था- क्या हम आजाद हैं। लागातार कई बार लिखना प्रारंभ करने के बाद भी मुझे कोई ठोस शुरुआत नहीं मिली जिस रास्ते पर चलते हुए मैं यह पुस्तक पूरी कर पाता, पूरी क्या कर पाता, इसका पहला चैप्टर-आजादी क्या है, को ही पूरा कर पाता। मेरी समझ में यह बिलकुल नही आ रहा था कि मैं इस विषय पर मैं क्यों नही लिख पा रहा हूँ...जबकि मैंने कई छोटे-छोटे विषयों पर लंबे-लंबे लेख बड़ी आसानी से लिखे हैं। यह एकदम से विचित्र बात थी, क्योंकि इसकी भूमिका मैंने पहले ही लिख दी थी लेकिन उससे भी मुझे कोई सहायता नही मिली। अपने लिख पाने की असमर्थता को मैने अपने दोस्तों के सामने भी व्यक्त किया लेकिन कोई निष्कर्ष नही निकला। सबसे बड़ी समस्या यह थी कि मुझे शुरुआत ही नही मिल रही थी। मैने कई बार लिखा, फिर फाड़ा, और फिर लिखा...पर मन को संतुष्टि नही मिली, कहीं से भी कोई लाइन मानकों को नही पूरा कर रही थी।

मैं बार-बार की कोशिशों के बावजूद भी, क्या हम आजाद हैं, विषय पर क्यों नही लिख पाया...इसका उत्तर मुझे कल मिला। कल 2 नवंबर को मुझे बामसेफ (आल इंडिया बैकवर्ड एंड माइनारिटी कम्यूनिटी इंप्लाई फेडरेशन) के भारत मुक्ति मोर्चा के क्षेत्रीय सम्मेलन में जाने का अवसर मिला जिसकी चर्चा का विषय था कि 1947 की आजादी वास्तविक रूप में आजादी नही थी, वह यूरेशियाई ब्राह्मणों द्वारा अपनी आजादी की लड़ाई थी। मुझे बामसेफ के जिला सचिव डा. एस.एस. पटेल ने बुलाया था, जिनसे अक्सर सम-सामयिक विषयों पर चर्चा हो जाया करती है। उन्होनें मुझे वहाँ एक फोटोग्राफर की हैसियत से बुलाया था। जब मैं वहाँ पहुँचा तो कार्यक्रम शुरू हो चुका था। यहाँ एक बात स्पष्ट कर दूँ कि यह बहुत बड़ा सम्मेलन नही था जिसमें हजारों लोग उपस्थित थे। खैर सम्मेलन शुरू हो चुका था जिसकी अध्यक्षता बामसेफ के राष्ट्रीय सचिव, चमनलाल कर रहे थे...और मुझे बिलकुल भी पता नही चला कि वो कौन हैं क्योंकि जिस आदमी को मैं चमनलाल समझ रहा था वे पास के कस्बे के वक्ता निकले। स्षानीय लोग बोल रहे थे और मैं फोटोज ले रहा था।





बामसेफ एक ऐसा संगठन है जिसका एक ही घोषित कार्यक्रम है, देश में व्याप्त सभी प्रकार की समस्याओं का जिम्मेदार एक ही कारण है-ब्राह्मण। उनका एक ही उद्देश्य है, ब्राह्मणों को ऊंचे पदों से हटाकर स्वयं कब्जा जमाना। जाहिर सी बात है कि बामसेफ का सम्मेलन था तो वक्ता भी उसके घोषित कार्यक्रमों और उद्देश्यों के अनुसार ही बोलेंगे। कई वक्ता आये और उन्होनें अपना विचार प्रकट किया। सभी लोग एक सुर में गाँधी की कठोर शब्दों में भर्त्सना कर रहे थे और यथास्थान अनुपयुक्त शब्दों से नवाज भी रहे थे। यहाँ एक बात महत्वपूर्ण है कि बामसेफ के कार्यकर्ताओं में हमारे इतिहास को लेकर एक भ्रम की स्थिति बना दी गई है जिसमें फँसकर वो उसी को सत्य मानते हैं जो उन्हे बताया जाता है। उनके अपने कुछ लेखक हैं अथवा उन लेखकों से वैचारिक सामंजस्य है जो दशकों से हमारी संस्कृति, परंपरा और धर्म के विषय में अनर्गल बातें लिख रहे हैं।

वक्ता बोल रहे थे और मैं फोटो खींचने के साथ सुन भी रहा था। सुनते-सुनते मेरे दिमाग पर छायी संशय की बदली छंटती जा रही थी, ठीक उसी प्रकार, जैसे अपने किसी दुश्मन को अकेले में उसके अन्य दुश्मनों द्वारा घिरे देखकर कोई वीर पुरुष उत्तेजित हो जाता है और उसकी सहायता के लिये उद्यत हो जाता है। मेरे विचारों में अचानक परिवर्तन हुआ और एक झटके में मुझे अहसास हो गया कि हम आजाद हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि हमने आजादी का मतलब नहीं समझा। मैंने संचालकों से कहा कि मुझे भी बोलने का अवसर दिया जाय। कुछ देर बाद मैं मंच पर बोलने के लिये गया और श्रोताओं का ध्यान उस एकमात्र कारण की ओर खींचा जिसकी वजह से आम भारतीय जनमानस कभी भी शोषण से मुक्त ही नही हो सका। वह कारण है अशिक्षा...निचले तबकों को हमेशा शिक्षा से वंचित रखा गया जिसकी वजह से उसको ज्ञान और आत्मसम्मान का अहसास ही नही हुआ...और जिसकी कमी की वजह से उसने मुट्ठी भर लोगों को अपना भाग्यविधाता तथा स्वयं को उनकी दयादृष्टि का आश्रित मान लिया। मैनें उनको शिक्षा और इतिहास की महत्ता के विषय में बताया जिसकी वजह से हमें अपना अतीत नही पता...और अतीत न पता होने के कारण हमें अपना वर्तमान भी नही पता...।


वहाँ से आने के बाद अपनी लघु पुस्तिका के शीर्षक और उसके विषय-वस्तु के बारे में मैंने पुनः विचार किया और पाया कि मैं एक ऐसे विषय पर लिखने की व्यर्थ कोशिश कर रहा था जो वास्तव में है ही नही। हाँलाकि ऐसा भी साहित्य है जो पूर्णतया कल्पना पर आधारित है, लेकिन उस साहित्य को गल्प कहा जाता है। मैं गल्प नहीं लिख रहा था और इसी कारण से मुझे शब्द नही मिल रहे थे। वास्तविकता यह है कि हम आजाद हैं, लेकिन कुछ स्वार्थी लोगों की वजह से हम आजादी का मतलब नही समझ पाये, हममें आजाद होने की भावना का विकास ही नही हो पाया, जिसका फायदा उठाकर कुछ लोगों ने आम जनता को बहलाना शुरु किया कि हम आजाद नही हैं....।

सुरेंद्र पटेल...

मतदान स्थल और एक हेडमास्टर कहानी   जैसा कि आम धारणा है, वस्तुतः जो धारणा बनवायी गयी है।   चुनाव में प्रतिभागिता सुनिश्चित कराने एवं लो...