Thursday, May 20, 2010

किस्सा कसाब का....

सबसे बड़ा दोष तो हमारे देश के कानून में हैं, जो अपने चोले के अनगिनत फटे छेदों से अपने कंचन शरीर को छुपाने के प्रयास में दोषियों के हाथ से बार बार बलात्कारित की जा रही है....

चार्ल्स शोभराज ने कभी कहा था कि भारत अपराधियों के लिये स्वर्ग है, लेकिन वर्तमान परिवेश में यह आतंकवादियों के लिये भी स्वर्ग बन गया है। मेरे खयाल में विश्व का कोई ऐसा देश नही होगा जहाँ पर सैकड़ों लोगों की हत्या करने में शामिल किसी आतंकवादी, जिसे करो़ड़ों लोगों ने गोलियाँ चलाते हुये टीवी पर देखा उसे फाँसी की सजा सुनाने के लिये अदालत ने डेढ़ साल से अधिक का समय लिया। उसपर तुक्का ये कि वह राष्ट्रपति के पास क्षमादान की याचिका दायर कर सकता है, जो अगर उसने कर दिया तो उसकी फाँसी कई सालों तक टल सकती है। क्योंकि राष्ट्रपति के पास कई ऐसी याचिकायें लंबित पड़ी हैं जिसपर विचार होना शेष है।

पहला सवाल-

ऐसे मामलों को हम कई सालों तक लटका कर दुनिया में क्या संदेश देना चाहते हैं, दुनिया की छोड़िये हम अपने देश को क्या संदेश देना चाहते हैं, कि कोई भी आये, राक्षसों की तरह गोलिया बरसा कर कई लोगों को मार दे और फिर अदालत में जाकर सरेंडर कर दे, बाकी का काम हमारी सरकार खुद कर देगी। वह उसकी सुरक्षा में लाखों का खर्चा करेगी, मानवता का फटा हुआ ढ़ोल पीटते हुये खुद आतंकवादियों को मौका देगी कि वे उसे छुड़ा लें। हमारी सरकार कहती है हम किसी को ऐसे ही फाँसी पर नही चढ़ा सकते। हमारे विधि मंत्री ने कुछ दिन पहले ये वक्तव्य दिया था, पर उनसे ये सवाल पूछा जाना चाहिये, कि क्या हमारी जनता की औकात जानवरों से भी गई बीती है जिसकी क्रूर हत्याओं के बाद भी हम ये सवाल पूछते हैं।

आतंकवादी हमलों में सिर्फ आम जनता मरती है, इसलिये हमारे देश के दोगले नेताओं को मानवाधिकार, कानून और देश का सम्मान इत्यादि खोखले शब्दों से प्यार हो गया है, वे बिना साँस लिये रातदिन इसका रोना रोते रहते हैं।

दूसरा सवाल-

हर आतंकवादी घटनाओं के बाद हमारी निकम्मी सरकार ये घोषणा करती है कि भविष्य में इस तरीके की घटनाओं से निपटने के लिये सुरक्षा तंत्र को विकसित किया जायेगा, गुप्तचर सेवाओं को दुरुस्त किया जायेगा, कानून को कोठर बना जायेगा, और किसी देश द्वारा अपने देश में उत्पन्न की जाने वाली अस्थिरता को बर्दाश्त नही किया जायेगा। लेकिन दूसरे ही दिन सारे नेता अपने पूर्व के वक्तव्य को भूलकर देश के विकास में लगाये जाने वाले पैसों में बंदरबाँट के लिये रणनीति बनाने लगते हैं।

तीसरा सवाल-

राष्ट्रपति को किसी क्षमादान की याचिका पर निर्णय लेने के लिये इतना समय क्यों लगता है, क्या वे भी इंतजार करते हैं कि क्षमादान के बदले उनकी मुट्ठी गर्म की जाये। शायद यही बात है वरना आज तक बीसियों के लघभग मामले लंबित क्यों पड़े हैं। सबसे करारा तमाचा तो यह है कि संसद के हमले का आरोपी अफजल जिसको फाँसी दी जा चुकी है, वह भी इस कतार में हैं। सबसे बड़ा दोष तो हमारे देश के कानून में हैं, जो अपने चोले के अनगिनत फटे छेदों से अपने कंचन शरीर को छुपाने के प्रयास में दोषियों के हाथ से बार बार बलात्कारित की जा रही है। ये कानून का बलात्कार ही है, कि इतने बड़े-बड़े दोषी सरकारी मेहमान बने हैं, जिसमें राजीव गाँधी के हत्यारे, अफजल और जिसमें कसाब का नाम भी जुड़ने वाला है।

मीडिया की भूमिका-

इन सारे मामलों मे हमारी मीडिया भी कम दोषी नही है, वह खाली पीली ऐसे लोगों को हीरो की तरह दिखाती है, जिन्होने लोगों की हत्याएं सोच-समझकर की हैं। मीडिया घरानों को समझना पड़ेगा कि सरकार अगर निकम्मी है तो उसे अपनी जिम्मेदारी समझनी पड़ेगी, पैसा बनाना बिजनेस का मूलमंत्र है, पर सिर्फ पैसा ही उद्देश्य नही होना चाहिये।

जनता-

यह सबसे बड़ी ताकत है जो भारत की सबसे बड़ी कमजोरी बन चुकी है। एक अरब तेरह करोड़ जनता वाले देश में अगर कोई आतंकवादी घुँसकर सरेआम लोगों की हत्या करता है तो यह उस देश का दुर्भाग्य ही है। लोगों को ये समझना ही पड़ेगा, कि आतंकवादी हमलों में मरे कोई, कल उनका भी नंबर आयेगा। इसलिये जरूरी है कि इस प्रकार का डर मन से निकाल कर विरोध किया जाय। रही बात बीवी बच्चों की, तो कुछ समय के बाद ही इस तरह की घटनायें बंद हो जायेंगी, और सारा देश राहत की साँस लेगा।

जनता को नेताओं का घेराव करना पड़ेगा, वे क्या कर रहे हैं इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिये। क्या हमारी जनता के जीवन का मूल्य आतंकवादियों के जीवन से कम है।

विरोध-

बहुत जरूरी है। हमारे देश की ऐसी हालत सिर्फ विरोध ना करने की वजह से है। दुराचारी या अत्याचारी की हिम्मत सिर्फ विरोध ना करने की वजह से होती है। हमें विरोध के लिये सड़कों पर उतरना ही पड़ेगा। अब वक्त आ गया है जब एक और असहयोग आंदोलन की जरूरत है। अगर हम फिर भी ऐसा नही कर सके तो हमें तैयार रहना चाहिये, गाँधी के देश में गोली खाने के लिये।

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