Saturday, December 30, 2017

कोहरा

हम सभी देवरिया जाते हुये

कल शाम को अमित, गोलू और विजय के साथ मुझे अचानक देविरया जाना पड़ा। महराजगंज से देवरिया की सबसे कम दूरी भी लघभग 80 किमी होगी। हमने जल्दी पहुँचने के लिये महराजगंज टू देवरिया वाया परतावल-कप्तानगंज-हाटा का रास्ता चुना। हम लोग दोपहर 1.30 बजे के बाद निकले। निकलने से पहले मैं श्रवण पटेल जी के कार्यालय पर थोड़ी देर रूका था। वहाँ ठंडक, कोहरा और एक्सीडेंट के बारे में बात होने लगी। दिसंबर के आखिरी हफ्ते में कोहरे का प्रकोप वैसे भी कुछ ज्यादा है। सब लोगों ने अपने हिसाब से कमेंट किये। मुझे अंदाजा था कि कोहरा वाकई में बड़ी समस्या हो सकता है। वैसे भी जाड़े के आगमन के साथ  व्हाट्स अप पर तमाम ऐसी वीडियोज देखने को मिली थीं जिसमें कोहरे की वजह से हाइवेज पर एक्सीडेंट्स दिल दहला देने वाली श्रृंखला मौजूद थी। फिलहाल मैं वहाँ से निकला और 1.15 बजे अमित के घर के सामने पहुँचा। वह अभी अपने क्लीनिक से नहीं आया था सो मैं वहीं गाड़ी में इंतजार करने लगा। थोड़ी देर बाद वह आया और हम 1.30 बजे वहाँ से निकले। रास्ते में शिकारपुर हमें गोलू और विजय को भी लेना था।

इतने खराब मौसम में दोपहर बाद निकलने की वजह-
दोपहर बाद निकलने के वक्त ही यह पता था कि वापसी में 6-7 तो बज ही जायेंगे यानि कि वापसी का पूरा सफर घने कोहरे के बीच में तय करना था। यह अपने आप में काफी चैलेंजिग था क्योंकि कोहरे की चादर इस वक्त इतनी घनी हो रही थी कि पैदल चलने में भी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था। उससे पहले विजय ने कुछ दिन पहले शोहरतगढ़ से रात में वापसी की अपनी कहानी भी सुनाई थी जिसमें उसे गाड़ी चलाने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। अमित ने पहले ही हथियार डाल दिये थे कि वह कोहरे में गाड़ी नहीं चला पायेगा। शायद उसे पहले के अनुभव डरा रहे थे, या वह कुछ ज्यादा सतर्क था, यह वही बता सकता था। खैर इन सारी बातों के बीच सबसे महत्वपूर्ण बात क्या थी जिसने हम चारों को देवरिया जाने के लिये विवश कर दिया था।
वह वजह थी कि पछले कई दिनों से गोलू सेकेण्ड हैंड बोलेरो खरीदने की जिद कर रहा था। बोलेरो खरीदने की उसकी चाहत सुषुप्त ज्वालामुखी की तरह थी जो रूक-रूककर महीने दो महीने में जाग उठती थी। लेकिन कुछ दिनों से उसकी यह चाहत लावा, राख और धूल के साथ भूकंप भी ला रही थी जिसकी वजह से मुझे उसकी चाहत पूरा करने के मैदान में अपने दोस्त के साथ उतरना पड़ा। कई गाड़ियाँ देखने और गोरखपुर में दो दिन पहले एक अच्छी गाड़ी हाथ से निकल जाने की टीस गोलू के मन में माइग्रेन की तरह बार बार परेशान कर रही थी। इस चक्कर में उसने एक दिन खाना भी नहीं खाया मानो अपनी प्रेयसी से ना मिलने का दर्द किसी प्रेमी द्वारा अपनी भूख पर उतारा जा रहा हो।
इसी चक्कर में मैने कल सुबह से लगातार तीन घण्टे ओलेक्स पर बिताकर सैकड़ो बोलेरो गाड़ियाँ देखी और उसकी पसंद की एक बोलेरो जो देवरिया में थी उसे खरीदने की योजना बनाई गई। आनन फानन में रूपयों की व्यवस्था की गई और मैने अमित को कहा कि वह भी देवरिया चले। ऐसा करने के पीछे की वजह थी कि उसकी देवरिया में रिश्तेदारी थी और वक्त आने पर वह काम आ सकता था।

यात्रा की शुरूआत-
गाड़ी मैं ड्राइव कर रहा था क्योंकि मैं विजय जो हम सबमें सबसे अच्छा ड्राइवर था (जो पेशे से एक ड्राइवर ही है) उसे अपनी ड्राइविंग दिखाना चाहता था। मैं सबसे नया चलाने वाला था और सबसे कम अनुभव रखता था। खैर बिना किसी दिक्कत में मैंने गाड़ी हाटा तक चलाई और उसके बाद विजय ने स्टेयरिंग सँभाल ली। 3.30 बजे के आसपास हम देवरिया पहुँचे। जिस आदमी के पास गाड़ी थी उसका घर शहर के बाहर था। जाकर पता चला कि वो सेकेण्ड हैंड गाड़ियों का बिजनेस करता था और उसके बगल में उसके भाई  का भी आफिस था। जिस गाड़ी को हम देखने गये थे वह दिखने में ही बेकार लग रही थी। खैर दूसरे डीलर के पास जाने पर भी कोई खास फायदा नहीं हुआ। उसके पास कई बोलेरो गाड़िया थीं लेकिन कोई डील हो नहीं पायी। निकलने की तैयारी करते-करते 6 बज गये। और फाइनली कुछ खा पीकर निकलने के वक्त 6.30 बज रहे थे।

असली चैलेंज-
कोहरा अपना रंग दिखा रहा था लेकिन शहर में लाइट और चारों तरफ गाड़ियों की आवाजाही में उसकी भयानकता का अंदाजा नहीं हो रहा था। वापसी में विजय ही गाड़ी चला रहा था जिसे सबसे ज्यादा अनुभव था। जैसे ही हम शहर से बाहर आये उसकी सारी काबिलियत दाँव पर लग गई क्योंकि कोहर इतना घना था कि आगे दो मीटर भी नहीं दिखाई दे रहा था। गाड़ी की स्पीड 20 के आसपास थी और विजय उल्लू की तरह विंड स्क्रीन पर नजरें गड़ाये ड्राइविंग कर रहा था। पीछे बैठे मुझे और अमित को तो कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था।
घने कोहरे में ड्राविंग-रियल चैलेंज (एक खतरा)
इससे पहले मैंने कोहरे में गाड़ी चलाने का अनुभव आज के लघभग 15 साल पहले लिया था जब मैं और मेरा दोस्त सेराज खुटहाँ से जनवरी की रात साढ़े नौ बजे वापस आ रहे थे और कोहरा बादल की तरह सड़क पर लहरा रहा था। उस वक्त मैंने सेराज के कहने पर बाइक की हेडलाइट आफ करके उसे बहुत धीरे चलाया था और इस तरह हमने लघभग 10 किमी की दूर तय की थी। लेकिन कल का कोहर उससे भी घना था। एक तो सड़क अनजान थी, दूसरे वह बहुत पतली थी, तीसरे बन्द गाड़ी में सड़क का अंदाजा बिलकुल भी नहीं लग रहा था।
हाटा की तरफ से देवरिया की तरफ आने वाली कई गाड़ियाँ मिलीं लेकिन देवरिया से हाटा की तरफ जाने वाली कोई गाड़ी दिखने का नाम नहीं ले रही थी। ऐसा लग रहा था कि उस समय सिर्फ हम ही लोग हाटा की ओर जा रहे थे। उस समय डर जैसी कोई बात दिमाग में नही थी लेकिन कहीं कोई अनहोनी ना घट जाये इसका अंदेशा दिमाग में न बरसने वालों बादलों की तरह रह-रहकर घुमड़ रहा था। काफी देर बाद अकेले चलते हुये एक इंडिगो गाड़ीं दिखाई दी जो इतनी धीरे चल रही थी कि वह अगर उसी रफ्तार से चलती तो हाटा पहुँचने में उसे चार घण्टे लग जाते। खैर विजय ने गाड़ी उसके आगे की और वह हमारी गाड़ी के पीछे आने की कोशिश करने लगा। विजय अपने पूरे अनुभव से गाड़ी चला रहा था इसलिये वह थोड़ी तेज चलाते हुये इंडिगो को काफी पीछे छोड़कर आगे निकल गया। खैर हाटा पहुँचने के कुछ किमी दूर एक निसान गाड़ी तेजी से आयी और हम उसके पीचे लग गये। शायद वह लोकल ड्राइवर था जो सड़क से परिचित था। उसके पीछे-पीछे हम हाटा तक आये और वहाँ पर अमित, गोलू और विजय ने अँडा खाया। उस समय लघभग आठ बज रहे थे। यानि कि हमें हाटा तक पहुँचने में 1.30 घण्टे से ज्यादा का समय लग गया था। ओस का घनत्व और भी ज्यादा बढ रहा था और अभी तीन चौथाई रास्ता बाकी था।

असली कठिनाई अभी बाकी थी-
जब गाड़ी हाटा से बाहर निकली तो कोहरा चादर की तरह गाडी के सामने लहरा रहा था जैसे हमसे कहने की कोशिश कर रहा हो कि जहाँ हो वहीं रूक जाओ,वरना कोई दुर्घटना हो सकती है। कई बार विजय सड़क का अनुमान लगाये बिन दूसरी तरफ बिलकुल किनारे चला जा रहा था। आगे बैठा गोलू उसे कभी-कभार बता रहा था कि वह सड़क के कितना किनारे है क्योंकि लाल रंग के साइड लाइट जलने से सड़क के किनारे का थोड़ा आभास हो रहा था। लेकिन गोलू ने अपनी तरफ का शीशा चढ़ा रखा था और इस वजह से उसे सड़क ठीक से नहीं दिखाई दे रही थी। विजय की परेशान थोड़ी कम करने के लिये मैंने कुछ सोचा और मैंने पिछले दरवाजे की शीशा नीचे कर दिया और सिर बाहर निकाल कर सड़क का किनारा देखने लगा। ऐसा करने से मुझे किनारा तो दिखने लगा लेकिन तेज हवा और कोहरे की वजह से चेहरे पर बहुत ज्यादा ठंडक लग रही थी। मैने इससे बचने के लिये अपने मुँह पर रुमाल बाँधा, और जैकेट के सिर वाले हिस्से को सिर पर टाइट लगाकर बाँध लिया। मैं इसके बाद सिर निकालकर विजय को सड़क के किनारे के बारे में बताने लगा। यहाँ तक कि सड़क की सूचनाओं वाले साइन बोर्ड भी जिसपर घुमाव के बारे में जानकारी के साथ और साइन बने हुये होते हैं। इस तरह मैं विजय के लिये को पायलट की भूमिका निभाने लगा और विजय थोड़ी राहत के साथ गाड़ी चलाने लगा।
मुसीबतों का अन्त यही नहीं हुआ पता नहीं किस वजह से विजय को गाड़ी चलाने मे दिक्कत होने लगी और उसके सिर में तेज दर्द होने लगा। आगे बैठा गोलू बार-बार उसे चेतावनी दे रहा था कि अगर उसे कोई परेशानी है तो बताये, वह खुद गाडी चला देगा। लेकिन मुझे पता था रात में गाड़ी चलाना उसके बश की बात नहीं थी क्योंकि वह पहले ही बता चुका था कि रात में उसे ठीक से दिखाई नहीं देता है। अमित पहले ही हाथ खडे कर चुका था। यह सही था कि विजय को गाड़ी चलाने में परेशानी हो रही थी और अंत में उसने हथियार डाल भी दिये। कप्तानगंज अभी आधी दूरी पर था और हमारा ड्राइवर आगे गाड़ी चलाने में समर्थ नहीं। गाड़ी वहीं रोक दी गई और विजय ड्राइविंग सीट से हट गया।

क्रमशः...........................

Wednesday, December 27, 2017

N.P.A. (नान परफार्मिंग एसेट)

खबर बहुत चिंतित करने वाली है कि भारतीय बैंको का एन.पी.ए. यानि कि नान परफारमिंग एसेट लगातार बढ़ता ही जा रहा है। कहा तो यह जा रहा है कि बैंको का फँसा हुआ जी.डी.पी.के 2 प्रतिशत से ऊपर हो चला है। कुछ दिन पहले अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार बैंकों का एन.पी.ए. 7.34 लाख पहुँच गया है। जिसमें सरकारी बैंको का एन.पी.ए. दो तिहाई से ज्यादा है।

क्या है एन.पी.ए. (नान परफार्मिंग एसेट)
बैंक विभिन्न मदों में व्यक्तियों अथवा संस्थाओं को कर्ज देते हैं जिनपर अदा किये जाने वाला ब्याज बैंक की कमाई होता है। यह ब्याज इंस्टालमेंट के रूप में होता है। जब किन्ही कारणों से बैंक की इंस्टालमेंट अथवा ब्याज समय से जमा नहीं हो पाता तो इसे बैड लोन कहा जाता है। 90 दिनों की अवधि के बाद इसे एन.पी.ए. यानि कि नान परफार्मिंग एसेट कहा जाता है। यह वह लोन होता है जिसके वापस मिलने की आशा खत्म हो जाती है अथवा बहुत कम हो जाती है।

विश्लेषण-
रिजर्व बैंक आफ इंडिया द्वारा प्रदान किये गये आकड़ों के अनुसार जून माह 2017 तक बैंकों द्वारा कुल 6802129 करोड़

कुल 6802129 करोड़ रूपये लोन दिया गया था जिसमें से 601215 करोड़ रुपये एन.पी.ए. के रूप में फँस गया है। इसमें सरकारी और प्राइवेट कुल मिलाकर 49 बैंक शामिल हैं। यदि आँकड़ों पर नजर डालें तो इंडियन ओवर सीज बैंक की हालत सबसे खराब है जिसने 149217 करोड़ रूपये लोन दिये और उसके 30239 करोड़ रुपये एन.पी.ए. के रूप में फँस गये। प्रतिशत के हिसाब से देखें तो इसका कुल 20.26 प्रतिशत रूपया एन.पी.ए. के रूप में फँसा है। इसके बाद नंबर आता है यूको बैंक का जिसका 115166 करोड़ रूपये में  21495 करोड़ रूपये, बैंक आफ इंडिया, जिसके 274391 करोड़ रूपये में से 43935 करोड़ रूपये , पंजाब नेशनल बैंक जिसके 356958 करोड़ रूपये में से 55003 करोड़ रूपये एन.पी.ए. के रूप में फंसे हैं।
अगर बात करें सबसे ज्यादा फँसे हुये एन.पी.ए. की तो इसमं सबसे पहला नंबर आता है स्टेट बैंक आफ इंडिया का जिसके 1193325 करोड़ रूपये में से 93137 करोड़ रूपये एन.पी.ए. के रूप में फँसा है।
किस क्षेत्र में कितना रूपया फंसा है, अगर इसपर नजर डालें तो पायेंगे कि धातु एवं इस्पात उद्योग की हालत सबसे खराब है। इस क्षेत्र में कुल दिये गये लोन 4.33 लाख करोड़ रुपये में 1.49 लाख करोड़ो रूपये एन.पी.ए. के रूप में फँसा है। इसके बाद नंबर आता है वस्त्र उद्योग एवं पेय पदार्थ उद्योंगों का जिसका एन.पी.ए. रेट 18 प्रतिशत के आसपास है।

सरकार के कदम-
सरकार ने एन.पी.ए. की रिकवरी के लिये SARFAESI (सिक्यूरिटाइजेशन एंड रिकन्शट्रक्शन आफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड इंफोर्समेंट आफ सिक्योरिटी इन्टरेस्ट) एक्ट बनाया है जिसका काम इस तरह के लोन न चुकाने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं के अधिकार वाली परिसंपत्तियों का अधिग्रहण करके कर्ज की वसूली करना है। लेकिन यह प्रक्रिया इतनी मद्धिम गति से आगे बढ़ रही है कि यह कब पूरी होगी, कह पाना मुश्किल है।
एक उदाहरण-
विजय माल्या बैंको का 6000 करोड़ रूपया लेकर लंदन भाग गया है लेकिन उसे भारत लाने और उससे कर्ज वसूली की प्रक्रिया बहुत जटिल और धीमी है। एक विजय माल्या से वसूली करने में इतनी कठिनाइयाँ आ रही हैं तो देश में ऐसे सैकड़ों विजय माल्या बैठे हैं।

देश पर असर-
देश और विदेश स्तर के कई जानकार लोगों और संस्थाओं का कहना है कि इससे देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। चुनाव के समय में राजनीतिक दलों द्वारा किसानों की कर्जमाफी का वादा और बाद में हजारों करोड़ रुपये का कर्ज माफ करना भी इसी के अंतर्गत आता है। कहना न होगा कि बैंकों के एन पी ए में किसान कर्जमाफी का भी बड़ा योगदाना है।
2009 में संप्रग सरकार ने 71000 करोड़ रुपये माफ किये थे। अभी हाल में उत्तर प्रदेश में संपन्न हुये चुनावों के बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने किसानो के 36000 करोड़ से ज्यादा रूपये के कर्ज माफ किये। किसानों का माफ किया जाने वाला कर्ज किसी न किसी रूप में देश की अर्थव्यवस्था को ही नुकसान पहुँचा रहा है। कहाँ सरकार को किसानों और छोटे व्यापारियों की आय बढ़ाने का प्रयास करना चाहिये। मूलभूत व्यवस्था और बुनियादी स्तर पर विकास का प्रयास करना चाहिये किन्तु वह ऐसा नहीं कर पाती। सत्ता प्राप्ति की सबसे आसान सीढ़ी के रूप में वह कर्जमाफी को चुनती है और देश को आगे बढ़ाने के बजाय दो कदम और पीछे ले जाती है।



दस्तक सुरेन्द्र पटेल निदेशक माइलस्टोन हेरिटेज स्कूल लर्निंग विद सेन्स-एजुकेशन विद डिफरेन्स

Sunday, December 24, 2017

सुहेब इलियासी और इंडियाज मोस्ट वांटेड


सुहेब इलियासी अंजू के साथ
यह उन दिनों की बात है जब मैं हाइस्कूल का छात्र हुआ करता था और यदा कदा घरों में टेलीविजन सेट देवता की मूर्ति की तरह विराजमान थे। मनोरंजन के नाम पर दूरदर्शन द्वारा प्रसारित किये जाने वाले धारावाहिक थे और शनिवार-रविवार को ईंद के चाँद की तरह दिखाये जाने वाले फिल्म। उस दौर में जब अपराध-भ्रष्टाचार टीवी पर सनसनी नहीं हुआ करते थे तब दूरदर्शन पर एक साप्ताहिक अपराध कार्यक्रम शुरू हुआ जिसका नाम इंडियाज मोस्ट वांटेड था। टी.वी. पर जो व्यक्ति इसकी एंकरिंग करता था वह देखने में स्मार्ट, खुशमिजाज और अपराध पर पैनी नजर रखने वाला था। उस कार्यक्रम ने कुछ ही प्रसारणों में पूरे भारत में अपनी एक पहचान बना ली। कहा तो ये जाने लगा कि इस कार्यक्रम के प्रसारण में पुलिस को कई ऐसे अपराधियों को पकड़ने में सफलता मिली जो काफी समय से उनकी गिरफ्त से दूर थे। हमारे जैसे किशोरों के लिये जो, सिविल परीक्षा की तैयारी के सपने देखते थे,सुहेब इलियासी एक नायक की तरह था।
यू टर्न
धारावाहिक के प्रसारण के दरम्यान ही अचानक सन् 2000 में खबर आयी की इलियासी की पत्नी अंजू की हत्या हो गई है और सुहेब को पुलिस ने अपनी ही पत्नी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है। अफवाहें उड़ीं की सुहेब को फंसाया गया है और हमारे जैसे बच्चों ने उनपर यकीन भी कर लिया। यकीन करने के अपने अधकचरे पूर्वाग्रह थे जिनमें सबसे वजनदार यह था कि; चूँकि सुहेब ने भारत के सबसे बड़े अपराधियों को पकड़वानें में मदद की थी इसलिये सत्ता के गलियारों में माफिया के जरिये पहुँचने वाले लोगों ने नाराज होकर उसे फँसा दिया। काफी दिनों तक यह चर्चा चलती रही और धीरे-धीरे यह मामला पर्दे के पीछे चला गया लेकिन कानून अपना काम करता रहा।
पूरा मामला-
सुहेब के पिता का नाम जमील इलियासी था जो आल इंडिया इमाम  आर्गेनाइजेशन के मुखिया थे। सुहेब की मुलाकात अंजू से जामिया मिलिया इस्लामिया कालेज में हुआ जहाँ दोनो मास कम्यूनिकेशन में पढ़ाई कर रहे थे। दोनों में नजदीकियाँ बढ़ीं और मामला शादी तक पहुँचा। दोनों के परिवारों ने नाराजगी जताई और नतीजन दोनों लंजन चले गये। उन्होने 1994 में कानूनी शादी की। 1995 में अंजू ने एक बेटी आलिया को जन्म दिया। सुहेब को लंदन के एक टी वी शो क्राइमस्टापर्स से इंडियाज मोस्ट वांटेड बनाने का खयाल आया और उसे पूरा करने के लिये दोनों भारत आये। शो के पायलट एपीसोड्स में इसकी एंकरिंग अंजू ने की लेकिन आन एयर होने के बाद सुहेब इसकी एंकरिंग करने लगा। इसके बाद अंजू वापस अपने भाई के पास कनाडा चली गई। शो चलता रहा और इसी बीच सुहेब ने अंजू से वापस भारत आ जाने की गुहार लगाई और अपनी कंपनी का नाम आलिया प्रोडक्शन रखा। इस कंपनी के 25 प्रतिशत शेयर सुहेब ने अंजू के नाम पर कर दिये। अंजू के वापस आने के बाद दोनों ने दिल्ली में एक फ्लैट खरीदा जिसको अंजू ने पूरे मन से सजाया। दोनों अपनी बेटी के साथ उसमे रहने लगे और वहीं पर 10 जनवरी 2000 को अंजू को जख्मी हालत में हास्पिटल पहुँचाया गया और उसकी मौत हो गई। शुरुआती दौर में सुहेब ने इसे आत्महत्या का मामला बताया और पुलिस ने इसे मान भी लिया। अंजू के घरवालों ने भी सुहेब को निर्दोष मान लिया था।
केस में अहम मोड़-
इसी बीच रश्मि जो अंजू की बड़ी बहन थी और कनाडा में रहती थी उसने वापस आकर पूरे केस को सुहेब के खिलाफ कर दिया। उसने अंजू की पर्सनल डायरी पुलिस के सुपुर्द की जिसमें अंजू ने सुहेब के बारे में पूरे विस्तार से बताया था। यहीं नही मौत से पहले रश्मि ही वह शख्स थी जिससे अंजू की अंतिम बार बात हुई थी। रश्मि ने कई ऐसी बाते बताईं जिसे अंजू ने सिर्फ उसे बताया था। उसने बताया कि अंजू किसी तरह से सुहेब से तलाक चाहती थी। इसके बाद पुलिस ने अपनी थ्योरी बदली और सुहेब के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया। केस चलता रहा और अंततः 20 दिसंबर 2000 में बीस साल बाद अंजू को न्याय मिला और अदालत ने सुहेब को अंजू की हत्या का दोषी मानते हुये उम्रकैद की सजा सुना दी।
नियत में खोट-
सुहेब ने जिस कार्यक्रम के जरिये पूरे भारत में वाहवाही बटोरी मूलतः वह चोरी थी। उस वक्त में किसी को यह अंदाजा नहीं हुआ कि यह कार्यक्रम इंग्लैंड के कार्यक्रम क्राइमस्टापर्स की नकल थी। जिस अंजू से उसने सारे घरवारों से लड़कर शादी की वह शादी के कुछ महीनों के बाद ही अपनी बहन के साथ कनाडा रहने चली गई। जिस कार्यक्रम के लिये उसने अपराधियों के बारे में जाँच पड़ताल की, उनकी कार्यशैली को करीब से देखा और शायद अंजू की हत्या करने की प्रेरणा उसी से मिली।

जरूरी नहीं कि इंसाफ की बात करने वाला इंसाफपसंद भी हो।

मतदान स्थल और एक हेडमास्टर कहानी   जैसा कि आम धारणा है, वस्तुतः जो धारणा बनवायी गयी है।   चुनाव में प्रतिभागिता सुनिश्चित कराने एवं लो...