पश्चिम बंगाल में
जहरीली शराब पीने की वजह से 111 लोगों की जान गई।
घटना 14 दिसंबर 2011
की है जब पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में जहरीली शराब पीने की वजह से सैकड़ों
की लोगों की मौत हुई। भारत का इतिहास ऐसी घटनाओं से खाली नही है और ना ही खाली है
ऐसे लोगों से जो इन घटनाओं के लिये जिम्मेदार होते हैं।
मृत लोगों की संख्या में और भी बढ़ोत्तरी
हो सकती है क्योंकि ळघभग 50 आदमी अभी भी दुआओं और इच्छाशक्ति के कमजोर धागों से
बंधे जिंदगी और मौत के झूले में झूल रहे हैं। इन लोगों ने मगराहट नामक स्थान पर
नकली शराब पी ली थी। सवाल ये उठता है, हालाँकि हम वर्तमान में ऐसे हजारों सवालों
से जूझ रहे हैं और कोई रास्ता न देखकर मुँह ढ़ाँपकर सो जा रहे हैं कि इन मौतो का
जिम्मेदार कौन है....क्या वे जिन्होने शराब पी और अपनी मौत बुला ली। पहली नजर में
देखने से तो यही लगता है कि अपनी मौतों के जिम्मेदार वे बदनसीब खुद हैं। लेकिन
नहीं यह सही नही है कि अपनी मौतों के लिये वे जिम्मेदार हैं, जिम्मेदार है हमारी
सरकार जो ऐसे अवैध ठेकों को रोक नही पाती है, सारी शक्तियों और ठिकानों की जानकारी
के बावजूद भी हमारी पुलिस क्यों नही ऐसे लोगों पर शिकंजा कस पाती है। आबकारी विभाग
वाले क्यों नही उनका कुछ बिगाड़ पाते हैं। ये तो भारत का बच्चा-बच्चा जानता है कि
पुलिस और हर वो सरकारी विभाग जिसकी जिम्मेदारी जनता की सुरक्षा करने की बनती है,
कुछ पैसों के लालच में वे उसी की जिंदगी का सौदा करने से नही हिचकिचाते। भारत में
साँप के गुजर जाने के बाद लकीर पीटने की प्रथा बहुत पुरानी है जिसके चलते भारत
विनाश के खाई में दिन-प्रतिदिन और निकट जाता प्रतीत होता है। अभी उसी राज्य में
कुछ दिनों पूर्व ही एक अस्पताल में लगी आग की वजह से सैकड़ों लोग मारे गये गये थे।
क्या अग्निशमन अधिकारियों द्वारा एक बार अनापत्ति प्रमाणपत्र देने के बाद उसके
पुनः जाँच की जिम्मेदारी नही बनती। बनती है, जरूर बनती है जिसके आधार पर ही
अस्पताल हर महीने उस तरह के कइयों विभागों में मासिक नजराना महीने के शुरुआत में
पहुँचा दिया करता होगा। अब दुर्घटना हो गई तो सिर्फ अस्पताल के प्रबंधकों को दिखावे के लिये
पकड़ना इन जैसी मुसीबतों से बचने के उपायों के लिये किये जा रहे प्रयासों के क्रम
में एक खानापूर्ति ही है। अगर वाकई गुनाहगारों को सबक सिखाना है तो उन सभी
अधिकारियों को कानून के फंदे में लाना ही होगा जो किसी भी तरह से उस अस्पताल की
सुरक्षा उपायों से जुड़े थे। अस्पताल में भर्ती मरीज भी कम दोषी नही हैं जो
बेसमेंट में लगे हुये सामानों के ढ़ेर को देखकर भी चुप रहे। लेकिन इस तरह की
जागृति भारत में अभी दूर की कौड़ी है। दुर्घटना चाहे किसी भी तरह की हो, उसके घटने
के लिये सिर्फ स्थानीय लोग ही जिम्मेदार नही होते। इंसान स्वभाव से ही लालची होता
है। कुछ पैसे बचाने के लिये वह दूसरे को धोखा देने में बिलकुल ही नही हिचकिचाता,
लेकिन हमारे जनता के सेवकों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी सेवा देने के
बदले प्राप्त किये जाने वाले मूल्य की कुछ तो हलाली दिखायें।
बच्चों पर एन सी ई आर टी के सर्वे में
उत्तर प्रदेश के बच्चे सबसे आगे, दिल्ली, तमिलानाडु को भी पछाड़ा-
यू पी के नौनिहालों का ज्ञान देशा के बाकी
बच्चों से बेहतर है।
दिल से निकलगी,
ना मरकर भी,
वतन की उल्फत
मेरी मिट्टी से भी
खुशबू-ए-वतन आयेगी....।