Monday, September 17, 2012

बारिश


पिछले कई दिनों से लागातार बारिश हो रही है। मुझे याद है कि ऐसी बारिश अगस्त में हुआ करती थी। लेकिन मौसम में बदलाव और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से मौसम पेटियों में खिसकाव हो रहा है। 
कल फैजाबाद से एक दोस्त का फोन आया कि मौसम बहुत आशिकाना है, सोचा कि तुम्हे फोन कल लिया जाय। अपने कालेज के दौरान ऐसे मौसम में हम बहुत मजे किया करते थे। वाकई इस तरह का मौसस मजे करने के लिये ही होता है। बादल पूरे उत्तर भारत के आकाश में छाये हुये हैं और जल्दी जायेंगे, कुछ कहा भी नही सकता। लेकिन इन सब के बीच धान की फसल के लिये यह बारिश वरदान की तरह है। 
इस साल अगस्त का महीना बारिश के लिहाज से काफी सूखा रहा। पूरे महीने उमस और गर्मी की वजह से आम आदमी तड़पता रहा क्योंकि महराजगंज जैसे छोटे कस्बे में बिजली की सप्लाई का भगवान ही मालिक है और भगवान ने ही बारिश से वंचित कर दिया इसलिये आम जनता को काफी परेशानी हुई। लेकिन सितंबर का महीना काफी राहत लेकर आया। खासकर पिछला सप्ताह जिसमें रुक रुककर हल्की बारिश होती रही। 



दिल से निकलगी, ना मरकर भी, वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी....।

Sunday, September 16, 2012

राज ठाकरे और मुंबई में क्षेत्रवाद का जहर



(यह लघु लेख मैने दिल्ली में रहते हुये 19 जनवरी 2008 में लिखा था)
भारत में संविधान का माखौल उड़ाने के कई उदाहरण मिल सकते हैं। वर्तमान में उत्तर भारतीयों के प्रति मुंबई में अपनाई गई जातीय एवं क्षेत्रीय हिंसा इसमें अगली कड़ी साबित होती है।
संविधान भारत के प्रत्येक नागरिक को भारत में कहीं भी निवास करने, व्यवसाय करने, संपत्ति खरीदने अथवा धर्म संस्कृति या परंपराओं का निर्वाह करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है, और इन क्रिया कलापों में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न करना, संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन है। कहाँ एक व्यक्ति विशेष के अधिकारों का हनन ही एक गंभीर एवं संवेदनशील मसला है, और यहाँ तो हजारों उत्तरभारतीयों के मौलिक अधिकारों के हनन का प्रश्न है। पिछले दिनों समाचार पत्रों में खबर आयी थी कि आनन-फानन में मुंबई छोड़ने के क्रम में उत्तर भारतीयों ने खोलियाँ बावन हजार एवं साइकिलें 50 रुपयें में बेचीं।
यह प्रथम घटना नही है जब उत्तर भारतीयों के विरुद्ध सुनियोजित तरीके शारीरिक एवं मानसिक आक्रमण हुआ हो, यह भी नही है कि  मुंबई ही इसका अखाड़ा रहा हो। इसके अतिरिक्त पूर्वोत्तर, जम्मू कश्मीर, पंजाब इत्यादि में भी इसकी धमक सुनाई दे जाती है। यदि समग्र रूप में न देखें तो छिटपुट रूप में भारत के प्रत्येक कोने में उत्तर भारतीयों के प्रति दोयम दर्जे का नजरिया रखा जाता है । यह कुछ ऐसा वैसा ही प्रतीत होता है जैसा कि औपनिवेशिक भारत में गोरों व कालों के प्रति होता था। दक्षिण भारत इस मामले में अधिक उर्जावान है जहाँ उत्तर भारतीयों को हेय दृष्टि से देखा जाता है। विनोद का बात यह है कि राजधानी दिल्ली इस मामले में भारत के अन्य क्षेत्रों से प्रतिद्वंदिता करती है, जिसका अस्तित्व ही उत्तर प्रदेश पर टिका है।
यह मुद्दा मात्र मुंबई का नही वरन पूरे भारत का है। क्या उत्तर भारतीय सर्वत्र मात्र इसी वजह से तिरस्कृत किये जाते हैं कि ने हर जगह निम्न तबके से सम्बन्ध रखते हैं। ध्यान रखने योग्य बात यह है कि यदि उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग, मुंबई , पंजाब, हरियाणा, दिल्ली एवं अन्य राज्यों एवं शहरों से वापस आ जायें तो वहाँ की अर्थव्यवस्था चरमरा जायेगी। स्मरणीय है कि यदि उत्तर भारतीयों का कब्जा व्यापार, उद्योग इत्यादि पर रहता तो उनकी स्थिति इतनी ज्यादा खराब नहीं होती।
हम अभी भी औपनिवेशिक भारत में रह रहे हैं।
19-01-2008


दिल से निकलगी, ना मरकर भी, वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी....।

Thursday, September 6, 2012

टीचर्स डे और सेन्ट जोसेफ्स स्कूल में सेलिब्रेशन


कल टीचर्स डे था...और वाकई कमाल का था। सेन्ट जोसेफ्स स्कूल में ऐसा लग रहा था कि सारे विद्यार्थी मानों प्रतिस्पर्धा कर रहे हों...अध्यापकों को केक खिलाने का, गिफ्ट देने का, मिठाई खिलाने का...पूरा माहौल विद्यार्थीमय हो गया था। नन्हे-नन्हे हाथों में लिये हुये पेन, रचनात्मकता का परिचय देते हुये स्वयं द्वारा बनाये हुये ग्रीटिंग कार्ड...पूरा दृश्य कैमरे में कैद करने लायक था।
टीचर्स डे सलिब्रेट करने की कवायद शुरु की गई कक्षा 8 के विद्यार्थियों के द्वारा,  जब पूरे विद्यालय में ये बात फैल गई कि वे पाँच मंजिला केक मँगाने जा रहे हैं। खबर मिलने की देरी थी, सभी ने टीचर्स डे मनाने की योजना बना ली...केक पाँच मंजिला ना हुआ तो क्या हुआ...खिलाने के लिये एक टुकड़ा ही काफी है। आनन-फानन में सारे क्लासेज में पैसा इकट्ठा हुआ और तैयारी शुरु हो गई। कल सुबह से ही सारे क्लासेज के बच्चों ने अपने-अपने क्लासेज को भरसक सुंदर सजाने का कार्य किया लेकिन इन सबके बीच कक्षा 8 के विद्यार्थियों ने अपनी लगन और मेहनत की बदौलत बाजी मार ली। उन्होने अपनी कक्षा को वाकई बहुत सुंदर तरीके से सजाया लेकिन इसके साथ ही साथ सेलिब्रेट करते वक्त क्लास को सुंदर सजाने और केक ऊँचा मँगाने की अहंभावना से वे बच ना सके और उन्होने अपनी खुशी को अपने गले के माध्यम से व्यक्त करना उचित समझा, लिहाजा शोर भी बहुत हुआ।
कक्षा तीन के विद्यार्थियों ने शालीन तरीके से केक काटकर अपने कक्षाध्यापक को खिलाया और शांत तरीके से सेलिब्रेट किया हालाँकि बहुत सारे बच्चे अन्य अध्यापकों को गिफ्ट देने और केक खिलाने के प्रयास में पूरे विद्यालय में दौड़ते देखे गेये। कक्षा चार के विद्यार्थियों के कक्षा को भरसक तरीके से सुंदर सजाने का प्रयास किया और कक्षाध्यापक को केक खिलाकर सुंदर तरीके से सेलिब्रेट किया। लाउड तरीके से टीचर्स डे सेलिब्रेट करने के मामले में कक्षा पाँच के विद्यार्थी भी पीछे नही रहे, अपने कक्षाध्यापक के हाथों केक कटवाकर खिलाने के दौरान कक्षा पाँच में प्रसन्नता के साथ-साथ अव्यवस्था भी देखने को मिली। कक्षा 6 और 7 के विद्यार्थियों ने कमोबेश शांत तरीके से मनाया और कक्षाध्यापकों के हाथों केक कटवाया। कक्षा 9 के विद्यार्थियों ने सम्मिलित रूप से सारे अध्यापकों की मौजदूगी मे अपने कक्षाध्यापक मिस्टर मनोज गुप्ता से केक कटवाया और उन्ही के हाथों से सभी अध्यापकों को खिलवाया भी।
टीचर्स डे सेलिब्रेशन के मामले में सबसे सुंदर और यादगार तरीका अपनाया कक्षा 10 के विद्यार्थियों ने। परंपरागत तरीके से उन्होने डा. राधाकृष्णन की प्रतिमा पर माल्यार्पण कराकर और उसके बाद अगरबत्ती जलवाकर सारे अध्यापकों को पुष्पार्पण करने के लिये आमंत्रित किया। अध्यापकों द्वारा प्रेरणा के दो शब्द कहे जाने के बाद उन्होने जलपान कराया और उसके बाद एक मजेदार कार्यक्रम कराया जिसमें मेज पर पड़ी हुई पर्चियों में से, अध्यापकों द्वारा एक-एक करके उठवाया और पर्ची पर लिखे हुये कार्यों के अनुसार हर अध्यापको से वह कराया भी। शुरुआत हुई मनोज सर से जिनके हिस्से में मिमिक्री करने का दुरूह कार्य आ गया जिसे करना उनके जैसे शुष्क और गंभीर अध्यापक के लिये एवरेस्ट पर चढ़ने जैसा था। परिणामस्वरुप उन्होने अपने जीवन से संबंधित अनुभव सुनाना ही बेहतर समझा और विद्यार्थियों का मनोरंजन किया। उसके बाद बारी आयी पवन सर की जिन्होने पर्ची के अनुसार एक सुंदर भजन सुनाया। मनमीत सर के हिस्से में मजेदार काम, डांस करना आया जिसे उन्होने स्लो मोशन डांस करके बखूबी पूरा किया। कृष्णा सर ने ऋषभ की एक्टिंग करके खूब वाहवाही लूटी और मैने पर्ची के अनुसार अपने प्रिय अध्यापक के बारे में संस्मरण सुनाया। इसके बाद बारी आयी जार्ज सर की जिन्होने हार्स राइडिंग का सुंदर नमूना प्रस्तुत किया जिसे देखकर लगा कि वाकई केरल के अध्यापकगण अध्यापन में शारीरिक क्रियाकलापों द्वारा कक्षा के बोझिल माहौल को हल्का करके,  अध्ययन में रुचि पैदा करने की विशेष योग्यता रखते हैं। दीपक सर के हिस्से में जोक सुनाने का अत्यंत आसान कार्य आया जिसे वह पूरा नही कर सके, पर उन्होने भविष्य में चुटकुला सुनाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री करने का वादा जरूर किया। इसके बाद विद्यार्थियों के द्वारा अध्यापकों को उपहार भेंट किये गये और इसके बाद कार्यक्रम का समापन हुआ।
निसंदेह यह एक सराहनीय प्रयास  था जिससे विद्यार्थियों ने बहुत कुछ सीखा होगा, क्योंकि इस कार्यक्रम के आयोजन में विद्यार्थियों ने किसी भी अध्यापक का कोई सहयोग नहीं लिया था। यह उनका दिन था और उन्होने इसको यादगार बना दिया। 


दिल से निकलगी, ना मरकर भी, वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी....।

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