कब तक खून बहेगा आखिर कुर्सी खातिर जनता का,
कब तक नक्सलवाद रहेगा, लावा बना उफनता सा,
कितने ताज जलेंगे, कितने हमले होंगे संसद पे,
ना जाने कब तक हर बच्चा सोयेगा रात सहमता सा।
वैसे तो भारत में क्रिकेट खेल के उस मुकाम तक पहुँच गया है जहाँ गाहे-बगाहे इसे धर्म की संज्ञा दे ही दी जाती है, और वह धर्म ही है जिसने भारत को इस अधःपतन के गर्त में लाकर खड़ा कर दिया है। खैर मैं अपने मुद्दे से भटकना नही चाहता इसलिये मुख्य बिंदु पर आता हूँ कि नेताओं का प्रिय खेल क्या है- गौर से नजर डाली जाये तो पता चलेगा कि ये तू-तू, मैं-मैं है। दुर्भाग्यवश भारत में कोई भी दुर्घटना या फिर हादसा, या फिर आतंकी हमला होता है तो नेता बड़ी शिद्दत से इस खेल को, जीतने की पूरी कोशिश करते हुये खेलने लगते हैं। ऐसा लगता है कि वे अगर हार गये तो उनका जीवन संकट में पड़ जायेगा, सही भी है कि हारने की वजह से उनकी कुर्सी संकट में पड़ जायेगी, और कुर्सी बोले तो नेता का जीवन।
इस तथ्य को जरा और निकट से जानने की कोशिश करते हैं। 22 मई 2010 को मंगलौर में एअर इंडिया का प्लेन क्रैश हुआ जिसमें 23 की शाम तक 104 यात्रियों के मरने की खबर क्लीयर हो चुकी थी। अगर हमारे देश के नागरिक उड़्डयन मंत्री में जरा भी शर्म और जिम्मेदारी की भावना होती तो वो सबसे पहले अपना इस्तीफा देते। 150 यात्रियों की जिंदगी उनकी कुर्सी के सामने छोटी पड़ जाती है और वे गाँव की पतुरियों की तरह आक्रामक मुद्रा अपनाते हुये एअर इंडिया के अधिकारियों पर निशाना लगाते हैं, ताकि उनकी तशरीफ रखने की जगह सुरक्षित ही रह सके। 22 मई की दुर्घटना हो, या फिर 26-11 का आतंकी हमला, नक्सलियों की प्रतिदिन की खेले जाने वाली खून की होली हो या फिर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ की वजह से जाने वाली किसी यात्री की कुत्ते की तरह जान हो, हमारे देश में किसी भी नेता या फिर बड़े अधिकारी के दिल में चुल्लू भर पानी में डूब मरने का बाइज्जत ख्वाब भी नही आता।
हर घटना के बाद अपनी-अपनी कुर्सी बचाने के चक्कर में नेता एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करना प्रारंभ कर देते हैं और कुछ दिन बाद जनता भी सारी बातें भूल जाती है फिर से एक नई घटना का पर तू-तू, मैं-मैं सुनने के लिये।
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