Thursday, December 3, 2020

मदनपुर वाली मातारानी

यूँ तो मातारानी सृष्टि के हर कण में विराजमान हैं किन्तु कुछ स्थान ऐसे हैं जो उनके जागृत स्वरूप की अनुभूति कराते हैं। बिहार राज्य के बगहा जिले में ऐसा ही एक दिव्य स्थान है जिसे मदनपुर वाली मातारानी के नाम से जाना जाता है। 

यह स्थान कितना दिव्य है इसका अंदाजा आपको यहाँ सप्ताह के सोमवार और शुक्रवार दिनों में आने पर चलेगा। इन दिनों यहाँ पर तिल रखने की भी जगह नहीं रहती है। हाँलाकि मातारानी का यह स्थान घने जंगल में है लेकिन श्रद्धालुओं की भीड़ से यह पूरा वनक्षेत्र भी कम नजर आने लगता है। हर महीने की पूर्णिमा के दिन यहाँ अद्भुत नजारा होता है जब हजारों की संख्या में भक्त माता को चुनरी चढ़ाने आते हैं।
यह मेरे स्वयं अनुभव की बात है। सभी को मातारानी के दरबार में अवश्य जाना चाहिये। जबतक न जा पायें तबतक मेरे द्वारा बनाये गये उपरोक्त वीडियो में ही मातारानी के पिंडी स्वरूप का दर्शन करके पुण्यलाभ प्राप्त करे।
जय मदनपुरवाली मातारानी। आपकी सदा जय हो।।

Friday, September 18, 2020

लाकडाउन और हमारा अस्तित्व..




समय सापेक्ष है, जीवन सापेक्ष है और यह जगत भी सापेक्ष है। सापेक्षता के इसी सिद्धान्त को संभवतः आइंस्टीन ने E=mc2 के रूप में निरूपित किया। इस जगत का अस्तित्व ही मिट जायेगा यदि यह सापेक्षता समाप्त हो जाये, और यही कारण है कि हम, अर्थात विद्यालय संचालक, प्राइवेट अध्यापक शनैः-शनैः समाप्ति की ओर जा रहे हैं। ऐसा इसलिये हो रहा है कि हमारी सापेक्षता का आधार, विद्यालय समाप्त हो रहा है। विद्यालय नहीं तो, विद्यार्थी नहीं, विद्यार्थी नहीं तो अध्यापक नहीं, अध्यापक नहीं तो संचालक नहीं। अर्थात कुछ नहीं।

14 मार्च 2020 को उ.प्र. सरकार ने विद्यालय बंद करने की घोषणा की, उसके कुछ दिनों के बाद प्रधानमंत्री ने जनता कर्फ्यू का ऐलान किया। जनता ने उनके कथनानुसार शाम को 5 बजे ताली-और थाली बजाई। उस दिन मैने भी, विद्यालय के ध्वनिविस्तारक यंत्र के माध्यम से प्रधानमंत्री के अपील का समर्थन किया और मेरे बच्चों ज्ञान और गौरी ने मेरे साथ कीबोर्ड पर अपने ड्रम के साथ, वह शक्ति हमें दो दयानिधे, भजन पर ताल से ताल मिलाया।

सभी को उम्मीद थी, कि समस्या का समाधान हो जायेगा, पर ऐसा हुआ नहीं और 24 मार्च को प्रधानमंत्री जी ने पूरे देश में लाकडाउन की घोषणा कर दी। उम्मीद 21 दिन और खिसक गयी। चलो जैसे तैसे काट लेंगे, 21 दिन के बाद तो सबकुछ ठीक हो ही जायेगा। सारा भारत बंद हो गया, विद्यालय भी बंद हो गये, विद्यार्थी आने बंद हो गये, आय का एकमात्र स्रोत, शुल्क भी बंद हो गया। अभिभावकों ने विद्यालय की तरफ से नजरें इस तरह से फेरीं, जैसे लोग राह चलते भिखमंगे से फेर लेते हैं। कुछ को खुशी हुई कि चलो, सालभर की फीस जमा करने का झंझट दूर हुआ। कितने काम हो जायेंगे उस फीस से, घर की दाल-रोटी चल जायेगी, पिताजी की दवाई आ जायेगी, बच्चों के कपड़े आ जायेंगे, खेतों के लिये बीज आ जायेगा, गेंहू की कटाई निकल जायेगी, एल.आई.सी. की किश्त जमा हो जायेगी, बहन की शादी में लगने वाल खर्च निकल जायेगा, बाहर की चारदीवारी टूट गयी है, उसकी मरम्मत हो जायेगी और भी न जाने क्या-क्या। चूँकि अभिभावकों के सारे काम विद्यालय की फीस से ही होते हैं, इसलिये उसके सारे कार्य उससे हो जायेंगे और वह पूर्णरूपेण सुखी  हो जायेगा।

अभिभावक तो सुखी हो गया किन्तु विद्यालय संचालक, अध्यापक 21 दिनों को रोजेदार मुसलमान की तरह उंगलियों पर गिनने लगा, कि अप्रैल में सब ठीक हो जायेगा। लेकिन ऐसा एक बार फिर नहीं हुआ और अप्रैल में लाकडाउन का दूसरा चरण शुरू हुआ और 3 मई तक चला। 4 मई से तीसरा लाकडाउन शुरू हुआ जो पूरे मई तक चला। जून में अनलाक का पहला चरण प्रारंभ हुआ और जो कोरोना महामारी कछुये की चाल से बढ़ रही थी वह अचानक से खरगोश की तरह भागने लगी और प्रभावितों का आँकड़ा आसमान छूने लगा। जून महीने तक संख्या लाखों में पहुँच गयी और यह स्पष्ट हो गया कि विद्यालय नहीं खुलने वाले हैं।

विद्यालय संचालकों और अध्यापकों की उम्मीद खत्म हो गयी, खत्म नहीं हुआ तो वह था कोरोना का भय जिसके साये में आज पूरा भारत अपनी स्वाभाविक स्थिति में नजर आता दिख रहा है। पर हकीकत इसके उलट है, यह सिर्फ विद्यालय नहीं है, जो आर्थिक बदहाली के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं, यह भारत की अर्थव्यवस्था है जो इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है।

विद्यालय संचालकों का सारा कामकाज जो विद्यालय चलने के साथ हुआ करता था, हफ्ते के 6 दिन व्यस्त दिनचर्या, नाना-प्रकार की चुनौतिया और उनसे पार पाने की जद्दोजहद,  अंबेडकर जयंती, रामनवमी, गर्मी की छुट्टियाँ, समर असाइनमेन्ट, समर कैंप, जुलाई में बरसात की समस्या, प्रेमचंद जयंती, परीक्षाओं का आयोजन, 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस, जन्माष्टमी पर फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता, रक्षाबंधन पर भाई-बहन का प्रेम, बकरीद की सेवई, सितंबर में हिन्दी दिवस, अक्टूबर में गाँधी जयन्ती, दशहरे की छुट्टियाँ, दीपावली पर रंगोली प्रतियोगिता, नवंबर में बालदिवस, वार्षिक खेलकूद प्रतियोगिता और भा न जाने क्या-क्या, सबकुछ खत्म हो गया, भूल गया। तारीखें भूल गयीं, सोमवार, मंगलवार भूल गया, रविवार जिसका बेसब्री से इंतजार था वह भूल गया।

कुछ शब्दों में कहें, अपना अस्तित्व भूल गया।

दस्तक

Saturday, June 20, 2020

सुशांत सिंह-लूजर का टैग हम खुद लगाते हैं.......


Sushant Singh Rajput Death When He Removed His Surname Rajput ...
दस्तक सुरेन्द्र पटेल
बीते 14 जून को हिन्दी फिल्म उद्योग के अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या कर ली। उनकी आत्महत्या ने फिल्म इंडस्ट्री ही नहीं बल्कि राजनीति, साहित्य, कला इत्यादि क्षेत्रों के साथ-साथ आम जनमानस को भी झकझोर दिया। चर्चा का विषय यही था कि सुशांत जैसा प्रसन्नचित्त दिखने वाला अभिनेता जिसकी कामयाब कहानी कहने के लिये उनकी फिल्मों की सफलता ही काफी थीं, उसने ऐसा कदम क्यों उठाया। देश के प्रधानमंत्री से लेकर सभी लोगों ने उनकी मौत पर शोक जताया। 
सवाल उठता है कि सुशांत ने आत्महत्या क्यों की। कई तरह की कहानियाँ तैर रही हैं। कोई फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों पर सवाल उठा रहा है। कोई उनके व्यक्तिगत जीवन पर उंगली उठा रहा है। कोई उनके कमजोर होने पर सवाल खड़े कर रहा है। 
एक व्यक्ति जो खुद को खत्म करने जैसा खौफनाख कदम उठाने जा रहा है उसके दिलोदिमाग में क्या चल रहा है, कोई इसकी कल्पना तक नहीं कर सकता। पशु-पक्षियों को भी अपने जीवन से प्रेम होता है। किसी ने नहीं सुना होगा कि किसी जानवर ने आत्महत्या की होगी। सिर्फ इंसान आत्महत्या करता है, क्यों। 
क्योंकि वह अपने नहीं बल्कि दूसरे के नजरिये से अपना जीवन जीता है। उसकी सफलता औऱ असफलता दूसरों के पैमाने की मोहताज होती है। उसकी खुशी रूई के उस गट्ठर की भाँति हो जाती है जो जितना ज्यादा गीली होती है उसका वजन उतना ही ज्यादा हो जाता है। 
सुशांत सिहं पहले अभिनेता या अभिनेत्री नहीं है जिसने आत्महत्या की हो। फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों की फेहरिस्त काफी लंभी है जिन्होने आत्महत्या की है। 
अभिनेता जिन्होने आत्महत्या की-
https://en.wikipedia.org/wiki/Category:Indian_male_actors_who_committed_suicide
1-गुरूदत्त 
2-संतोष जोगी
3-नितीन कपूर
4-उदय किरन
5-कुणाल सिंह
6-साईं प्रशान्त
7-कौशल पंजाबी
8-रंगनाथ
9-श्रीनाथ
इनके अलावा 17 अभिनेत्रियाँ है जिन्होने आत्महत्या की है।
https://en.wikipedia.org/wiki/Category:Indian_actresses_who_committed_suicide

आत्महत्या को किसी भी सूरत में जस्टिफाई नहीं किया जा सकता। कानून भी इसे अपराध की श्रेणी में रखता है जिसमें सजा का भी प्रावधान है। लेकिन फिर भी लोग आत्महत्या कर रहे हैं तो इस पर बहस होनी चाहिये। गरीब, कर्ज में डूबा हुआ व्यक्ति, व्यवसाय में घाटा होने पर बर्बाद हुआ व्यवसायी इत्यादि आत्महत्या करते हैं तो कहा जाता है कि उसने जीवन से परेशान होकर ऐसा किया। किसानों की आत्महत्या पर तो बाकायदा राजनीति भी होती रही है। किसानों की आत्महत्या विषय पर एक व्यंग फिल्म भी बन चुकी है जिसका नाम पीपली लाइव था।
लेकिन एक सफल अभिनेता जिसकी फिल्मों ने अच्छी कमाई की हो, जिसके पास पैसा हो, जो अच्छी जिंदगी जी रहा हो, वह ऐसा करे तो दाल में कुछ काला जैसा प्रतीत होता है।
सुशांत की पिछली फिल्म छिछोरे थी। यह फिल्म इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में असफल हो जाने वाले एक ऐसे लड़के की आत्महत्या की कोशिश करने की घटना के इर्द गिर्द घूमती है जिसके   माता-पिता दोनो इंजीनियर हैं। पिता अपने लड़के को जिंदगी जीने की प्रेरणा देता है। उसका लड़का लूजर होने का दबाव न झेल पाने की वजह से टैरेस से कूद जाता है। पिता उसे अपने और अपने दोस्तों के जीवन से तमाम ऐसे उदाहरण देता है जिसमें उन लोगों ने कई बार असफलता का मुँह देखा लेकिन जीवन से कभी हार नहीं मानी और अंततः अपने जीवन में कामयाब हुये।
इस फिल्म में पिता का किरदार सुशांत सिंह ने ही निभाया था। आजकल फिल्म व अभिनेताओं की बड़ी सपाट सी सोच है। वह फिल्म को दर्शकों के लिये मात्र मनोरंजन का साधन मानते हैं। अपने आपको सिर्फ एक किरदार जिसका काम लेखक के लिखे चरित्र को मात्र परदे पर उतार देना है। कैमरे के पीछे उनका जीवन अदा किये गये किरदारों के मेहनताने के रूप में प्राप्त की गई रकम को खर्च करने तक ही सीमित है। कुछ सयाने अभिनेता उस रकम को बिजनेस में लगाते हैं और बाद की जिंदगी के लिये रखते हैं। अभिनेताओं का किरदार से कोई जुडाव ही नहीं है। किसी को कोई परवाह नही है। कोई अपनी जिम्मेदारी नहीं समझना चाहता। हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री और साउथ फिल्म इंडस्ट्री में यह मूलभूत अंतर है। 
क्रमशः.....

Friday, May 29, 2020

ज्ञान का मुण्डन-कोरोना काल में...

हरि ऊँ तत्सत् !
मेरे पुत्र ज्ञानेश्वर पटेल का जन्म 5 सितंबर 2017 हुआ था। उसका मुण्डन तीसरे वर्ष यानि कि 15 जून 2020 को निर्धारित था। हमारे कुल में बच्चों का मुण्डन संस्कार जीवन के तीसरे वर्ष में ही होता है इसलिये ज्ञान का यह संस्कार भी इसी वर्ष में होना था। चूँकि हम लोग विद्यालय में बने अल्पकालिक आवास में ही रहते हैं इसलिये पिछले वर्ष नवंबर में पंडित जी से विमर्श करके दिन तय कर लिया था। दिन तय करने में कई बातें ध्यान में रखनी थी, जैसे विद्यालय की छुट्टियों के दौरान ही मुण्डन कराना था। मई 2020 में गोलू (ज्ञान व गौरी के मामा) की शादी थी तो मुण्डन कार्य उसकी शादी के बाद ही कराना था क्योंकि 15 मई से पहले विद्यालय बन्द होने वाले नहीं थे। जुलाई अगस्त में बरसात का मौसम होता है और सितंबर में उसका चौथा वर्ष शुरू हो जाता। इसलिये जून में 15 तारीख को उसका मुण्डन संस्कार कार्यक्रम तय किया गया।
इंसान अपने हिसाब से अपने कार्यक्रम तय करता है लेकिन नियति की योजनायें कुछ और होती हैं। मार्च में कोरोना महामारी का प्रकोप बढ़ना प्रारंभ हुआ और धीरे-धीरे लोगों के उत्सवादि आगे बढ़ते गये इस आशा में कि महामारी का प्रकोप खत्म हो जायेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बीमारी खत्म होने के बजाय बढती गई। गोलू की शादी मई से बदलकर दिसंबर 2020 में पहुँच गई। 
समस्या हमारे सामने भी खड़ी हो गई। विद्यालय बन्द होने की वजह से हाथ भी तंग था लेकिन मुण्डन कराना अनिवार्य से भी जरूरी था। मई महीने में माताजी ने बताया कि परिवार में मुण्डन कार्य ज्येष्ठ महीने अर्थात जून में नही होता है। कंगाली में आटा गीला वाली स्थिति हो गई। जून में होने वाले मुण्डन को मई में ही कराना था। पंडित जी से फिर से विमर्श किया गया और 27 मई को तय किया गया। आनन-फानन में तैयारी शुरू की गई। 
लाकडाउन की वजह से ज्यादा लोगो को आमंत्रित नहीं किया जा सकता था। इसलिये मुण्डन में सिर्फ अपने कुल के लोगों को बुलाया गया। रिश्तेदारों में मेरी बहन सुमित्रा पटेल और मेरी बुआ जी को आमंत्रित किया गया। वो आमंत्रण भी परिस्थितिवश मात्र मौखिक था। किसी और रिश्तेदार को नहीं बुलाया जा सका। 
रात को भोेजन के समय भी गिने चुने लोगों को आमंत्रित किया गया इस वजह से कि भीड़-भाड़ न हो और प्रशासन को किसी तरह का मौका न मिल सके। भोजन बनाने का कार्यभार मैने स्वयं उठाया और 26 मई को गुलाबजामुन बनाकर कार्य का शुभारंभ किया। ईश्वर की कृपा से मिठाई अच्छी बनी और सभी को पसंद आई। 27 मई को सुबह जल्दी ही हमने सारी तैयारी कर ली किन्तु माता स्थान पर थोड़ी सी चूक ने देरी करा दी। कार्यक्रम शुरू होने में 9 बज गये और थोड़ी ही देर  में वायु देव ने अपना प्रचंद रूप दिखा दिया। हवायें बहुत तेज चलने लगीं और किसी तरह से धूल-अंधड़ के बीच में मुण्डन कार्य 10.30 बजे तक संपन्न हो गया। पंडित जी को विदा करने के बाद सभी लोग विद्यालय वापस आये और भोजनादि से निवृत्त होने के बाद भोजन बनाने के कार्य में 1.00 बजे से लगा गया। 
भोजन में पूरी-पुलाव-पनीर-आलू,परवल की सब्जी-मीठा-पापड़ और सलाद का प्रबंध करना था। मीठा पहले से तैयार था बाकी को तैयार करना था। भोजन बनाने में गुड़िया, सुशील सर, विजय और गोलू इत्यादि सहायता करने के लिये साथ थे। 
खैर बिना किसी व्यवधान और बाधा के मातारानी के कृपा से लघभग 50 लोगों का भोजन 8.00 बजे के पास तैयार हो गया। भोजन बनाने के बाद मैने कपड़े बदले और लोगों को भोजन कराने के कार्य में उद्यत हो गया। भोजन करने वाले सभी लोगों ने भोजन की प्रशंसा की और बताने के बाद ही उन्हे पता चला कि भोजन मैने बनाया है। लोगों को आश्चर्य के साथ प्रसन्नता भी हूई। 
सबसे बड़ी खुशियों में से एक खुशी यह भी है, लोगों को हाथ से बनाकर भोजन खिलाना। 
भोजन हाथ से नहीं, दिल से बनता है। 
मातारानी का आशीर्वाद सदैव साथ रहे। 
हरि ऊँ तत्सत!
दस्तक सुरेन्द्र पटेल

Friday, May 22, 2020

कोरोना महामारी बनाम अन्य खतरनाक बीमारियाँ-1

know abot pneumonia symptoms cause and treatments check these ...
दस्तक सुरेन्द्र पटेल 
आज पूरी दुनिया में चारों ओर जानलेवा बीमारी कोविड-19 का खौफ छाया हुआ है। बच्चा-बच्चा आज इस बीमारी के बारे में जानता है। पूरी दुनिया में लाखों लोग इस बीमारी की वजह से जान गँवा चुके हैं। 
दिनांक 22.05.2020 तक कोरोना के उपलब्ध आँकड़ेें निम्नवत हैं-
    
  क्रम.    क्षेत्र     संक्रमित उपचारित    मृत्यु 
 1    

विश्व 

 50.8 लाख19.4 लाख 3.32    लाख     
 2         भारत1.18 लाख 48534  3583 
स्रोत-विकीपीडिया
अर्थव्यवस्था तबाह-
यह बीमारी जिसकी वजह से भारत जैसे वृहद जनसंख्या वाले देश में पिछले दो महीने से लाकडाउन की स्थिति है। उद्योग धंधे बन्द हैं, आवागमन ठप है, व्यापार की कमर टूट चुकी है। आम आदमी के लिये भूखों मरने की नौबत आ चुकी है। सरकार धीरे-धीरे लाकडाउन में ढील दे रही है। लेकिन बीमारी से प्रभावित लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है।

क्या यह मानव इतिहास की सबसे जानलेवा बीमारी है-
ऐसे में यह सवाल सहज ही दिमाग में आता है कि क्या यह बीमारी आज तक की सबसे खतरनाक बीमारी है जिसने इंसान को घुटनों के बल ला दिया है। क्या इससे बचने का कोई तरीका नहीं है। क्या इस बीमारी से मरने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है। क्या इस बीमारी से दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका हार गया है।

जानते हैं कुछ ऐसी बीमारियों के बारे में जो ज्यादा जानलेवा रही हैं और हैं भी-
बच्चे बीमारियों की चपेट में जल्दी आते हैं। क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली अविकसित होती है। उन्हे अपनी सुरक्षा के विषय में ज्यादा कुछ पता भी नहीं होता। बचने के उपायों के बारे में वो ज्यादा जागरूकता नहीं दिखाते। यह उनकी अवस्था का परिचायक होता है।  तो सबसे पहले शुरू करते हैं बच्चों की कुछ बीमारियों से-

निमोनिया-
निमोनिया दुनिया में सबसे पहले कब डाइग्नोस हुआ था, इसके बारे में ठीक-ठीक नहीं पता। किन्तु इतना अवश्य है कि इस बीमारी की वजह से हर साल लाखों बच्चे मौत के मुँह में चले जाते हैं। पाँच साल तक के बच्चों में यह बहुत ही आम बीमारी है। 

अविश्सनीय-
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में भारत में निमोनिया की वजह से एक लाख सत्ताइस हजार बच्चों की मौत हुई है। दूसरी ओर पूरी दुनिया में इस बीमारी की वजह से मरने वाले बच्चों की संख्या आठ लाख से ज्यादा है। यानि कि हर 39 सेकण्ड में एक बच्चे ने निमोनिया की वजह से  अपनी जान गँवाई है। 

ये हैं शीर्ष पांच देश : 
क्र.स.    देश              मौतें
1.         नाईजीरिया     1,62,000 
2.         भारत            1,27,000 
3.         पाकिस्तान     58,000 
4.          कांगो           40,000 
5.          इथोपिया      32,000 

स्रोत-यूनिसेफ

निमोनिया से मरने वाले बच्चों की संख्या के मामले में भारत की स्थिति इतनी खराब है कि उससे ऊपर बस अफ्रीकन देश नाइजीरिया है, जहाँ के हालात बदतर हैं। 


कोरोना से तुलना-

अगर बात करें कोरोना से तुलना की तो देश में कोरोना का पहला केस सामने आने के बाद कुल मामलों की संख्या लघभग 1,18000 है। मरने वालों की संख्या 3583 है। यूनिसेफ द्वारा प्रदान किये गये आंकड़े पर नजर डालें तो 2018 में लघभग 1,27000 बच्चे, सिर्फ बच्चे ही मरें हैं।


सबसे बड़ी समस्या-

स्वास्थ्य क्षेत्र में आने वाली नई चुनौतियों और सामने आने वाली नई बीमारियोे के बीच यह लघभग भूला जा चुका है कि निमोनिया भी एक जानलेवा बीमारी है। 


वजह सिर्फ इतनी है कि -

1-इससे मरने वाले वो बच्चें है जो अपने हक की आवाज नहीं उठा सकते हैं।

2-इससे मरने वालों बच्चों की संख्या धीरे-धीरे सामने आती है। 

3-इससे मरने वाले बच्चे अविकसित और विकासशील देशों में रहते हैं।

4-इसकी वजह से लाकडाउन लगाने की नौबत कभी नहीं आती।

5-इसकी वजह से अर्थव्यवस्था को समग्र नुकसान नहीं होता।


सवाल-

पर क्या इसी वजह से निमोनिया जैसी घातक बीमारी से मरने वाले बच्चों की संख्या भारत में इसी तरह लाखों में रहेगी। 


Friday, May 15, 2020

राजा, दूध का तालाब और प्रजा की आज के समय में प्रासंगिकता

मैं आप लोगों को एक कहानी सुनाता हूँ जिसे मैं आमतौर पर अपने विद्यार्थियों को सुनाता हूँ....। बात पुरानी है, जब राजा लोग हुआ करते थे। उनकी प्रजा होती थी। प्रजा को उनका हुक्म मानना पड़ता था। राजा को अक्सर यह बात सालती रहती थी कि वह कोई ऐसा कार्य करे जिससे उसका नाम अमर हो जाये। क्या करे, ऐसी मंत्रणा उसने अपने मंत्रियों से की। मंत्रियों ने रास्ता सुझाया। उन्होने कहा कि महाराज को एक ऐसा तालाब बनवाना चाहिये जो दूध से भरा हो। इस प्रकार का तालाब न देखा गया है न सुना गया है। यकीनन राजा का नाम विश्व भर में प्रसिद्ध हो जायेगा। राजा को बात अच्छी लगी। अगले ही दिन पूरे प्रजा में फरमान सुना दिया गया कि राजा एक ऐसे तालाब का निर्माण करवा रहे हैं जो दूध से भरा होगा। निर्माण कार्य पूरा होने के बाद अमुक दिन को सारी प्रजा को एक लोटा दूध लाकर तालाब में डालना है। इस प्रकार से पूरा तालाब दूध से भर जायेगा। मुनादी करवा दी गयी। निर्माण कार्य प्रारंभ हो गया। वह दिन भी पास आ गया जब तालाब में एक लोटा दूध डालना था। निर्धारित दिन के पहले एक अहीर जो राजा के राज्य में रहता था और जिसकी विशाल गोशाला थी। वह दूध के व्यापार से काफी धन कमाता था। उसने सोचा कि सभी लोग तो दूध डालेंगे ही, यदि मैं चुपके से प्रातःकाल ही एक लोटा जल डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा। मेरा एक लोटा दूध नुकसान होने से बज जायेगा। निर्धारित दिन वह प्रातःकाल उठा और सबसे पहले (अपने समझ से) तालाब में एक लोटा जल डाल आया। दिन में जब राजा तालाब का निरीक्षण करने आया तो उसने क्या देखा। पूरा तालाब जल से भरा था...।दूध की एक बूंद भीं कहीं नहीं दिखाई दे रही थी।
कहानी का वर्तमान संदर्भ बहुत प्रासंगिक है। विद्यालय प्रबंध तंत्र, आनलाइन क्लासेज और अभिभावक..बाकी आप खुद समझदार हैं।
दस्तक सुरेन्द्र पटेल 

Friday, May 8, 2020

21 दिनों का नियम...

आदतें हमारे जीवन का आइना होती हैं। महान व्यक्तियों के जीवन चरित्र पढ़ने से हमें पता चलता है कि उनकी आदतें उनके विकास के आधार स्तंभ रही हैं। अच्छी आदतें हमें अपने जीवन में ऊँचा उठाती हैं तो दूसरी ओर बुरी आदतें हमें जीवन में असफलता की ओर ढ़केलती हैं। एक व्यक्ति जिसका जीवन अनुशासित, नियंत्रित, समायोजित होता है, यकीनन वह एक सफल व्यक्ति होता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि आदतें हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
आमतौर पर यह कहा जाता है कि आदतें हमारे जीवन के प्रारंभिक वर्षों में ही तय हो जाती हैं। किसी व्यक्ति की क्या आदतें होंगी वह बचपन में ही सामने आ जाती हैं। इसीलिये बच्चों को शुरू से ही अच्छी आदतों के प्रति जागरूक बनाया जाता है। तो क्या यह कहा जा सकता है कि आदतें बदली नहीं जा सकती हैं। क्या बचपन में जो आदतें व्यक्ति के जीवन का हिस्सा बन चुकी हैं, उन्हें नहीं बदला जा सकता है। जवाब है कि बिल्कुल नहीं...।
जी हाँ...आदतों को बदला जा सकता है। बुरी आदतों को अच्छी आदतों में परिवर्तित किया जा सकता है। अपना जीवन अपनी आदतों को बदल कर बदला जा सकता है। तो फिर सवाल उठता है कैसे...?
1950 में अमेरिका के एक प्लास्टिक सर्जन ने यह सिद्धांत प्रस्तुत किया कि एक व्यक्ति जिसके चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी हुई है उसे अपने नये चेहरे के प्रति खुद को समायोजित करने के लिये कम से कम 21 दिनों की जरूरत है। यानि कि वह व्यक्ति अपने बदले चेहरे को 21 दिनों में स्वीकार कर लेगा। शुरू में उसे अपने बदले चेहरे के प्रति असहजता होगी किन्तु धीरे-धीरे उसका मन उसे स्वीकार करेगा  और अंततः 21 दिनों में पूरी तरह स्वीकार कर लेगा।
कुछ वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत को नकार दिया। लेकिन इस बात से पूरी तरह इनकार नहीं किया जा सकता है। कई सारे रिसर्च इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि कई दिनों की लगातार कोशिशों के जरिये अपनी आदतों को बदला जा सकता है। इसमें कितने दिन लगते हैं इसके बारे में स्पष्ट रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता। यह पूरी तरह से आपके आत्मविश्वास, संयम, लगन और परिश्रम पर निर्भर करता है।
सबसे बड़ा उदाहरण कोरोना महामारी के बीच भारत में केन्द्र सरकार द्वारा लगाया गया शुरुआती 21 दिनों का शूरुआती लाकडाउन है। सरकार की तरफ से यह कहा गया कि 21 दिनों का समय वायरस की कड़ी तोड़ने के  लिये है, किन्तु वास्तव में यह जनता की आदत बदलने का शुरुआती कदम था। 134 करोड़ की जनता को एकाएक हाल्ट पर नहीं रखा जा सकता था। यह नामुमकिन था। लेकिन कोरोना का डर और 21 दिनों का लंबा समय लोगों के जीवन चर्या को बदलने के लिये जरूरी था। आप देख सकते हैं कि जिस लाकडाउन ने शुरुआती दिनों में लोगों को बहुत तकलीफ दी, धीरे-धीरे लोगों ने उसे स्वीकार कर लिया। बाद में लाकडाउन को और बढ़ाया गया और अंततः 17 मई तक बढ़ा दिया गया। ्यानि कि कुल 5 हफ्ते से ज्याादा दिनों का लाकडाउन। यह बहुत ज्यादा समय है। भारत जैसे देश जहाँ की आबादी 134 करोड़ के आसपास है, एक महीने से ज्यादा का समय लोगों ने घर के अंदर रहकर बिता दिया। यह आदत बदलने के नियम का सबसे बड़ा उदाहरण है। 
दस्तक सुरेन्द्र पटेल निदेशक माइलस्टोन हेरिटेज स्कूल लर्निंग विद सेन्स-एजुकेशन विद डिफरेन्स

Thursday, March 26, 2020

कोरोना का कहर- 21 दिनों का लाकडाउन

साभार-जागरण जोश
19 मार्च को भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनता को संबोधित करते हुये 22 मार्च रविवार को जनता कर्फ्यू का ऐलान किया था। उन्होने कहा था कि हर भारतीय सुबह सात बजे से रात के 9 बजे तक अपने घर में रहे। कोरोना से लड़ने में डाक्टर, नर्सेज, पैरामेडिकल स्टाफ के योगदान की प्रशंसा करते हुये उन्होने कहा कि सभी लोग शाम के 5 बजे अपने घरों के बाहर उन लोगो का अभिवादन ताली, थाली इत्यादि बजाकर करें। 22 मार्च को प्रधानमंत्री के अपीलानुसार सभी भारतीय अपने घर में रहे और शाम को सभी ने कोरोना वीरों का अभिवादन किया।
इन सबके बावजूद रविवार, सोमवार को कोरोना के मरीजों में बढ़ोतरी देखी गयी जिसके बाद प्रधानमंत्री ने मंगलवार रात के आठ बजे जनता को संबोधित करते हुये पूरे भारत में 21 दिनों का लाकडाउन घोषित कर दिया। प्रधानमंत्री जी ने कहा कि जनता को कोरोना से बचाने के यह कठोर कदम उठाना पड़ा। उन्होने भारतवासियों से अपील किया कि 21 दिनों के लिये सभी अपने घरों में रहे और लाकडाउन का पालन करें।
आज 26 मार्च दिन के 12 बजे तक कोरोना मरीजो की संख्या 665 पहुँच गई है। इनमें से 43 मरीज ठीक हो चुके हैं और 11 मरीजों की मौत हो चुकी है। भारत सरकार और उसकी स्वास्थ्य एजेंसिया दिन-रात एक करके कोशिश कर रही हैं कि कोरोना को स्टेज 2 पर ही रोककर रखा जाय और इसे कम्यूनिटी में फैलने न दिया जाय। हाँलाकि पूरे देश में लाकडाउन घोषित कर दिया गया है लेकिन भारत जैसे विशाल देश जिसकी जनसंख्या 130 करोड़ के आसपास है, वहाँ एकाएक जनजीवन को हाल्ट पर नही डाला जा सकता। इसलिये पिछले दो दिनों में देश के हर कोने से लोगों द्वारा लाकडाउन के हल्के-फुल्के उल्लंघन की खबरें आ रही हैं। प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्ती से पेश आने का ऐलान कर दिया है। पुलिस अपने स्तर से थोड़ी सख्ती बरत भी रही है। सोशल मीडिया पर आने वाले वीडियोज में पुलिस ऐसे लोगों पर लाठियाँ भाँज रही है।
भारत में कोरोना वायरस और बीमारी के बारे में कोई आथेंटिक सूचना स्रोत न होने की वजह से लोग इधर-उधर से कापी पेस्ट की हुई जानकारी सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं। इसे देखते हुये सरकार ने एक साइट लांच की है जिसपर कोरोना से संबंधित हर प्रकार की जानकारी मौजूद है।
उपरोक्त साइट पर भारत में कोरोना का हर अपडेट मौजूद है जिसे हर चार घंटे में अपडेट किया जा रहा है। हर भारतीय को चाहिये कि कोरोना से संबंधित जानकारी के लिये इसपर मौजूद जानकारी पर ही भरोसा करें।
लाकडाउन का महत्व-
आज जबकि पूरा विश्व कोरोना के प्रहार से कराह रहा है। भारत कतई नहीं चाहता कि उसकी स्थिति दूसरे देशों जैसी हो। इसके लिये हर प्रयास किये जा रहे हैं। 21 दिनों का लाकडाउन इसी कड़ी में प्रयास है। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा था कि यदि हमने इन 21 दिनों में सावधानी नहीं बरती तो भारत मे 21 साल पीछे चला जायेगा। इसलिये हर भारतवासी का यह कर्तव्य है कि वह लाकडाउन का पूरी गंभीरता से पालन करें। प्रधानमंत्री ने कहा था कि उन्होने यह फैसला मेडिकल फील्ड के विशेषज्ञों से बातचीत करके लिया है। जिनका कहना था कि कोरोना वायरस को हवा में से पूरी तरह खत्म होने में तीन हफ्ते तक का समय लग सकता है। जिसके मद्देनजर 21 दिनों का लागडाउन घोषित किया गया है।
लाकडाउन से होने वाली परेशानियाँ-
वहीं दूसरी ओर अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ यह आशंका जता रहे हैं कि इतने ज्यादा दिनों तक लाकडाउन के समय में भारत में अनेकों प्रकार की परेशानियाँ खड़ी हो सकती हैं-
1-भारत की ज्यादातर जनसंख्या गरीब है जो अपने रोजगार के लिये दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर करती है। लाकडाउन के समय में उनके रोजगार का संकट पैदा हो जायेगा और उन्हे भोजन प्राप्त करने की समस्या उत्पन्न हो जायेगी।
2-भारत की ज्यादातर कामगार जनसंख्या असंगठित क्षेत्र में है। कई महीनों से कारखानों में बंदी की स्थिति है जिससे इन कामगारों की नौकरी जा चुकी है। यह सभी अपने घरों को लौट चुके हैं जहाँ पहले से ही समस्यायें मौजूद है। ऐसे समय में उन्हे अपने घर का खर्च चलाना मुश्किल हो जायेगा।
3-यह लाकडाउन ऐसे समय में किया गया है जहाँ एक और वायरस का खतरा है तो दूसरी ओर लोगों के घरो में खाने-पीने की चीजों की किल्लत है। ऐसे समय में कानून-व्यवस्था को बनाकर रखना भी बहुत बड़ी चुनौती है। यदि जनता में खाने-पीने की चीजों की किल्लत नाकाबिले बर्दाश्त हद तक हो जाती है तो लूट-पाट की नौबत भी आ सकती है।
आशंकायें-
कुछ लोगों का यह मानना है कि भारत ने यह लाकडाउन देर से किया है और भारत में कोरोना मरीजों की संख्या में कमी इसलिये देखी जा रही है क्योंकि यहाँ मरीजों का टेस्ट बहुत कम किया गया है। चूँकि भारत में अभी कोरोना टेस्ट किट बहुत स्तरीय नहीं है इसलिये इसकी विश्वसनीयता पर बहुत ज्यादा यकीन भी नहीं किया जा सकता है। कुछ लोगों का विचार है कि अगले 15 मई तक भारत में कोरोना के मरीजों की संख्या कई लाख हो सकती है। कुछ लोग भारत सरकार पर निम्नलिखित सवाल उठा रहे हैं-
1-भारत ने शुरुआती दौर में अपना ध्यान चाइना, नेपाल और जापान जैसे पूर्वी देशों पर ही रखा और पश्चिमी देशों जैसे ब्रिटेन, इटली, फ्रांस इत्यादि से आने वाले यात्रियों पर नजर नहीं रखी। भारत में ज्यादातर कोरोना वायरस के केसेज इन्ही देशों से वापस आये मरीजों द्वारा फैले हैं।
2-भारत में अंतर्राष्ट्रीय विमानों के आवागमन पर रोक बहुत देर बाद लगाई गयी। उस समय तक ज्यादातर लोग वापस आ चुके थे जिनकी वजह से शुरूआती संक्रमण हो चुका था।
3-भारत ने लाकडाउन करने में देर कर दी है।
4-मुंबई, दिल्ली, गुजरात इत्यादि से वापस आने वाली वो कामगार जनसंख्या जो बिना किसी जाँच-पड़ताल और टेस्ट के, वापस अपने घर, राज्य में आ चुकी है, वे कोरोना के सबसे बड़े कैरियर के रूप में हो सकते हैं, जिनकी वजह से बीमारी के फैलने का खतरा सबसे ज्यादा हो सकता है।
अभी तक-

फिलहाल हम प्रार्थना कर सकते हैं कि भारत में कोरोना उस स्तर तक न पहुँचे जहाँ से इसे संभालना नामुमकिन हो जाये। 
दस्तक सुरेन्द्र पटेल निदेशक माइलस्टोन हेरिटेज स्कूल लर्निंग विद सेन्स-एजुकेशन विद डिफरेन्स

Tuesday, March 24, 2020

कोरोना का कहर


दिसंबर 2019 के महीने में चीन के वुहान शहर में एक रहस्यमयी साँस की बीमारी ने लोगों को अपने चपेट में लेना शुरु किया। जिस डाक्टर के पास उस बीमारी के मरीज सबसे पहले पहुँचे उसने अपनी सरकार को  इसके बारे में बताया लेकिन किसी ने उसकी बात को गंभीरता से नहीं लिया। कुछ दिनों के बाद वह डाक्टर भी उस बीमारी के चपेट में आ गया। उसने एक वीडियो बनाया और इस बीमारी के बारे में लोगों को आगाह किया। स्थिति बिगड़नी शुरू तब हुई जब इस संक्रामक बीमारी ने तेजी से अपना पैर पसारना शुरू किया और देखते ही देखते चीन की एक बड़ी आबादी इस बीमारी के चपेट में आ गई। चीन का वह राज्य जहाँ यह बीमारी सबसे पहले फैली उसका नाम था हुबोई, और शहर था....
वुहान......।
जनवरी आते-आते वुहान में प्रतिदिन सैकड़ों लोग मरने लगे। फरवरी में सरकार ने हुबोई प्रांत को लाकडाउन कर दिया। हमारे यहाँ अखबारों में खबर छपी कि...चीन न अपने राज्य हुबोई को उसके हाल पर छोड़ दिया है और देश के बाकी हिस्सों से उसे काट दिया है, न कोई वहां जा सकता है, और न ही कोई वहाँ से आ सकता है। जब मैंने यह खबर पढ़ी तो हालीवुड फिल्मे जैसे कि डूम्स डे याद आ गई जिसमें रहस्यमयी बीमारी की वजह से एक शहर को बंद कर दिया जाता है।
यह वह समय था जब भारत में हम इन खबरों को मात्र पढ़कर मजाक में उड़ा रहे थे। सोशल मीडिया, व्हाट्सअप, ट्विटर इत्यादि पर चीन की स्थिति का मजाक पर मजाक उड़ाया जा रहा था। मास्क पहने लोगों, अपनी सुरक्षा के लिये विशेष ड्रेस से लैस लोगों पर तमाम कमेंट किये गये। शायद कोई नहीं जानता था कि भारत में भी ऐसी स्थिति जल्द ही आने वाली है।
चीन की यात्रा पर गये लोगों, वहाँ पर पढने के लिये गये छात्रों इत्यादि को जब इस बीमारी के बारे में पता चला तो  उनकी स्थिति चिड़ियाघर में फँसे उस व्यक्ति की भाँति हो गई जिसे अचानक ही पता चला कि चिड़ियाघर में एक नहीं,अनकों शेर पिंजड़ें से बाहर निकल गये हैं और किसी भी वक्त उन्हे अपना शिकार बना सकते है। आनन-फानन में सभी अपने देशों को वापस लौटने लगे और जाने अनजाने में रहस्यमय बीमारी को फैलाने वाले विषाणुओं के लिये कैरियर बनने लगे जिसका नाम था.....
करोना...19
चीन से निकले लोगों ने इस वायरस को विश्व के हर कोने में फैला दिया। सबसे बड़ी मार पड़ी विश्व की महशक्ति यूनाइटेड स्टेट्स आफ अमेरिका पर जिसका बहुत कुछ चीन पर निर्भर करता है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप इससे बचने की तैयारियों पर ध्यान देने के बजाय चीन को पानी पी-पीकर कोसने लगे। इस बीच कोरोना वायरस अमेरिका के बड़े हिस्से में फैल गया और इसके चपेट मे हजारों लोग आ गये और सैकड़ो लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी। वायरस के वजह से सबसे ज्यादा मौते इटली में हुई क्योंकि वहाँ के लोगों ने वायरस की भयावहता को हल्के मे ले लिया। पहले तो सरकार ने सामाजिक दूरी बनाने के आदेश देने में ही काफी देर कर दी, दूसरे लोगों ने इसे सैर सपाटे के अवसर के रूप मे लिया। जब वहाँ की सरकार ने लाकडाउन की घोषणा की तो लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और सपरिवार सार्वजनिक स्थानों पर घूमने के लिये जाने लगे। नतीजन आज की तारीख तक इटली में कोरोना वायरस की वजह से मरने वालो की संख्या 6000 के आसपास पहुँच गई है और हजारों की तादाद में लोग इससे प्रभावित हैं। इसके बाद जहाँ सबसे ज्यादा तबाही फैली है वह देश है ईरान। यहाँ भी मरने वालो की संख्या कई हजार में है। देश की सरकार ने अपने हाथ खड़े कर दिये हैं और तबाही रुकने के लिये जिससे दुआ की जा रही है वह ईश्वर।
इस समय पूरी दुनिया की नजरें टिकी हैं 130 करोड़ की जनसंख्या वाल देश भारत पर जहा वायरस अपने दूसरे स्टेज में पहुँचने के बाद तीसरे स्टेज में पहुँचने के लिये बेताब है और हमारे देश की सरकार, स्वास्थ्य एजेसिया और अधिकांश जनसंख्या उसे वहीं रोकने के लिये जी जान से जुड़ी है। भारत में पहला केस केरल में सामने आया जहाँ वुहान से लौटी एक छात्रा का टेस्ट पाजिटिव पाया गया था। पहला केस सामने आने के बाद आज 24 मार्च को पाजिटिव केसों की सं 500 के पास पहुँच गई है। मरने वालों की संख्या 10 के पास पहुँच गई है। सरकार ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू का ऐलान किया था जो सफलतापूर्वक पूरा हुआ था।। आज देख के 548 जिलों को लाकडाउन कर दिया गया है। पंजाब, महाराष्ट्र में कर्फ्यू लगा दिया गया है। सरकार द्वारा लोगों से घरों में रहने की अपील की जा रही है। न मानने वालों के खिलाफ सख्ती दिखाई जा रही है, मुकदमे दर्ज किये जा रहे हैं। आज प्रधानमंत्री दुबारा देशवासियों को संबोधित करने वाले है। संभवतः जनता को अपने घरो में रहने के लिये अपील करेंगे। भारत में सबसे ज्यादा केसेज महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, दिल्ली, उ.प्र., कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश इत्यादि राज्यों में देखा गया है। प्रभावितों की बात करें तो यह भारत के लघभग हर राज्यों में फैल चुका है। उत्तर पूर्व के राज्य अभी इससे बचे हुये थे लेकिन आज मणिपुर में भी एक लड़की प्रभावित पायी गयी है जो हाल ही में ब्रिटेन से वापस आयी है। कुल मिलाजुलाकर अभी स्थिति यह है कि वायरस उन्ही लोगों में पाया गयाहै जो विदेश यात्रा से वापस लौटे हैं अथवा विदेश से वापस आये लोगों के संपर्क में आये हैं। सरकार की कोशिश यही है कि वायरस को इसी स्थिति में रोक दिया जाय अन्य़था स्थिति भयानक हो जायेगी। केन्द्र सरकार, राज्य सरकारें हर मुमकिन कोशिश कर रही है कि वायरस को आम जनता में फैलने से रोका जाय। इसे रोकने के लिये हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि हम सरकार के दिशा निर्देशो का पालन करें।

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के दौर में एक नागरिक के तौर पर हमारी जिम्मेदारी भी कम नहीं है। हमें चाहिये कि हम सरकार के अगले निर्देशों तक अपने घरो में रहें। सार्वजनिक स्थानों पर जाने से बचें। एक दूसरे के संपर्क में न आये। स्थिति की गंभीरता को समझें। इसे मजाक में तो बिल्कुल भी न लें...क्योंकि आप और हम सिर्फ ऐहतियात बरत सकते हैं, वायरस को अपने घरों में प्रवेश करने से रोक सकते हैं....लेकिन उसकी कल्पना बिल्कुल भी नहीं कर सकते हैं कि क्या होगा जब कोरोना-19 आपके और हमारे घरों में प्रवेश कर जायेगा। 
दस्तक सुरेन्द्र पटेल निदेशक माइलस्टोन हेरिटेज स्कूल लर्निंग विद सेन्स-एजुकेशन विद डिफरेन्स

मतदान स्थल और एक हेडमास्टर कहानी   जैसा कि आम धारणा है, वस्तुतः जो धारणा बनवायी गयी है।   चुनाव में प्रतिभागिता सुनिश्चित कराने एवं लो...