दिल से निकलेगी ना मरकर भी,
वतन की उल्फत,
मेरी मिट्टी से भी,
खशबू-ए-वतन आयेगी...।
आज के दौर में देशभक्ति की ये भावनायें और जज्बा उपभोक्तावाद संस्कृति तथा बाजारवाद के बोझ तले दबकर अंतिम साँसे गिन रही हैं जिसे पोषण की जरूररत है जो ईमानदारी की आँच से पककर ही निकल सकता है।
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