Tuesday, July 24, 2012

टी ई टी और अखिलेश सरकार का नया दाँव

आसमान से गिरा खजूर में अटका।
खबर आयी है कि 2012 में प्राइमरी शिक्षकों की भर्ती के लिये आयोजित की गई टी ई टी की परीक्षा, मात्र पात्रता परीक्षा के तौर पर ही ली जायेगी और विद्यालयों में न्युक्तियाँ हाईस्कूल, इंटर और ग्रेजुएशन के अंकों के आधार पर ही की जायेंगी। यह खबर निःसन्देह हजारों परीक्षार्थियों के लिये सदमें का काम करेगी क्योंकि टी  ई टी की परीक्षा में भले ही उनके नंबर ज्यादा आये हों लेकिन एकडमिक नंबरों के खेल में वह पीछे चले जायेंगे और वे अभ्यर्थी जिनके टी ई टी के परीक्षा में भले ही कम अंक आयें हो, अगर उनके एकडमिक नंबर अधिक हों तो वे आसानी से न्युक्ति पा जायेंगे। पूछने वाली बात यह है कि अगर टी ई टी परीक्षा को मात्र पात्रता परीक्षा ही घोषित करना था तो परीक्षाफल में नंबर प्रदान करने की क्या जरूरत थी। असल में ये सारा खेल उलझाने वाला है जिसे अखिलेश सरकार ने खेलने में महारत हासिल कर ली है। चुनाव के पहले सपा ने जनता से खूब वादे किये जिसके दम पर वह बहुमत से सत्ता में आयी। गद्दी हथियाने के बाद जब चुनावी वादे पुरे करने की बारी आयी तो पहली बार लगा कि चादर की लंबाई से ज्यादा पैर पसार लिया है। अब अपने पैरों को समेटने की बारी आयी तो सबसे पहली गाज गिरी बेरोजगारी भत्ता की आस लगाये हुये उन अकर्मण्य उत्तर प्रदेश की आधी जनता पर जिन्होने टुकड़े  पाने की आस में ना जाने कितने दिन लाइनों में  लगकर सूरज की गर्मी से जल-भुनकर सही सलामत बचे शरीर पर पुलिस वालों की लाठियों को भी बर्दाश्त किया। जब भत्ता लेने की बारी आयी तो ऐसे-ऐसे दाँव पेंच भिडा़ये गये कि आई आई एम के गोल्ड मेडलिस्ट भी पानी माँगने लगें। कुल मिला जुलाकर हलवाई की दुकान पर मँडराती मक्खियों की संख्या में इतनी तेज गिरावट आयी जिसे देखकर बांबे स्टाक एक्सचेंज भी शर्मा जाये। लाखों उम्मीदवार तो असल बेरोजगारी की रिक्वायरमेंट में ही छंट गये और जो बचे, वे खुश हो सकते हैं कि अगले तीन चार साल तक आलस का पैसा मिलता रहेगा।
अगला नंबर आया हाईस्कूल और इंटरमीडियेट पासआउट विद्यार्थियों को टैबलेट और लैपटाप देने का, तो उसकी उम्मीदवारी में कई प्रकार के पेंच फँसा दिये गये। अभी खबर आयी है कि उसके लिये बजट सैंक्शन हो गया है।
अभी इसके साथ ही साथ ना जाने कितने प्रकार के वादे पूरे करने की कवायद मे ंजुटी है सपा सरकार जिसमें एक खास वर्ग के तुष्टिकरण के अनगिनत प्रयास भी जारी हैं। अब जाहिर सी बात है कि बजट का अधिकांश हिस्सा तो खेलने और खिलाने में ही निपट गया तो बचा क्या...अभी इतने बड़े  मंत्रिमंडल के खर्चे भी तो हैं। इस कंगाली के दौर में अगर 72 हजार शिक्षकों की तैनाती हो गई तो सरकार को अपने कपड़े भी गिरवी पर रखने पड़ेंगे। तो आखिर किया क्या जाये...शायद सरकार के आला मैनेजमेंन्ट गुरुओं ने सोचा होगा...। काफी मंथन के बाद यह फैसला लिया गया होगा कि टी ई टी पास अभ्यर्थियों में ही फूट डाल दो। और हुआ यही भी, टी ई टी को पात्रता परीक्षा का दर्जा दे दिया गया। अब आने वाले दिनों में जो होगा वह कोई भी अनुमान लगा सकता है...अभ्यर्थियों का एक समूह इस फैसले के खिलाफ अपील करेगा और एक समूह इसका समर्थन करेगा। इन दोनों के आपसी झगड़े का फायदा उठायेगी हमारी सरकार। जबतक कोई निर्णय लिया जायेगा तबतक हमारे मैनेजमेन्ट गुरू बादाम खाकर एक नये तिकड़म का जुगाड़ कर ही लेंगें...।
दिल से निकलगी, ना मरकर भी, वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी....।

मतदान स्थल और एक हेडमास्टर कहानी   जैसा कि आम धारणा है, वस्तुतः जो धारणा बनवायी गयी है।   चुनाव में प्रतिभागिता सुनिश्चित कराने एवं लो...