मेरी हमेशा से यही सोच रही है कि काश मैं अपने छोटे से कस्बे के लिये कुछ ऐसा कर पाता कि इसकी भी पहचान देश और विश्व स्तर पर हो सकती। फिलहाल ऐसा अभी हो तो नही पाया लेकिन कोशिश अभी जारी है और यकीनन भविष्य में यह होगा जरूर भले ही उसका कारण मैं ना रहूँ।
फिलहाल तो मैने कुछ देर पहले अपने यातायात वाले पोस्ट को कुछ दोस्तों के ईमेल आईडी पर भेजा जिसे भेजते हुये मैसेज वाले बाक्स में मैनें अचानक ही लिख दिया कि...plz fwd this to all maharajas...यह लिखते ही अचानक ही ख्याल आया कि अगर मुंबई के मराठी लोग मुंबईकर हो सकते हैं....दिल्ली के दिलवाले हो सकते हैं...पंजाब के पंजाबी हो सकते हैं....केरल के मलयाली हो सकते हैं तो महराजगंज के Mahrajas क्यों नही हो सकते हैं। जरूर हो सकते हैं यह नाम महराजगंज के निवासियों के लिये और भी प्रासंगिक है क्योंकि यहाँ के निवासियों जैसी अमन पसंद जनता शायद ही कहीं हो...हम भले ही विकास के टट्टू पर बैठकर ही अपनी यात्रा पूरी करने की कोशिश कर रहे हों और शेष भारत के तेज कदमों से कदम मिलाकर ना चल पा रहे हों लेकिन हममें एक बात तो है जो औंरों से अलग करती है और वह है हमारी मेहनत से उगाई गई अनाज की बोरियाँ, धान और गेहूँ के रिकार्ड उत्पादन से लाखों भारतवासियों को मिल रहा भोजन, सांप्रदायिक सौहार्द से की मिसाल कायम करती यहाँ की सहिष्णु जनता जो दिल से राजा ही नही महाराजा है....हम पेट भरते हैं..लेकिन हमारे पेट पर उत्तर प्रदेश से बाहर लात मारी जाती है...हम यहाँ पर सबका सम्मान करते हैं, आने वालों की इज्जत करते हैं जबकि बाहर वाले हमें भिखारी कहकर दुत्कारते हैं और हमें हमारा हक देने से कतराते हैं...हम दिल्ली की सरकार बनाते हैं लेकिन वही सरकार हमें मू्र्ख बना देती है....हम आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं लेकिन हमें पिछड़ा कहकर पीछे धकेल दिया जाता है....हम फिर भी आगे बढ़ने की कोशिख कर रहें है आज नही तो कल वह वक्त आयेगा जब यहाँ के लड़के अंग्रेजी नाम की विदेशी चाबुक को अपने हाथ में लेकर विकास नाम के बिगड़ैल घोड़े को मार-मारकर यहाँ पर लायेंगे और उसे सड़कों नही जुते हुये खेतों में दौड़ायेंगे... तब ना केवल राज ठाकरे जैसे लोग बल्कि चिदंबरम जैसे लोग भी मानने के लिये बाध्य होंगे कि हम ही हैं महाराजा....।
दिल से निकलगी, ना मरकर भी, वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी....।
फिलहाल तो मैने कुछ देर पहले अपने यातायात वाले पोस्ट को कुछ दोस्तों के ईमेल आईडी पर भेजा जिसे भेजते हुये मैसेज वाले बाक्स में मैनें अचानक ही लिख दिया कि...plz fwd this to all maharajas...यह लिखते ही अचानक ही ख्याल आया कि अगर मुंबई के मराठी लोग मुंबईकर हो सकते हैं....दिल्ली के दिलवाले हो सकते हैं...पंजाब के पंजाबी हो सकते हैं....केरल के मलयाली हो सकते हैं तो महराजगंज के Mahrajas क्यों नही हो सकते हैं। जरूर हो सकते हैं यह नाम महराजगंज के निवासियों के लिये और भी प्रासंगिक है क्योंकि यहाँ के निवासियों जैसी अमन पसंद जनता शायद ही कहीं हो...हम भले ही विकास के टट्टू पर बैठकर ही अपनी यात्रा पूरी करने की कोशिश कर रहे हों और शेष भारत के तेज कदमों से कदम मिलाकर ना चल पा रहे हों लेकिन हममें एक बात तो है जो औंरों से अलग करती है और वह है हमारी मेहनत से उगाई गई अनाज की बोरियाँ, धान और गेहूँ के रिकार्ड उत्पादन से लाखों भारतवासियों को मिल रहा भोजन, सांप्रदायिक सौहार्द से की मिसाल कायम करती यहाँ की सहिष्णु जनता जो दिल से राजा ही नही महाराजा है....हम पेट भरते हैं..लेकिन हमारे पेट पर उत्तर प्रदेश से बाहर लात मारी जाती है...हम यहाँ पर सबका सम्मान करते हैं, आने वालों की इज्जत करते हैं जबकि बाहर वाले हमें भिखारी कहकर दुत्कारते हैं और हमें हमारा हक देने से कतराते हैं...हम दिल्ली की सरकार बनाते हैं लेकिन वही सरकार हमें मू्र्ख बना देती है....हम आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं लेकिन हमें पिछड़ा कहकर पीछे धकेल दिया जाता है....हम फिर भी आगे बढ़ने की कोशिख कर रहें है आज नही तो कल वह वक्त आयेगा जब यहाँ के लड़के अंग्रेजी नाम की विदेशी चाबुक को अपने हाथ में लेकर विकास नाम के बिगड़ैल घोड़े को मार-मारकर यहाँ पर लायेंगे और उसे सड़कों नही जुते हुये खेतों में दौड़ायेंगे... तब ना केवल राज ठाकरे जैसे लोग बल्कि चिदंबरम जैसे लोग भी मानने के लिये बाध्य होंगे कि हम ही हैं महाराजा....।
दिल से निकलगी, ना मरकर भी, वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी....।