समय एक जैसा नहीं रहता। गुजरते हुये जमाने के साथ इंसान की ताकत और प्रभाव खत्म होता जाता है और एक समय ऐसा आता है जब वह मौत के कगार पर खड़ा अपने जीवन का अंत देखता है और बेबस, लाचार होकर सब कुछ यहीं छोड़कर चला जाता है। अच्छा भी और बुरा भी।
1996 का वो दौर जब पी.वी.नरसिम्हा राव प्रधान मंत्री , चन्द्रास्वामी उनके
सलाहकार और मैं कक्षा 8 वी का छात्र हुआ करता था। पढ़ने लिखने का शौक तब था इसलिये
पत्रिकायें उस समय भी मँगाकर पढ़ता था। उस समय आजकल के जैसे सनसनी फैलाने वाले
न्यूज चैनल्स नहीं हुआ करते थे। खबरों के लिये दूरदर्शन का समाचार, पढ़ने के लिये
अखबार और पाक्षिक समाचार पत्रिकायें जैसे माया और इंडिया टुडे हुआ करते थे। उस समय
इंडिया टुडे खबरों के लिये विश्वस्त पत्रिका हुआ करती थीऔर उसमें प्रधामंत्री
नरसिम्हा राव के बारे में काफी कुछ लिखा जाता था।
ऐसा माना जाता था कि चन्द्रास्वामी नरसिम्हा राव के सलाहकार थे।
चन्द्रास्वामी उन्हे कौन सी सलाह देते थे, धार्मिक, राजनैतिक या फिर कूटनीतिक,
इसके बारे में वही दोनों बेहतर तरीके से बता सकते हैं लेकिन दुख की बात है कि अब
दोनों ही इस दुनिया में नहीं रहे। नरसिम्हा राव के प्रधाममंत्री पद से हटते ही
चन्द्रास्वामी पर अनेकों मामले दर्ज हो गये और उन्हे जेल भी जाना पड़ा। यह वह वक्त
था जब उनके सितारे गर्दिश में जाने लगे थे और 23 मई 2017 को उनकी मौत के बाद
भारतीय राजनीति का एक ऐसा अध्याय बन्द हुआ जिसे आज के समाचार चैनल या फिर राजनीतिक
पार्टियाँ खोलने में हिचकिचा रहे हैं।
चन्द्रास्वामी का जन्म राजस्थान के बहरोर में एक छोटे से व्यापारी धर्मचंद
जैन के घर पर हुआ था। उनके पिता सूद पर पैसे उठाते थे। उनके जन्म के बाद उनका
परिवार हैदराबाद बस गया जहाँ 16 साल की उम्र में उनकी दिलचस्पी तंत्र-मंत्र में
होने लगी और उन्होने घर छोड़ दिया। इसके बाद वह जैन धर्मगुरू महोपाध्याय अमरमुनि
के संपर्क में आये। 23 साल की उम्र में काशी आये और फिर कुछ समय बिहार में भी रहे।
कुछ लोगों का मानना है कि चन्द्रास्वामी को तंत्र-मंत्र और ज्योतिष की कोई
जानकारी नहीं थी और वह दूसरे से प्राप्त सूचना के आधार पर कुण्डली विवेचन करते थे।
वे नागार्जुन सागर प्रोजेक्ट में स्क्रैप डीलर का काम करने लगे जहाँ धोखाधड़ी का
मामला उजागर होने के बाद उसे छोड़ने के लिये बाध्य हुये।
नरसिम्हा राव से नजदीकी-
वह 1971-73 का दौर था जब चन्द्रास्वामी और नरसिम्हा राव की नजदीकियाँ
जगजाहिर हुई। उसके पहले राजनीतिक गलियारों में उनकी पहुँच का रास्ता सिद्धेश्वर
प्रसाद से शुरू हुआ जब वो 1962 में लोकसभा सांसद बनकर दिल्ली आये। उनके सर्वेन्ट
क्वार्टर में दो लोग रहा करते थे एक चतुर्भुज गौतम और दूसरे चन्द्रास्वामी। बाद
में चतुर्भुज गौतम चन्द्रशेखर के निजी सचिव बने। धीरे-धीरे चन्द्रास्वामी
कांग्रेसी नेताओं के घरों के चक्कर लगाने और उनकी कुण्डलियाँ बनाने लगें। इस तरह
से राजनीति और अंधविश्वास के जोड़-तोड़ के गणित के माहिर बन गये। अपने पीले
वस्त्र, रुद्राक्ष की माला, बड़ी दाढ़ी मूछ, लंबे बाल के सम्मिलित प्रभाव का
इस्तेमाल करके उन्होने राजनीतिक गलियारें में अपनी अच्छी पकड़ बना ली।
वक्त के साथ सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशी राजनेताओं, शासनाध्यक्षों और
हथियार के सौदागरों से चन्द्रास्वामी की बहुत अच्छी जमने लगी। एक वक्त ऐसा था जब
उनके संबन्ध ब्रिटेन की प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर, और सउदी अरब के सबसे बड़े
हथियारों के व्यापारी अदनान खशोगी तक से थे। बालीवुड का राजनीति, पैसे और पावर से
पुराना नाता रहा है इसलिये वहाँ के कुछ चमते सितारे चन्द्रास्वामी के भक्त थे
जिनमें राजेश खन्ना और आशा पारेख जैसे नाम शामिल थे।
अदनान खशोगी से सबन्धों की बुनियाद पर ही भारत में हथियारों का सबसे बड़ा
घपला बोफोर्स हकीकत में बदल सका, इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता।
चन्द्रास्वामी ने राम मंदिर निर्माण में भी मध्यस्थता कराई थी और मुलायम
सिंह यादव से भी उनके संबन्ध थे। 1982 में मिस इंडिया रही पामेला बोर्डस ने डेली
मेल को दिये गये इण्टरव्यू में बताया था कि वह अदनान खशोगी और चन्द्रास्वामी ने
अपना हित साधने के लिये उनका इस्तेमाल भी किया था। चन्द्रास्वामी ने पावर, मनी,
हथियार और सत्ता का ऐसा काकटेल बनाया जिसमें वो कई साल तक किंग मेकर बने रहे।
लेकिन वक्त एक जैसा नहीं रहता 1996 के बाद उनपर ताबड़तोड़ कई मुकदमे दर्ज हुये और
उन्हे तिहाड़ जेल जाना पड़ गया। सत्ता से दूर रहने के बाद भी उनके चाहने वाले
चारों ओर मौजूद रहे और उन्हे किसी खास किस्म की परेशानी नहीं हुई। अपने मौत के
पहले तक वह दिल्ली में अपने आलीशान फार्म हाउस कम आश्रम में रहे और 66 साल की उम्र
में उनकी मौत के बाद ही लोग जान सके कि वह
अस्पताल में भर्ती थे और मृत्यु के पहले उनके सारे अंगो ने कार्य करना बंद कर दिया
था।