मुलायम ने कल्याण सिंह को अपनी पार्टी में शामिल करने का पत्ता खेला और दाँव उल्टा पड़ गया, नतीजन उनको विधानसभा चुनावों में हार का मुँह देखना पड़ा। मुलायम को हराने में तुरुप के पत्ते साबित हुये उनके फिक्स वोट बैंक जोकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मुस्लिम बेल्ट है। विधान सभा चुनाव फिर आने वाले हैं और मुलायम सिंह को अपनी गलती का अहसास हो गया और उन्होने बड़ी विनम्रता से मुस्लिमों से माफी माँगी कि कल्याण सिंह को पार्टी में शामिल करना उनकी भूल थी।
सवाल यह है कि क्या सोचकर मुलायम ने कल्याण सिंह को सपा में शामिल किया, अगर किया तो फिर निकाला क्यों, और निकाला भी तो अपने शामिल करने के निर्णय पर माफी क्यों माँगी, मान लीजिये माफी भी माँग ली तो क्या सोचकर मुस्लिमों से माफी माँगी। क्या वे सोचते हैं कि मुस्लिम नही समझते कि ये सारी नौंटंकी वोट के लिये है। शायद वे सही सोचते हैं, क्योंकि उनका सोचना सही नही होता तो क्यों मुसलमान उन्हे अपना हमदर्द मानते। मैं नही समझता कि उन्होने उनके लिये कुछ विशेष किया है। उन्होने अगर कुछ विशेष किया है तो सिर्फ अपने परिवार वालों के लिये।
अगर मुसलमान यह सोचते हैं कि उनका वोट लेकर मुलायम उनके लिये कुछ बेहतर करेंगे तो इससे अच्छा होता कि वे अपनी अलग पार्टी बना लेते, कुछ भी हो मुस्लिम वोट चुनावों में विचलन तो पैदा कर ही सकते हैं। मुलायम को इस बात से डरना चाहिये कि अगर यह हो गया तो उनका क्या होगा, कोई बच्चा भी उनसे पूछ सकता है कि तेरा क्या होगा कालिया। मुलायम मुस्लिम वोटों के बिना बेकार हैं और अगर वे समुदायवाद को बढ़ावा देकर अपने भूखे पेट के लिये राजनीति के तवे पर वोट रूपी रोटियाँ सेकना चाहते हैं तो इसमें कोई शक नही कि वाकई जिन्ना का भविष्य सुरक्षित है।
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