Saturday, August 7, 2010

आई पी एल और दंतेवाड़ा के जवानों की कंपंशेसन राशि.......




मेरे दोस्त अरविंद ने मुंबई से आज एक मैसेज भेजा कि आई पी एल में खेलने वाले हर एक खिलाड़ी को तीन करोड़ रुपये मिले और छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में मरने वाले जवानों को मात्र एक लाख।

आज इस पर चर्चा करते हैं।

पहली बात तो यह कि आई पी एल में खेलने के लिये हर एक खिलाड़ी की बोली लगती है और वह खिलाड़ी लगाई गई बोली में खरीदा जाता है जो उनके नाम और प्रतिभा के अनुरूप होती है। दूसरी बात आज जमाना पैसे का है और पैसा आता है बिजनेस से, बिजनेस चलता है ऐड से और ऐड करते हैं फिल्मस्टार और क्रिकेटर। इसलिये यह कहना कोई मायने नही रखता कि किसी खिलाड़ी को कितने रुपये मिले क्योंकि वो रुपये उसे खेलने के लिये नही, हजारों करो़ड़ों रुपये के ऐड सिस्टम का हिस्सा बनने के लिये दिया जाता है। सभी जानते है कि 20-20 क्रिकेट से कम से कम क्रिकेट का तो कोई भला नही होने वाला है। यह एक ऐसा फार्मेंट है जिसमें कोई भी टीम थोड़े से अभ्यास से अच्छा खेल दिखा सकती है। एक आकलन में पिछले आई पी एल में आधिकारिक प्रसारणकर्ता सोनी ने अकेले लघभग आठ सो करोड़ का मुनाफा कमाया था। अगर सोनी इतनी बड़ी रकम कमा सकता है तो आयोजनकर्ताओं और फ्रेंचाइजी टीमों की कमाई का कोई हिसाब ही नही है और इस कुबेर की कमाई से सौ दो सौ खिलाड़ियों को देना जैसे उन्हे चुग्गा खिलाना है। असल में आज भारत में कोई सबसे ज्यादा प्रोफेशनल संस्था है तो वो बी सी सी सी आई है। पैसा बनाना तो कोई इनसे सीखे। आई पी एल की कमाई का खेल इतना हाई प्रोफाइल, फायदेमंद और उलझा है कि ललित मोदी और शशि थरूर इसके भेंट चढ़ गये।

अब बात करते हैं नक्सलियों के द्वारा मारे गये जवानों की कंपंशेसन राशि के बारे में। नक्सलियों का हमला और हमारे जवानों की मौत सीधे-सीधे हमारे आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था का मामला है जो अभी सेना के हाथ में नही हमारे घटिया मंत्रियों के हाथों में है। जो कुंभकर्णी नींद में इस कदर डूबे हुये हैं कि न तो उन्हे हमारे देश के अति पिछड़े अविकसित इलाकों की चीख पुकार ही सुनाई दे रही है और न ही नक्सलियों के हमलें में मारे जाने वाले जवानों के परिवारो का क्रंदन ही। वे जब अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में राष्ट्रमंडल जैसे खेलों के आयोजन में देश की इज्जत की परवाह न करते हुये खर्चे के लिये दिये जाने वाले पैसों को दोनों हाथो से लूट सकते हैं तो उन्हे पचास, सौ जवानों की मौत से कोई फर्क नही पड़ने वाला है। बी एस एफ, सी आर पी एफ और एस एस बी जैसे सैनिक और अर्धसैनिक बलों में देश के पिछड़े इलाकों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश राजस्थान हरियाणा, आदि राज्यों से आये नवयुवक भर्ती होते हैं जिनके मरने से किसी को कोई फर्क नही पड़ने वाला। क्योंकि जितने मरते हैं उससे ज्यादा मरने के लिये भर्ती होने के लिये भर्ती होने के लिये आ जाते हैं। अगर यकीन न आता हो तो गोरखपुर और बरेली जैसे शहरों में आकर हजारों युवकों की उस भीड़ को देखिये जो ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट इत्यादि तो है लेकिन जिनमें योग्यता का अभाव है। उन्हे रोजगार पाने का ये सबसे आसान तरीका लगता है।

यह हमारी शिक्षा व्यवस्था है जो ऐसे ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट नही बनाती है जो योग्य हों। हमारा शासन तंत्र है जो जवानों की मौत पर सिर्फ घड़ियाली आँसू बहाते हैं। ये हमारे नेता हैं जो वक्त आने पर देश को भी बेच सकते हैं। प्राब्लम आई पी एल, जवानों की मौत या नक्सलियों का नही है, प्राब्लम हमारे भ्रष्ट नेताओं, सड़ चुके सिस्टम और बेइमान हो चुकी जनता में है। नेता जो अपना काम ईमानदारी से नही करते, सिस्टम जिसमें हजारो कमियाँ है, और जनता जो इतनी डरी हुई और बेईमान है कि विरोध का झंडा नही उठाती....


सुरेंद्र...

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