Thursday, December 3, 2020
मदनपुर वाली मातारानी
Friday, September 18, 2020
लाकडाउन और हमारा अस्तित्व..
समय सापेक्ष है, जीवन
सापेक्ष है और यह जगत भी सापेक्ष है। सापेक्षता के इसी सिद्धान्त को संभवतः आइंस्टीन
ने E=mc2 के रूप में निरूपित किया। इस जगत का अस्तित्व ही मिट
जायेगा यदि यह सापेक्षता समाप्त हो जाये, और यही कारण है कि हम, अर्थात विद्यालय
संचालक, प्राइवेट अध्यापक शनैः-शनैः समाप्ति की ओर जा रहे हैं। ऐसा इसलिये हो रहा
है कि हमारी सापेक्षता का आधार, विद्यालय समाप्त हो रहा है। विद्यालय नहीं तो,
विद्यार्थी नहीं, विद्यार्थी नहीं तो अध्यापक नहीं, अध्यापक नहीं तो संचालक नहीं।
अर्थात कुछ नहीं।
14 मार्च 2020 को उ.प्र. सरकार ने विद्यालय बंद करने की घोषणा की, उसके कुछ
दिनों के बाद प्रधानमंत्री ने जनता कर्फ्यू का ऐलान किया। जनता ने उनके कथनानुसार
शाम को 5 बजे ताली-और थाली बजाई। उस दिन मैने भी, विद्यालय के ध्वनिविस्तारक यंत्र
के माध्यम से प्रधानमंत्री के अपील का समर्थन किया और मेरे बच्चों ज्ञान और गौरी ने
मेरे साथ कीबोर्ड पर अपने ड्रम के साथ, वह शक्ति हमें दो दयानिधे, भजन पर ताल से ताल
मिलाया।
सभी को उम्मीद थी, कि समस्या का समाधान हो जायेगा, पर ऐसा हुआ नहीं और 24
मार्च को प्रधानमंत्री जी ने पूरे देश में लाकडाउन की घोषणा कर दी। उम्मीद 21 दिन
और खिसक गयी। चलो जैसे तैसे काट लेंगे, 21 दिन के बाद तो सबकुछ ठीक हो ही जायेगा।
सारा भारत बंद हो गया, विद्यालय भी बंद हो गये, विद्यार्थी आने बंद हो गये, आय का
एकमात्र स्रोत, शुल्क भी बंद हो गया। अभिभावकों ने विद्यालय की तरफ से नजरें इस
तरह से फेरीं, जैसे लोग राह चलते भिखमंगे से फेर लेते हैं। कुछ को खुशी हुई कि
चलो, सालभर की फीस जमा करने का झंझट दूर हुआ। कितने काम हो जायेंगे उस फीस से, घर
की दाल-रोटी चल जायेगी, पिताजी की दवाई आ जायेगी, बच्चों के कपड़े आ जायेंगे,
खेतों के लिये बीज आ जायेगा, गेंहू की कटाई निकल जायेगी, एल.आई.सी. की किश्त जमा
हो जायेगी, बहन की शादी में लगने वाल खर्च निकल जायेगा, बाहर की चारदीवारी टूट गयी
है, उसकी मरम्मत हो जायेगी और भी न जाने क्या-क्या। चूँकि अभिभावकों के सारे काम
विद्यालय की फीस से ही होते हैं, इसलिये उसके सारे कार्य उससे हो जायेंगे और वह
पूर्णरूपेण सुखी हो जायेगा।
अभिभावक तो सुखी हो गया किन्तु विद्यालय संचालक, अध्यापक 21 दिनों को रोजेदार
मुसलमान की तरह उंगलियों पर गिनने लगा, कि अप्रैल में सब ठीक हो जायेगा। लेकिन ऐसा
एक बार फिर नहीं हुआ और अप्रैल में लाकडाउन का दूसरा चरण शुरू हुआ और 3 मई तक चला।
4 मई से तीसरा लाकडाउन शुरू हुआ जो पूरे मई तक चला। जून में अनलाक का पहला चरण
प्रारंभ हुआ और जो कोरोना महामारी कछुये की चाल से बढ़ रही थी वह अचानक से खरगोश
की तरह भागने लगी और प्रभावितों का आँकड़ा आसमान छूने लगा। जून महीने तक संख्या
लाखों में पहुँच गयी और यह स्पष्ट हो गया कि विद्यालय नहीं खुलने वाले हैं।
विद्यालय संचालकों और अध्यापकों की उम्मीद खत्म हो गयी, खत्म नहीं हुआ तो
वह था कोरोना का भय जिसके साये में आज पूरा भारत अपनी स्वाभाविक स्थिति में नजर
आता दिख रहा है। पर हकीकत इसके उलट है, यह सिर्फ विद्यालय नहीं है, जो आर्थिक
बदहाली के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं, यह भारत की अर्थव्यवस्था है जो इतिहास
के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है।
विद्यालय संचालकों का सारा कामकाज जो विद्यालय चलने के साथ हुआ करता था,
हफ्ते के 6 दिन व्यस्त दिनचर्या, नाना-प्रकार की चुनौतिया और उनसे पार पाने की
जद्दोजहद, अंबेडकर जयंती, रामनवमी, गर्मी
की छुट्टियाँ, समर असाइनमेन्ट, समर कैंप, जुलाई में बरसात की समस्या, प्रेमचंद
जयंती, परीक्षाओं का आयोजन, 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस, जन्माष्टमी पर फैंसी
ड्रेस प्रतियोगिता, रक्षाबंधन पर भाई-बहन का प्रेम, बकरीद की सेवई, सितंबर में
हिन्दी दिवस, अक्टूबर में गाँधी जयन्ती, दशहरे की छुट्टियाँ, दीपावली पर रंगोली
प्रतियोगिता, नवंबर में बालदिवस, वार्षिक खेलकूद प्रतियोगिता और भा न जाने
क्या-क्या, सबकुछ खत्म हो गया, भूल गया। तारीखें भूल गयीं, सोमवार, मंगलवार भूल
गया, रविवार जिसका बेसब्री से इंतजार था वह भूल गया।
कुछ शब्दों में कहें, अपना अस्तित्व भूल गया।
दस्तक
Saturday, June 20, 2020
सुशांत सिंह-लूजर का टैग हम खुद लगाते हैं.......

Friday, May 29, 2020
ज्ञान का मुण्डन-कोरोना काल में...
Friday, May 22, 2020
कोरोना महामारी बनाम अन्य खतरनाक बीमारियाँ-1

क्रम. | क्षेत्र | संक्रमित | उपचारित | मृत्यु |
1 | विश्व | 50.8 लाख | 19.4 लाख | 3.32 लाख |
2 | भारत | 1.18 लाख | 48534 | 3583 |
ये
हैं शीर्ष पांच देश :
क्र.स. देश
मौतें
1. नाईजीरिया
1,62,000
2. भारत
1,27,000
3. पाकिस्तान
58,000
4. कांगो
40,000
5. इथोपिया
32,000
स्रोत-यूनिसेफ
निमोनिया से मरने वाले बच्चों की संख्या के मामले में भारत की स्थिति इतनी खराब है कि उससे ऊपर बस अफ्रीकन देश नाइजीरिया है, जहाँ के हालात बदतर हैं।कोरोना से तुलना-
अगर बात करें कोरोना से तुलना की तो देश में कोरोना का पहला केस सामने आने के बाद कुल मामलों की संख्या लघभग 1,18000 है। मरने वालों की संख्या 3583 है। यूनिसेफ द्वारा प्रदान किये गये आंकड़े पर नजर डालें तो 2018 में लघभग 1,27000 बच्चे, सिर्फ बच्चे ही मरें हैं।
सबसे बड़ी समस्या-
स्वास्थ्य क्षेत्र में आने वाली नई चुनौतियों और सामने आने वाली नई बीमारियोे के बीच यह लघभग भूला जा चुका है कि निमोनिया भी एक जानलेवा बीमारी है।
वजह सिर्फ इतनी है कि -
1-इससे मरने वाले वो बच्चें है जो अपने हक की आवाज नहीं उठा सकते हैं।
2-इससे मरने वालों बच्चों की संख्या धीरे-धीरे सामने आती है।
3-इससे मरने वाले बच्चे अविकसित और विकासशील देशों में रहते हैं।
4-इसकी वजह से लाकडाउन लगाने की नौबत कभी नहीं आती।
5-इसकी वजह से अर्थव्यवस्था को समग्र नुकसान नहीं होता।
सवाल-
पर क्या इसी वजह से निमोनिया जैसी घातक बीमारी से मरने वाले बच्चों की संख्या भारत में इसी तरह लाखों में रहेगी।
Friday, May 15, 2020
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साभार-जागरण जोश |
Tuesday, March 24, 2020
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दस्तक सुरेन्द्र पटेल/ सत्रहवीं लोकसभा के परिणाम के पश्चात हर अखबार, टी.वी. चैनल, फेसबुक, ट्विटर इत्यादि जनसंचार ...