Saturday, April 8, 2017

शिक्षा व्यवसाय क्यो?

कोई भी व्यवसाय पूँजी के बिना शुरू नही हो सकता और एक स्कूल खोलने के लिये पूंँजी की कुछ ज्यादा ही आवश्यकता है। इसलिये किसी हद तक यह सही भी है कि शिक्षा आजकल व्यवसाय का जरिया बन चुकी है। ऐसा क्यों हैं यह जानने के लिये कुछ बिन्दुओं पर गौर करना समीचीन है-
1-अभिभावक बच्चे का दाखिला कराने में स्कूल की गुणवत्ता से ज्यादा स्कूल के भवन की ऊँचाई, विद्यालय का कैंपस, आकर्षक रंग रोगन देखना पसंद करते हैं।
2-क्लासरूम में पढ़ाई के माहौल से ज्यादा उपलब्ध सुविधाओं पर उनकी नजर ज्यादा रहती है। जैसे कि स्मार्टक्लास, इंटरेक्टिव बोर्ड, सी सी टी वी कैमरा इत्यादि।
3-स्कूल से निकले हुये विद्यार्थियों की सफलता प्रतिशत की बजाय वह विद्यालय में पढ़ रहे बच्चों की गिनती करना ज्यादा पसंद करते हैं। उनकी धारणा है कि विद्यालय में नामांकित छात्रों की संख्या उसकी गुणवत्ता की पहचान है।
4-वह मानते हैं कि छोटे विद्यालयों में पढाई का माहौल बढ़िया नही होता और उनके बच्चे पीछे रह जायेंगे।
5-अनेक प्रकार के यूनिफार्म, सप्ताह में कई बार बदले जाने वाले जूते, रंग-बिरंगे टी-शर्ट और क्रियेटिविटी क्लासेज के नाम पर ली जा रही अतिरिक्त फीस उन्हे यकीन दिलाने में सफल रहती है कि विभिन्नता और इसके लिये ली जाने वाली फीस उनके बच्चे के आगे बढ़ने की गारंटी है।
6-दूसरों के सामने अपने बच्चे का मँहगा विद्यालय और मँहगी फीस के बारे में बताते हुये वो गर्व महसूस करते हैं।
7-कुल मिला-जुलाकर शिक्षा "Need" नही 'Want" बन गई है जिसकी वजह से यह व्यवसाय की ओर अग्रसर है।

ध्यान से सोचें की एक शिक्षित व्यक्ति जो बच्चों को बेहतर ज्ञान और अच्छा नागरिक बनाना चाहता है और विद्यालय के माध्यम से वह यह काम करना चाहता है लेकिन उसके पास पूँजी नही है तो वह उस स्तर का विद्यालय खोल ही नहीं पायेगा जिसमें अभिभावक अपने बच्चे को पढ़ाना चाहे।  वहीं दूसरी ओर एक पूँजीपति जिसका शिक्षा से कोई लेना देना नही, जिसका एक ही मकसद है, पैसा कमाना वह वन टाइम इन्वेस्टमेन्ट करता है और उपरोक्त सुविधाओं के बदले  मोटी फीस वसूल करता है और अभिभावक खुशी-खुशी अपने बच्चे का एडमिशन वहाँ कराके बाद मे सिस्टम को दोष देने लगते हैं।
 बच्चे को शिक्षित करने के लिये बुनियादी चीजें-
1-एक क्लासरूम जिसमे पूरे सत्र निर्बाध रूप से पठन-पाठन चल सके।
2-एक बोर्ड जिसपर पढ़ाया जा सके।
3-बैठने और लिखने-पढने के लिये सुविधाजनक डेस्क और बेंच।
4-और एक योग्य अध्यापक जो बच्चों को उनके हिसाब से पढ़ाये।

जरूरत सुख-सुविधाओं वाले बड़े भवन की नहीं  सीखने-सिखाने वाले एक विद्यालय की है। अगर शिक्षा आवश्यकता तक सीमित है तो सेवा है नही तो चाहत में बदलने के बाद यह व्यवसाय बनने की ओर उत्तरोत्तर अग्रसर है।

दस्तक सुरेन्द्र पटेल


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