Friday, February 1, 2013

कमल हासन की धमकी



काफी समय पहले जब मै हाईस्कूल का छात्र था तब मैनें अंग्रेजी के पाठ्यक्रम में रूल्स आफ द रोड नाम के अध्याय के अन्तर्गत एक छोटी सी कहानी पढ़ी थी जिसका सारांश था कि स्वतंत्रता का  मतलब निरंकुश होना नही बल्कि दूसरे की स्वतंत्रता का सम्मान करना है। कहानी को यहाँ संक्षेप में प्रस्तुत करना प्रासंगिक है। एक आदमी सड़क पर अपनी छड़ी घुमाते हुये चल रहा था। पीछे चलने वाले आदमी ने उसे टोका तो उसने जवाब दिया- मैं अपनी मर्जी से कोई भी काम करने के लिये स्वतंत्र हूँ। तब पीछे चलने वाले आदमी ने कहा- तुम्हारी स्वतंत्रता वहीं पर खत्म हो जाती है जहाँ पर मेरी नाक शुरू होती है। जिस बात को हाईस्कूल में इस कहानी के माध्यम से मेरे जैसे बहुत लोगों मे समझ लिया होगा कमल हासन जैसे लोग आज तक नहीं समझ पाये, लेकिन इससे यह साबित नही होता कि कि कमल हासन समझदार नही हैं। असल में वे समझदार भी हैं और एक दूरदर्शी फिल्म निर्माता भी जो जोखिम लेना चाहता है। कमल हासन के खाते में कुछ ऐसी फिल्मे हैं जो उन्हे विश्वस्तर के अभिनेता के रूप में स्थापित करती हैं। नायकन, हिन्दुस्तानी, सदमा, हे राम, दशावतार इत्यादि ऐसी फिल्में हें जिनसे किसी भी भारतीय अभिनेता को जलन हो सकती है। तो क्या वजह है कि कमल हसन जैसा संवेदनशील निर्माता अपनी नई फिल्म विश्वरूप पर तमिलनाडु सरकार द्वारा रोक लगाये जाने की वजह से इतना परेशान हो गया कि उसे देश छोड़ देने की धमकी देनी पड़ गई। हालाँकि इसे धमकी के रूप मे लेना सही नही है, क्योंकि देश छोड़ने का निर्णय कि सी व्यक्ति का नितांत निजी मामला है। लेकिन कमल हासन का यह व्यक्तव्य इस मामले में महत्वपूर्ण हो जाता है कि उन्होने सेकुलरिज्म के नाम पर भारत को छोड़कर किसी ऐसे देश में जाने की बात कही जो धर्म निरपेक्ष हो और जहाँ मीडिया पर धर्म का प्रभाव ना हो।
पर्दे के पीछे-
कमल हासन ने अपनी नई महत्वाकांक्षी फिल्म विश्वरूप को बनाने में अपनी सारी संपत्ति गिरवी रख दी है। फिल्म के एक्शन दृश्यों को फिल्माने में अच्छा खासा बजट लागाया गया है और इसे हालीवुड फिल्मों के टक्कर का बनाने की पूरी कोशिश हुई है। कुछ सप्ताह पहले इसे थियेटर से पहले सेटेलाइट पर पे आन चैनल्स के जरिये दिखाने की व्यवस्था भी की गई थी। इससे कमल हासन को कितना फायदा हुआ, पता नहीं, क्योंकि मीडिया में इस बारे में कोई खबर नही थी। समस्या की शुरुआत तब हुई जब कुछ मुस्लिम संगठनों ने फिल्म में आपत्तिजनक सामग्री की दुहाई देकर तमिलनाडु सरकार द्वारा फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगवा दी। कमल कोर्ट गये और फिल्म के प्रदर्शन की तिथि टल गई। जब भी किसी फिल्म के प्रदर्शन की तारीख टलती है तो निर्माता की साँसे अटकनी शुरु हो जाती है क्योंकि एक समय के बाद जनता के मन से उसकी तस्वीर मिटने लगती है। अब फिल्म में ऐसा क्या है जिसकी वजह से तमिलनाडु सरकार ने उसके प्रदर्शन पर रोक लगा दी, यह तो वो ही जाने लेकिन इसकी वजह से कमल का नाराज होना स्वाभाविक तो है, लेकिन सही नही।
कमल हसन के तर्क-
कमल ने एम. एफ. हुसैन का नाम लिया और कहा कि इसी धार्मिक कट्टरता की वजह से एक विश्वविख्यात भारतीय पेन्टर को भारत से निर्वासित होकर किसी दूसरे देश में जाकर तनहाई में अंतिम साँसे लेनी पड़ी। इस संदर्भ में दो बातें महत्वपूर्ण है कि हुसैन ने जिस देश में शरण लिया वह धर्म निरपेक्ष तो कतई नहीं था और दूसरी कि हुसैन के निर्वासन के पीछे क्या कारण थे। हुसैन चर्चा में तब आये जब उन्होने हिन्दू देवियों की नग्न तस्वीरें बनाई और उसका व्यापक विरोध हुआ। हुसैन को मरते वक्त भी इस सवाल का जवाब देना मुश्किल रहा होगा कि यह किस प्रकार की कला और ऐस्थेटिक सेंस है जो किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाती हो, उसे अपमानित करती हो। कला का एकमात्र उद्देश्य प्रेम और भाईचारा होना चाहिये, ना कि वैमनस्य बढ़ाने का एक साधन। कमल को भी यह समझना चाहिये था कि किसी के जलते हुये घर पर अपनी रोटी सेंकना बुद्धिमानी नहीं कही जायेगी और इंसानियत तो बिल्कुल भी नहीं।
वैश्विक समस्या-
ऐसा नही है कि यह किसी स्थान, राज्य या राष्ट्र विशेष की समस्या हो और तत्कालीन परिस्थितियों की देन हो। डेनमार्क के एक कार्टूनिस्ट द्वारा मोहम्मद साहब का कार्टून बना देने के बाद जो तूफान मचा था उसे एक चर्च के पादरी द्वारा पवित्र कुरान के पन्नों को जला देने घटनाओं ने और ज्यादा बढ़ाया है। चाहे फ्रांस में स्त्रियों द्ववारा बुर्का पहनने पर लगी रोक हो, या अमेरिका के गुरुद्वारे में किसी अमेरिकी द्वारा गोलियाँ बरसाने की घटना रही हो, आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर हमले की घटना रही हो या फिर अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराना रहा हो, इन सबको एक नजरिये से देखने की आवश्यकता है। समाधान के लिये समस्या के कारणों को दूर करना जरूरी है।
स्वतंत्रता का सम्मान जरूरी-
यह सही है कि भारतीय संविधान ने हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की है और भारत को एक पंथ निरपेक्ष राष्ट्र माना है लेकिन जब यही स्वतंत्रता दूसरों को उकसाने का कार्य करने लगती है तो इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। भारत जैसे देश में, जहाँ भाषा, संस्कृति और धर्म के आधार पर जगह-जगह पर विभिन्नता देखने को मिलती है और जिसका इतिहास धार्मिक वैमनस्यता की घटनाओं से भरा पड़ा है, वहाँ पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल तलवार की धार पर चलने जैसा है। लाख कोशिशों के बाद भी धर्म नाम की भावना को इंसानी दिमाग से नहीं निकाला जा सकता, इसलिये महत्वपूर्ण है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के इस्तेमाल      और व्यवहार में मध्यम मार्ग और आपसी सहिष्णुता का समावेश किया जाय।

दिल से निकलगी, ना मरकर भी, वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी....।

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