Friday, November 25, 2011

अतिक्रमित सड़कों पर अनियंत्रित यातायात से जूझता महराजगंज

2001 की दीपावली की पूर्व संध्या (जिसे धनतेरस के नाम से भी जाना जाता है) पर महराजगंज में टू व्हीलर की बिक्री के आकड़ें अगले दिन अखबार में पढ़ते हुये एक बारगी विश्वास ही नही हुआ कि यहाँ पर ऐसा भी हो सकता है। धनतेरस के दिन यहाँ पर एक करोड़ की बाइक्स बिकी थीं। महराजगंज को करीब से जानने वालों के लिये य़ह खबर चौंकाने वाली हो सकती है, लेकिन असल चौंकाने वाली चीज तो दूसरी है। जितनी तेजी से यहाँ पर बाइक्स की बिक्री हो रही है उसका दूसरा पहलू यहाँ की गलियों जैसी पतली सड़कों पर देखने को मिलता है जो पहले से ही दुकानदारों के अतिक्रमण से बेहाल हो रही हैं। उस पर कोढ़ में खाज वाली स्थिति यहाँ पर बाइपास की कमी कर देती है जिसके न होने की वजह से ट्रक और बस जैसे भारी वाहनों को मुख्य कस्बे से होकर जाना पड़ता है और नतीजन ट्रैफिक जाम जैसी समस्या से दो चार होना वर्तमान महराजगंज कस्बे की नियति बन चुकी है। बात यहीं तक सीमित रहती तो गनीमत थी लेकिन स्थिति बहुत ज्यादा तकलीफदेह तब हो जाती है जब स्कूलों की छुट्टियाँ होती हैं और सभी मुख्य़ स्कूलों की बसें एक ही रास्ते से होकर आने जाने का प्रयास करती हैं। अगर ठीक उसी समय कुछ ट्रक भी आ गये तो हो गया बंटाधार। इसी अफरा तफरी के माहौल में मामला बिगड़ता है और कोई न कोई अनहोनी घट ही जाती है जब, स्कूल से लौट रहा छोटा बच्चा या फिर बच्ची, अपने आपको संभाल नही पाते और अनियंत्रित होकर किसी वाहन के चपेट में आ जाते हैं। अभी हाल में ही कुछ दिनों  पहले मऊपाकड़ में एक स्कूली छात्रा की ट्रक के चपेट में आ जाने की वजह से दर्दनाक मौत हो गई।
महराजगंज कस्बे में नवंबर का महीना यातायात महीने के रूप में मनाया जाता है लेकिन आँकड़े कहते हैं कि 1 नवंबर से 20 नवंबर तक के बीच में यहाँ दुर्घटना की वजह से 18 मौतें हो चुकी हैं जिसमें कस्बे में चार शामिल हैं।
अभी डेढ दो महीने पहले मेरे स्कूल के एक छात्र का भी एक्सीडेन्ट हो गया पर सौभाग्य से वह बच गया और उसे हल्की-फुल्की चोंटे ही आयीं फिलहाल तो वह आराम कर रहा है। कुछ महीने पहले मेरे सामने ही एक वृद्ध आदमी अनियंत्रित होकर एक ट्रक के पिछले पहिये पर ही गिर पड़ा लेकिन उसकी किस्मत बहुत अच्छी थी कि वह सही सलामत बच गया। ये सारे आकडे़ं बताते हैं कि महराजगंज की सड़कें सुरक्षित नही रह गई हैं विशेषकर बच्चों और वृद्धों के लिये।
जनता की बढ़ रही क्रय क्षमता का असर सड़कों पर विशेष तौर पर दिख रहा है जहाँ पर साइकिलों से ज्यादा मोटरसाइकिलें दिख रही हैं। अनियंत्रित गति से बढ़ रही बाइकों की संख्या चलाने वालों की धैर्य क्षमता पर भी असर डाल रही है जिसकी वजह से जल्दी निकल जाने की कोशिश भी बढ़ती जा रही है। हमारे कस्बे में भविष्य में यह समस्या और भी गंभीर होने वाली है क्योंकि यहाँ पर न तो कोई यातायात नियम का अनुसरण करता है और न ही इसके लिये कोई दिल से कोशिश करता है। पर जब हम अपने बच्चों के बारे में सोचते हैं तो हमें फिक्र होनी ही चाहिये कि क्या ऐसा नही हो सकता है कि सड़कों से इस दबाव को कम किया जा सके।
आज सड़क पर चलने में स्वयं बचकर चलना ही हमारी सुरक्षा की गारंटी नही रह गई है जब तक कि हम हर आने जाने वाले से बचकर नही चलें। मेरे लिये सबसे बड़ी हैरत की बात पिछले दिनों रही जब मुझे सरोजनी नगर वाली गली से निकल कर मुख्य सड़क पर आने के बाद हनुमान गढ़ी तक आने में लघभग 15 से 20 मिनट लग गये। 26 साल तक महराजगंज में रहते हुये पहली बार यह अहसास हुआ कि हालात बड़ी तेजी के साथ बदल रहे हैं अगर हमने कुछ नही किया तो स्थिति और भी खराब हो जायेगी। मँहगाई की सुरसा से निकलने की कोशिश में बाइक पर रेंगते हुये उस दिन मुझे लगा कि बाइक में मेरा पेट्रोल नहीं बल्कि मेरा खून जल रहा है।
काफी दिन से सोच रहा हूँ कि अब बाइक से स्कूल जाना छोड़ ही दूँ...लेकिन यह दिखावे की प्रवृत्ति मेरी दुश्मन बनी हुई है...देखता हूँ कि कब इसे छोड़कर महराजगंज की कमनीय बाला के कटि प्रदेश सदृश पतली सड़कों पर अपनी बाइक सदृश छोटे चींटे के रेंगने कि गति को शांत कर सकता हूँ, इसका दूसरा अच्छा पहलू यह होगा कि अपने देश के लिये मैं हर महीने लघभग 5 लीटर पेट्रोल बचा सकता हूँ.....।
दिल से निकलगी, ना मरकर भी, वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी....।

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