Friday, November 5, 2010

काश कि.... दीपावली मंगलमय हो.............




सबसे पहले, सभी दोस्तों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं...।

पूरे विश्व में, अंधकार पर प्रकाश के विजयोत्सव के रूप में मनाया जाने
वाला, एकमात्र उत्सव है...दीपावली। हमारी संस्कृति और परंपराओं ने सदा ही
सृष्टि के कण-कण को उसकी उपयोगिता और प्रासंगिकता के अनुसार महत्व प्रदान
किया तथा उनसे सीखने का प्रयास भी किया है। हमने अच्छाईयों को सीखने की
कोशिश की और हमने उनको व्यवहार में लाने का प्रयास किया, किंतु हर काल
में, समाज व्याप्त प्रति ताकतों ने हमें वैसा करने से रोका, उन आदर्शों
पर चलने एवं उनको प्राप्त करने के पथ में अवरोध उत्पन्न किये। दुख की बात
है कि हमारी अच्छी सोच व दृष्टिकोण सदैव ही उनके प्रतिदृष्टिकोण के सामने
दीन-हीन ही सत्यापित हुए हैं, जिसके फलस्वरूप कुछ लोगों ने दिग्भ्रमित
होकर हमारी अपनी ही परंपरा और संस्कृति के प्रति आक्रामक रुख अपना लिया।

मित्रों भारतीय संस्कृति और इसकी सर्वहितकारी सोच ने कभी भी किसी का बुरा
नही चाहा, यह प्राणि मात्र की भलाई के प्रति अग्रसर करने वाली एक अनादि
सोच व दृष्टिकोण है जो हमारी स्वयं की उपेक्षा की शिकार है। कोई भी देश
और समाज अपनी संस्कृति और परंपराओं को छोड़ कर लंबे समय तक अपना अस्तित्व
बनाकर नही रख सकता। शायद ही आपको पता हो कि औपनिवेशक काल में, जब
इंग्लैंड और अन्य यूरोपीय देशों ने व्यापार के नाम पर पूरे एशिया को अपने
पंजे में कसना प्रारंभ किया था और चीन को अपने कब्जे में ले लिया था, तब
जापान ने क्या किया था। वह उस समय उन औपनिवेशिक ताकतों के खिलाफ एक दम से
खड़ा नही हो सकता था...सोचिये उसने अपना अस्तित्व बचाने के लिये क्या
किया...। 1636 ईस्वी में जापान ने सारे विदेशियों को अपने देश से निकाल
दिया और अपने आपको मोहरबंद कर लिया। उसने अपने सारे वैदेशिक संबंध तोड़
लिये और अपने समुद्र किसी भी प्रकार के व्यापार के लिये बंद कर लिये।
जापान से न कोई बाहर जा सकता था और न ही अंदर आ सकता था, भले ही वह
जापानी ही क्यों ना हो। लघभग दो सौ सालों तक जापान ने अपने आपको शेष
दुनिया से अलग रखा। किसी भी प्रकार की कोई हलचल का जापान पर प्रभाव नही
पड़ा और इस समय का उपयोग उसने अपना विकास अपने दम पर करने में लगाया, अभी
जापान पूरे विश्व में कहाँ खड़ा है, किसी से छुपा नही है। विश्व की सबसे
बड़ी त्रासदी...दो-दो एटम बमों को अपने सीने पर खाकर भी ये देश मानों पूरी
दुनिया को संदेश दे रहा है कि, तुम हमारी सभ्यता, संस्कृति और परंपरा को
नही खत्म कर सकते।


दीपावली के अवसर पर शायद आपको लग रहा हो कि मैं संस्कृति, परंपरा इत्यादि
का रोना क्यों रो रहा हूँ...। पहली बात कि हमें इन्हे बचाकर रखना
है...क्योंकि आगे आने वाली पीढ़ी को हम क्या देने वाले हैं, यह हमें सोचना
है। हमें उन्हे पिज्जा बर्गर देकर यह संदेश देना है कि हम नकलची बंदरों
ने उन स्वाद का मतलब न समझने वाले गधों के बनाये फास्ट फूड्स चटखारे
ले-लेकर खाये और अपना सत्यानाश कर लिया..या फिर विकास का सही मतलब समझते
और अपनाते हुये अपनी धरोहर को सँजोते हुये भविष्य का संदेश।

भारत के सामने हमेशा से चुनौतियाँ रही हैं और रहेंगी, बस उनमें परिवर्तन
इतना ही हो सकता है कि उनका स्वरूप बदल जाये...। वर्तमान में चुनौतियों
का स्वरूप भ्रष्टाचार, गरीबी, असमानता और अशिक्षा के रूप में हैं, हम
इन्हे दूर कर सकते हैं या फिर पिज्जा बर्गर खाते और कोक पीते हुये फुटपाथ
पर चीथ़ड़ों में लिपटी बूढ़ी औरत पर हँस सकते हैं...। अँधेरे चारों ओर
व्याप्त हैं, एक अमावस्या पर छाये घने अंधेरे को अपने घर में दिये जलाकर
दूर करने का प्रयास काफी नही है, जबतक कि एक अरब लोगों के आस पास छाया
अंधेरा दूर नही होगा....।


सुरेंद्र...

दीपावली

05 नवंबर 2010

1 comment:

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